मुझ पर धन क्यों नहीं रुकता? पत्नी मेरे खिलाफ क्यों हो जाती है?
|पत्नी मेरे खिलाफ क्यों हो जाती है?
ये प्रश्न मुझे किसी परेशान पाठक से तीसरा खंबा के कानूनी सलाह के लिए मिले हैं, और मैं विचार कर रहा हूँ कि इन का क्या उत्तर दूँ। इस चिट्ठे तीसरा खंबा पर मेरे परिचय के नीचे कानूनी सलाह प्राप्त करें शीर्षक से एक आयत बना है जिस पर क्लिक कर आप अपना प्रश्न कानूनी सलाह के लिए प्रेषित कर सकते हैं। उसी स्रोत से मुझे ये प्रश्न मिले हैं।
किसी भी प्रश्न का हल तलाश करने के लिए सब से पहले किसी भी कानूनी सलाहकार को उस प्रश्न से संबंधित परिस्थितियों और तथ्यों की जानकारी जरूरी है। उन के बिना किसी को सलाह देना असंभव है।
उक्त प्रश्न पढ़ते ही जो कुछ मुझे लगा कि ये प्रश्न कानून से कोई संबंध नहीं रखते। अपितु स्वयं पाठक की जीवन शैली से संबंधित हैं। आगे सोचने पर लगा कि ये प्रश्न तो आम हैं। लगभग सभी के जीवन में ये स्थितियाँ आती ही रहती हैं। धन रुकने के लिए नहीं होता। वह होता ही खर्च करने के लिए है। लेकिन विपन्न से विपन्न और कम से कम कमाने वाला व्यक्ति भी अपने बुरे दिनों के लिए कुछ धन बचा कर रखता है। वह प्रयत्न सभी का होना चाहिए। इन सज्जन को भी चाहिए कि ये धन को खर्च करने के पहले कुछ धन बचा कर रखें।
पाठक महोदय का दूसरा प्रश्न है कि -पत्नी मेरे खिलाफ क्यों हो जाती है?
यह एक शाश्वत प्रश्न है। सब पत्नियाँ अपने पति के कभी न कभी खिलाफ होती हैं। पर यह सोचना गलत है कि वास्तव में वे आप के खिलाफ होती हैं। पति-पत्नी-बच्चे मिला कर एक परिवार है, जिस के कुछ आमदनी के साधन हैं। बहुत सारे दायित्व हैं। आम तौर पर इस एकनिष्ठ परिवार में पति ही कमाने वाला एक मात्र सदस्य होता है। लेकिन पत्नी और बच्चे भी परिवार में कमाई का नहीं तो दूसरे अनेक प्रकार का योगदान करते ही हैं। और वे चाहते हैं कि महत्वपूर्ण निर्णय सब की सलाह से लिए जाएँ। क्यों कि पति एक मात्र कमाने वाला सदस्य है इस कारण से वह अधिकांश निर्णय बिना परिवार की सलाह के लेता है। उन में अनेक निर्णय ऐसे होते हैं जो पत्नी या बच्चों को पसंद नहीं आते और वे उन की आलोचना करते हैं, कभी नाराज भी हो जाते हैं। फिर उन्हें मनाने का दौर चलता है। यदि हम इन महत्वपूर्ण निर्णयों को लेने के पहले पत्नी और बच्चों से राय कर लें तो इस परेशानी से बच सकते हैं। कुल मिला कर हमारा परिवार भी एक व्यवस्था है। आज जनतंत्र के जमाने में प्रयत्न यह होना चाहिए कि परिवार में भी एक सीमा तक जनतंत्र बना रहे।
कोई दूसरा उसके पति की मुखालफत करे, यह कोई बीबी सहन नहीं कर पाती । बस, इसीलिए बीबी खुद खिलाफ हो जाती है ।
भाई वो बीबी ही क्या जो नारज ना हो…. सुना नही तुम रुठी रहो….. मै मनाता रहू.
पेसा भाई आता जाता रहे अच्छा है , कही पढा था, ठहरा पानी ओर ठहरा पेसा दोनो ही खराब होते है
मेरी जानकारी में, क्लिकेबल आयत तो यहाँ, यहाँ और यहाँ भी मौज़ूद हैं
अरे महोदय को बताइए की धन की तीन गतियाँ होती हैं दान, भोग और नाश. पहला और दूसरा ना करने पर धन तीसरी गति को प्राप्त होता है अर्थात नाश ! तो क्यों चिंता कर रहे हैं… आनंद कीजिये.
और दुसरे का जवाब तो अनुरागजी ने बखूबी दे दिया है 🙂
कानूनी सलहकार को अच्छा मनोवैज्ञानिक (और धर्मोपदेशक?) होना चाहिये। आपमें यह गुण हैं!
दिलचस्प सवाल-जवाब
यह सिलसिला अच्छा लगा….
धन नही रुकेगा तो .नाराज तो होगी ही….
आज जनतंत्र के जमाने में प्रयत्न यह होना चाहिए कि परिवार में भी एक सीमा तक जनतंत्र बना रहे।
बहुत सुंदर और घर परिवार को बाँध कर रखने वाली सलाह ! धन्यवाद !
nya andaaj…bahut khoob