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अन्तर्जाल और ब्लागिंग : वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मूल अधिकार (6)

अंतर्जाल ने  सूचनाओं के आदान प्रदान की गति को तेज किया, तो इस सुविधा से युक्त लोगों को एक वैश्विक मंच भी प्रदान किया है। आज ई-मेल के माध्यम से तुरंत सूचनाएँ दुनिया के किसी भी कोने से दूसरे कोने तक पहुँचती हैं।  आप पानी का एक गिलास पिएँ इस के पहले उस का उत्तर मिल जाता है।  इस माध्यम पर धीरे धीरे महत्वपूर्ण सूचनाएँ एकत्र होने लगीं।  उन्हें तलाशने के लिए खोज यंत्र बने।  आज किसी भी सूचना को प्राप्त करने के लिए सब से पहले अन्तर्जाल को खोजा जाने लगा है। सामाजिक समूह बने और फिर ब्लागिंग होने लगी। ब्लागिंग के माध्यम से हर मिनट नई सूचनाएँ जाल पर आने लगीं। गूगल, वर्डप्रेस और अन्य अनेक संस्थाओं ने अंतर्जाल पर लोगों को ब्लागिंग के लिए स्थान और साधन निशुल्क उपलब्ध कराना आरंभ कर दिया।  इस से जिन लोगों को इस साधन की उपलब्धता है, वे अपने अपने ब्लाग के माध्यम से नई सूचनाएँ और विचार अंतर्जाल पर डालने लगे।  इन मंचों ने अंतर्जाल की सुविधाओं को आम लोगों में लोकप्रियता प्रदान की है।

आज दुनिया की सभी समृद्ध भाषाओं में ब्लागिंग हो रही है, जहाँ वाक् और अभिव्यक्ति की हर  कला और विधा को स्थान मिला है।  संगीत, चित्र, चलचित्र, पेंटिंग्स, गद्य और पद्य लेखन, समाचार, आलेख सब कुछ ब्लागिंग में मौजूद है।  वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मूल अधिकार को जो ऊंचाई ब्लागिंग ने प्रदान की है वह आज तक के इतिहास में उपलब्ध नहीं हो सकी थी।  कोई भी व्यक्ति अब अपने विचारों को किसी भी रूप में ब्लागिंग के माध्यम से अभिव्यक्त कर सकता है।  इस के लिए मनुष्य जाति को इस नई तकनीक का आभारी होना चाहिए। 
पु्स्तकों को ज्ञान का वाहक माना जाता है।  लेकिन इस का अर्थ यह नहीं कि वे केवल ज्ञान का प्रकाश ही फैलाती हैं। बहुत बड़ी मात्रा में पुस्तकें अज्ञान की वाहक भी हैं।  उसी तरह अभिव्यक्ति का हर माध्यम ज्ञान के साथ साथ अज्ञान भी फैलाता है।   अज्ञान फैलाने वाली पुस्तकें रोज बड़ी मात्रा में प्रकाशित हो कर फुटपाथ पर बिकती हैं, लेकिन उन में शायद ही कोई स्थाई स्थान प्राप्त कर पाती हों। वे जुगनू की तरह चमकती हैं और फिर अपना प्रकाश खो देती हैं।  लेकिन ज्ञानवाहक पुस्तकें एक बार चमकना आरंभ करती हैं तो फिर उन की वह चमक तब तक बरकरार रहती है जब तक कि उस से अधिक प्रकाशवान कोई अन्य न आ जाए।  उस के उपरांत भी वे इतिहास में अदा की गई अपनी भू्मिका के रूप में मौजूद रहती हैं।  अनेक बार आवश्यकता होने पर उन्हें तलाश करने में मनुष्य को अथक श्रम करना पड़ा है।  इसी तरह ज्ञान की वाहक सूचनाओं और अभिव्यक्तियों की स्थिति ब्लाग जगत में भी रहेगी।
अंततः मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है।  आरंभ में वह अत्यन्त छोटे-छोटे समूहों में रहता था।  जैसे जैसे तकनीक का विकास हुआ उस का यह समूह बढ़ता गया। आज के राष्ट्र वैसे ही सब से बड़े समूह हैं।  तकनीक इन समूहों को भी तोड़ रही है और एक विश्व समुदाय का निर्माण कर रही है।  मनुष्य का विश्व समुदाय भविष्य की वास्तविकता है।  उस की ओर से किसी भी स्थिति में आँखें बन्द नहीं की जा सकती हैं।  मनुष्य का इतिहास ही छोटे समूहों से वसुधैव कुटुम्बकम की ओर की यात्रा
है।  अंतर्जाल और ब्लागिंग ने इस यात्रा के लक्ष्य तक पहुँचने के लिए संवाद का मंच जुटा दिया है।  
जब मनुष्य एक विश्व समुदाय के निर्माण की ओर बढ़ रहा है तो उसे और अधिक सामाजिक होना पड़ेगा।  उसे उन मूल्यों की परवाह करनी पड़ेगी जो इस विश्व समुदाय के बनने और उस के स्थाई रूप से बने रहने के लिए आवश्यक हैं।  वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता इन मूल्यों के परे नहीं हो सकती। हमें इन मूल्यों की परवाह करनी होगी।  संविधान ने इन मूल्यों की रक्षा के लिए अनुच्छेद 19 (2) में वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर निर्बंधन लगाने की व्यवस्था की है।  ब्लागिंग सहित संपूर्ण अंतर्जाल पर वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता भी इन निर्बंधनों के अधीन हैं। 
संविधान के अनुच्छेद 19 (2) के ये निर्बंधन क्या हैं? इस पर हम अगले आलेख में बात करेंगे। (क्रमशः जारी)

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