अपराधिक मानव वध कब हत्या नहीं है? (2)
|अपराधिक मानव वध कब हत्या नहीं है?
अपवाद-2
कोई व्यक्ति शरीर, या संपत्ति की व्यक्तिगत प्रतिरक्षा के अधिकार का सद्भावनापूर्ण प्रयोग करते हुए कानून द्वारा उसे दी गई शक्ति का अतिक्रमण कर दे और बिना पूर्व चिंतन के और प्रतिरक्षा के लिए आवश्यक हानि से अधिक अपहानि करने के इरादे के बिना उस व्यक्ति की मृत्यु कारित कर दे जिस के विरुद्ध वह प्रतिरक्षा का अधिकार प्रयोग में ला रहा था, तो अपराधिक मानव वध हत्या नहीं है।
उदाहरण के रूप में लंबूजी ने छोटूजी को चाबुक मारने की कोशिश की लेकिन इस तरह नहीं कि छोटूजी को कोई गंभीर हानि या चोट पहुँचती। अपने बचाव में छोटूजी ने पिस्तोल निकाल ली, लेकिन उस से न डरते हुए लंबूजी ने चाबुक को न रोक कर हमला जारी रखा। छोटूजी को लगा कि अब पिस्तौल चलाए बिना वे चाबुक की मार से नहीं बच सकते पिस्तोल चला दी। गोली ऐसे घातक अंग पर लगी कि लंबूजी का काम तमाम हो गया। यहाँ छोटू जी लंबू जी की हत्या के लिए दोषी नहीं हैं, बल्कि अपराधिक मानव वध के दोषी हैं।
अपवाद-3
कोई व्यक्ति लोक सेवक होते हुए या किसी लोक सेवक की मदद करते हुए लोक न्याय को अग्रसर करने के लिए कार्य करते हुए कानून द्वारा दी गई शक्तियों से आगे बढ़ कर कोई ऐसा कार्य करता है जिसे वह कानूनी और लोकसेवक के नाते कर्तव्य के उचित निर्वहन के लिए सद्भावनापूर्वक आवश्यक होने का विश्वास रखते हुए मृतक के विरुद्ध कोई वैमनस्यता रखे बिना के किसी अन्य व्यक्ति की मृत्यु कारित कर देता है। तो यह हत्या नहीं है, अपितु अपराधिक मानव वध है। इस अपवाद में यह स्पष्ट किया गया है कि ऐसे मामले में यह बात तथ्यहीन है कि किस व्यक्ति ने आवेश दिलाया था या पहला हमला किया था।
अपवाद-4
अचानक झगड़े से उपजे क्रोध की तीव्रता में हुई अचानक लड़ाई में पूर्व चिन्तन के बिना, झगड़े का कोई अनुचित लाभ उठाने की मंशा के बिना या क्रूरतापूर्ण या असामान्य तरीके का प्रयोग किए बिना कारित की गई मृत्यु हत्या नहीं है, लेकिन अपराधिक मानव वध है।
अपवाद-5
यदि जिस की मृत्यु हुई है वह अठारह वर्ष से अधिक उम्र का हो कर भी अपनी सम्मति से मृत्यु होना सहन करता है या मृत्यु की जोखिम उठाता है उस जोखिम में उस का अपराधिक मानव वध हत्या नहीं है।
उदाहरण के रूप में लंबूजी ने अठारह वर्ष से कम आयु के छोटू जी को उकसाया कि वह स्वैच्छापूर्वक आत्महत्या कर ले। यहाँ छोटूजी अठारह वर्ष से कम उम्र के होने के कारण अपनी मृत्यु सहन करने या जोखिम उठाने की सम्मति देने में असमर्थ थे। इस कारण से लंबू जी ने हत्या का दुष्प्रेरण किया है।
इच्छित व्यक्ति के स्थान पर किसी अन्य व्यक्ति की हत्या या अपराधिक मानव वध
भा.दं.संहिता की धारा 301 में स्पष्ट किया गया है कि……
यदि कोई व्यक्ति कोई ऐसा कार्य कर के जिस से उस का इरादा किसी व्यक्ति की मृत्यु कारित करना हो या ऐसा करने से किसी की मृत्यु संभाव्य हो किसी ऐसे व्यक्ति की मृत्यु कारित कर देता है जिस की मृत्यु कारित करना उस का उद्देश्य नहीं था। यद्यपि यहाँ उस का इरादा उस व्यक्ति की मृत्यु कारित करना नहीं था जिस की उस ने मृत्यु कर दी है। उस व्यक्ति द्वारा कारित की गई मृत्यु उसी तरह अपराधिक मानव वध या हत्या है जिस तरह उस व्यक्ति द्वारा इच्छित व्यक्ति की मृत्यु कारित करना होती।
धारा 302 से धारा 306 में विभिन्न श्रेणियों के अपराधिक मानव वध के लिए दंडों की व्यवस्था की गई है, जिस की चर्चा हम आगे करेंगे।
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5 Comments
थोड़ी थोड़ी वकालत अब हम भी सीख गये है आपकी इस कक्षा मे जुडने के बाद ।
Rochak jaankaaree, aabhaar.
( Treasurer-S. T. )
आप लोगों को कानून की जानकारी बड़े सरल शब्दों में दे रहे हैं….सचमुच बहुत अच्छा कार्य है
यहाँ छोटू जी लंबू जी की हत्या के लिए दोषी नहीं हैं, बल्कि अपराधिक मानव वध के दोषी हैं। दिनेश जी जरा इस बात को समझा कर बताये कि दोनो यानि हत्या ओर मानव वध के दोषी मै फ़र्क क्या है आप का आभारी
बहुत ही जन सामान्य की भाषा मे आपने इस कानून के फ़र्क बताये जो कि आज से पहले समझ मे नही आये थे. बहुत धन्यवाद आपका.
रामराम.