विभाजन पत्र की पहली और दूसरी प्रतियों का महत्व
|क्या पार्टीशन डीड में भी मिले कागजात में पहले ओर दूसरे कागज का कोई अलग महत्त्व है ?
आप का यह प्रश्न पार्टीशन डीड की पहली प्रति और उस की दूसरी या तीसरी प्रतियों के संबंध में है। पार्टीशन ड़ीड, या विभाजन विलेख, या विभाजन पत्र एक विलेख है जिस की मूल प्रति एक ही हो सकती है। विभाजन विलेख पर कुछ न कुछ शुल्क देय होता है। देय शुल्क के बराबर राशि के स्टाम्प पेपर्स पर यह डीड आलेखित कर निष्पादित की जाती है। निश्चित रूप से यह मूल आलेख तो एक ही होगा। लेकिन विभाजन में जिस जिस साझीदार के हिस्से में कोई न कोई अचल संपत्ति आती है वह चाहता है कि उस के पास विभाजन विलेख हो। इस कारण से उस विभाजन विलेख की अनेक प्रतियाँ न्यूनतम मूल्य के स्टाम्प पर बना कर हस्ताक्षर करा ली जाती है। एक एक प्रति प्रत्येक साझीदार के पास रह जाती है और उस के हिस्से में आई संपत्ति के स्वत्व के प्रमाण के रूप में काम आती रहती है।
यदि मूल विभाजन विलेख में यह भी अंकित कर दिया जाए कि इस की एक मूल प्रति एक निश्चित साझीदार के पास रहेगी और उस की द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ … प्रतियाँ किन निश्चित साझीदारों के पास रहेंगी, साथ ही प्रत्येक प्रति पर उस का क्रमांक अंकित कर दिया जाए तो प्रत्येक प्रति अपनी कहानी खुद कहेगी और मूल प्रति जितनी ही विश्वसनीय हो जाएगी। विभाजन पत्र रजिस्टर्ड होता है। और दूसरी, तीसरी … प्रति रखने वाला साझीदार उप पंजीयक कार्यालय से विभाजन पत्र की एक प्रमाणित प्रति प्राप्त कर के रखे तो वह मूल के समान ही विश्वसनीय और साक्ष्य में ग्राह्य होगी।
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बहुत धन्यवाद दिनेश जी,
सदैव की तरह उपयोगी।
वाकई दादा… बेहतरीन जानकारियां दे रहे हैं आप..
बहुत ही गंभीर जानकारी आपने सहज ही उपलब्ध करा दी। धन्यवाद।
शुक्रिया वकील साहब …आपका आभार