सुलझे या उलझे? नरेन्द्र मोदी
|किसी भी अपराधिक मामले में पुलिस अथवा अन्य कोई अन्वेषणकर्ता एजेंसी शिकायतकर्ता द्वारा इंगित व्यक्ति को अभियुक्त बनाने और अभियोग चलाने से इन्कार करते हुए अपनी रिपोर्ट संबंधित मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत करती है तो उस रिपोर्ट पर विचार करने का अधिकार उसी मजिस्ट्रेट का है। उस के इस अधिकार का प्रयोग अन्य कोई भी न्यायालय चाहे वह सर्वोच्च न्यायालय ही क्यों न हो नहीं कर सकता।
जब भी कभी इंगित व्यक्ति को अभियुक्त बनाने से इन्कार किया जाता है तो यह अन्वेषणकर्ता ऐजेंसी का कर्तव्य है कि वह शिकायतकर्ता को सूचित करे कि उन्हों ने रिपोर्ट को मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत कर दिया है और यदि उन की रिपोर्ट पर शिकायतकर्ता को आपत्ति है तो वह मजिस्ट्रेट के समक्ष अपना पक्ष रख सकते हैं। शिकायतकर्ता मजिस्ट्रेट के समक्ष उपस्थित हो कर निवेदन कर सकता है कि अन्वेषणकर्ता ऐजेंसी ने पर्याप्त दस्तावेजी और मौखिक साक्ष्य मजिस्ट्रेट के सामने नहीं रखी हैं जिस से इंगित व्यक्ति पर अभियोजन चलाया जा सके और वह स्वयं दस्तावेजी और मौखिक साक्ष्य प्रस्तुत कर सकता है तो मजिस्ट्रेट शिकायतकर्ता को इस का अवसर प्रदान करता है। शिकायतकर्ता द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य और अन्वेषण ऐजेंसी द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य पर विचार करते हुए मजिस्ट्रेट यह निर्णय कर सकता है कि किसी इंगित व्यक्ति के विरुद्ध अभियोजन चलाने हेतु पर्याप्त साक्ष्य है या नहीं। यदि वह पाता है कि अभियोजन के लिए पर्याप्त साक्ष्य मौजूद है तो उस व्यक्ति के विरुद्ध प्रसंज्ञान ले कर उस के विरुद्ध अभियोजन का आरंभ करता है।
सर्वोच्च न्यायालय ने नरेंन्द्र मोदी के मामले में जो निर्णय दिया है उस में मजिस्ट्रेट के प्रसंज्ञान लेने के अधिकार की रक्षा की गई है और सारे मामले को मजिस्ट्रेट के सामने खोल कर रख दिया है। अब शिकायतकर्ता मजिस्ट्रेट के सामने अतिरिक्त साक्ष्य प्रस्तुत करते हुए नरेन्द्र मोदी के विरुद्ध प्रसंज्ञान लेने का निवेदन कर सकता है। यदि मजिस्ट्रेट पर्याप्त साक्ष्य होते हुए भी मोदी के विरुद्ध प्रसंज्ञान नहीं लेता है तो सेशन न्यायालय, उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय हैं जो मजिस्ट्रेट के प्रसंज्ञान लेने या न लेने के आदेश की समीक्षा कर सकते हैं। इस तरह सर्वोच्च न्यायालय के आदेश से मोदी की मुसीबतें कम होने के स्थान पर बढ़ गई हैं।
यदि मोदी यह कह रहे हैं कि ‘गॉड इज ग्रेट’, तो उस का अर्थ केवल एक उँसास भर है कि कम से कम अभी तो बचे। लेकिन आगे बचाव के लिए उन्हें बहुत पापड़ बेलने होंगे। मजिस्ट्रेट या फिर उस से ऊंचे किसी भी न्यायालय ने उन के विरुद्ध प्रसंज्ञान लेने का आदेश दिया तो शायद उन्हें भगवान को कोसना पड़े कि वह ये दिन क्यों दिखा रहा है?
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5 Comments
हमारा भारत महान । अच्छे काम करने वाले आदमी के पीछे पड जाओ जो थोडा बहुत तरक्की का काम हो रहा है उसे रोक दो । पर कानूनी प्रक्रिया का लंबा होना इसमें मोदी जी का सहायक हो सकता है ।
naa videshi hatyaaron ke liye sazaa hai desh me, na desi hatyaaron ke liye…10-12 saal abche rena to aam baat hai…
Apne blog par fir se sajag hone ke prayaas me hoon:
http://teri-galatfahmi.blogspot.com/
अच्छा विश्लेषण किया आपनें,आभार.
सोना तो सोना ही रहेगा, पीतल थोडा ना हो जायेगा, बल्कि और निखर जायेगा।
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति आज के तेताला का आकर्षण बनी है
तेताला पर अपनी पोस्ट देखियेगा और अपने विचारों से
अवगत कराइयेगा ।
http://tetalaa.blogspot.com/