साहूकारी का कानूनी पुनर्जीवन अब तक के क्रूरतम रूप में
|अब तक चैक अनादरण के बारे में बहुत कुछ लिखा जा चुका है। लेकिन यदि इस अपराध की महत्वपूर्ण बातों को यहाँ नहीं लिखा जाए तो बात अधूरी रहेगी।
आज जिस रूप में यह कानून मौजूद है उस का स्वरूप इस प्रकार है ….
एक व्यक्ति के पास किसी अन्य व्यक्ति के खाते का चैक है, जो किसी ऋण के पुनर्भुगतान या किसी अन्य दायित्व के निर्वाह के लिए दिया गया था। जिस का भुगतान उसे प्राप्त करना है तो वह उस चैक को उस पर अंकित तिथि से वैधता की अवधि समाप्त होने तक अपने बैंक में प्रस्तुत कर उस चैक का धन चैक जारीकर्ता के खाते से प्राप्त कर सकता है। वैधता की अवधि सामान्य तौर पर चैक पर अंकित जारी करने की तिथि के छह माह के भीतर और विशेष रूप से चैक पर अंकित इस से कम अवधि तक के लिए वैध होता है। किसी भी कारण से यह चैक अनादरित (बाउंस) हो कर वापस आ सकता है। यदि वैधता की अवधि शेष हो तो इस वापस आए चैक को कितनी ही बार भुगतान हेतु बैंक में प्रस्तुत किया जा सकता है।
यदि इस चैक का भुगतान किसी भी तरीके से नहीं होता है और चैक अनादरित ही रह जाता है तो चैक धारक अंतिम बार अनादरण की सूचना उस के बैंक से प्राप्त होने के 30 दिनों में लिखित सूचना (नोटिस) के माध्यम से चैक जारीकर्ता से चैक की राशि पन्द्रह दिनों में भुगतान करने की मांग करे और यह नोटिस प्राप्त होने के पन्द्रह दिनों में भी उस चैक की राशि चैक धारक को चैक जारीकर्ता भुगतान करने में असफल रहे तो चैक का यह अनादरण एक अपराध हो जाता है। चैक धारक नोटिस की पन्द्रह दिनों की अवधि समाप्त होने के तीस दिनों के भीतर अदालत में अपराध की शिकायत दर्ज करा सकता है।
इस शिकायत पर अदालत प्रसंज्ञान ले कर अभियुक्त ( चैक जारी कर्ता) के विरुद्ध समन जारी करेगी और अभियुक्त के न्यायालय में उपस्थित हो जाने पर उस के विरुद्ध सुनवाई करेगी। अभियोजन की साक्ष्य के उपरांत अभियुक्त को सफाई में साक्ष्य का अवसर देगी और सुनवाई के उपरांत अभियुक्त को दोषी पाए जाने पर न्यायालय उसे दो वर्ष तक की कैद और चैक की राशि से दो गुना राशि तक के जुर्माने की सजा से दंडित कर सकता है।
यह मामला पूरी तरह से दस्तावेजों पर आधारित है। चैक, उसे बैंक में प्रस्तुत करने की रसीद, उस के अनादरित होने की सूचना, चैक जारी कर्ता को उस के पते पर भेजा गया नोटिस सभी दस्तावेज हैं और अकेले शिकायतकर्ता के बयान से प्रमाणित किए जा सकते हैं। यदि कोई गंभीर त्रुटि न हो जाए तो शिकायत का सीधा अर्थ चैक जारीकर्ता को सजा होना है।
इस पूरे मामले में धारा 138 में एक ही बात है जो चैक जारीकर्ता के पक्ष में जा सकती थी, वह यह कि चैक किसी ऋण के भुगतान या किसी अन्य दायित्व के निर्वाह के लिए नहीं दिया गया हो। आम तौर पर नियम यह है कि जो किसी कथन को प्रस्तुत करेगा वही उसे प्रमाणित करेगा। इस कानून में यह बात कि चैक किसी ऋण के भुगतान या किसी अन्य दायित्व के निर्वाह के लिए दिया गया था, प्रमाणित करने का दायित्व शिकायतकर्ता पर होना चाहिए था। लेकिन धारा 139 में यह कहा गया है कि जब तक विपरीत रूप से प्रमाणित नहीं कर दिया जाता है तो चैक को किसी दायित्व के निर्वाह या ऋण के भुगतान हेतु जारी किया हुआ ही माना जाएगा। धारा 139 ने ही इस कानून को मारक बना दिया है और चैक जारी कर्ता के लिए कोई सफाई नहीं छोड़ी है। इस से कानून बना कर नियंत्रित किए गए निर्मम साहूकारी शोषण को पुनर्जीवन प्राप्त हो गया है। इस बार उस
मैने तो सुना था कि बाउंस होने पर सीधे थाने में एफआईआर दर्ज कराई जा सकती है। क्या ऐसा नहीं है क्योंकि कोर्ट-कचहरी के झंझट तो बहुत लंबे हैं। कृपया आगे की कड़ी में ज्ञान दें।
पानीपत जैसी निर्यात नगरी में निर्यातकों द्वारा अपने सप्लायरों को दिये चैक रूटीन में बाउंस होते हैं जब सप्लायर समन भिजवाता है तो समन लाने वाला पहले ही फोन करके उन को आगाह कर देता है कि मैं आ रहा हूं आप पतली गली में चले जायें
सारा तंत्र आकंठ भ्रष्ट है कानून है तो सही पर इसके पालक और जानकार इस के भी बाप है बचने के रास्ते भी वहीं से आते हैं
बहरहाल मेरी समझ में या प्रेम आता है या डंडा
बस्स….
जानकारी भरा आलेख…धन्यवाद।
द्विवेदी जी
आपने बहुत बढिया मुद्दा उठाया है. इसके लिए बधाई
दीपक भारतदीप
बहुत ही विचारणीय मसला है . धन्यवाद.
एक ओर सुंदर जानकारी, धन्यवाद इन्तजार है अगली कडी का धन्यवाद
अब आप मेरा सवाल जरा ध्यान से सुनिये. आपकी यह श्रंखला मैं बडे ध्यान से पढता आ रहा हूं और चूंकि अनेक १३८ के केस मैने अपना धन वसुलने के लिये लगा रक्खे हैं सो इसकी कुछ जानकारी मुझे भी है.
अस्तु,
एक चेक कभी किसी को दिया गया था. किसी नगद की लेनदारी पेटे. समझिये ५ साल पहले.
नगद वापस यानि कच्चे के पैसे लौटा दिये गये.
चेक जो गारंटी स्वरुप दिया गया था वो वापस लेना देना दोनो भूल गये.
अब आपस मे दोनो का ही कोई लेन देन या व्यवहार लिखा पढी मे नही है. लेकिन इतने समय बाद अगर वो चेक बैंक मे भेज कर बाऊंस करवा कर १३८ का मुकदमा लगादे तो क्या होगा?
चेक जारी कर्ता को कुछ बचने का उपाय है या नही? यहां एक बात ध्यान रखने लायक है कि पक्के मे कोई लिखा पढी या इन्कम्टेक्स रिटर्न्स मे यह धन नही दिखाया गया है.
रामराम.
अगली कड़ी का इन्तजार है-यह भी एक आयाम है.