अपराधिक मानव वध कब हत्या है?
|पिछले आलेख में हम ने भा.दं.संहिता की धारा 299 में परिभाषित ‘अपराधिक मानव वध’ पर बात की थी। धारा 300 में कुछ अपवादों को छोड़ कर हत्या को परिभाषित किया गया है। इन अपवादों पर हम बाद में बात करेंगे।
1. वह कार्य जिस के द्वारा मृत्यु कारित की गई है, मृत्यु कारित करने के इरादे से किया गया हो तो वह हत्या है, अथवा
2. कोई कार्य किसी व्यक्ति को ऐसी शारीरिक क्षति पहुँचाने के इरादे से किया गया हो जिस के लिए अपराधी जानता हो कि इस से उस व्यक्ति की मृत्यु कारित करना संभाव्य है, जिस को ऐसी क्षति पहुँचाई गई है और उस की मृत्यु हो गई हो, अथवा
3. कोई कार्य जो ऐसी शारीरिक क्षति पहुँचाई जाने के इरादे से किया गया हो जो प्रकृति के सामान्य अनुक्रम में मृत्यु कारित करने के लिए पर्याप्त हो, और जिस से मृत्यु हो गई हो, अथवा
4. कार्य करने वाला व्यक्ति यह जानता हो कि वह कार्य इतना खतरनाक है कि पूरी संभावना है कि वह मृत्यु कारित कर देगा या ऐसी शारीरिक क्षति कारित कर देगा जिस से मृत्यु होना संभाव्य है और वह बिना किसी पर्याप्त कारण के मृत्यु कारित करने या उपरोक्त प्रकार की क्षति पहुँचाने का खतरा उठाते हुए ऐसा कार्य करे।
आम पाठकों को उक्त भाषा कुछ जटिल प्रतीत हो सकती है। लेकिन फिर भी इसे दोहराकर पढ़ेंगे तो समझ आ जाएगा। फिर भी हम कुछ उदाहरणों की मदद ले सकते हैं। जैसे …..
1. यदि संता यदि बंता को मार डालने के लिए उस पर गोली चलाता है और परिणाम स्वरूप बंता मर जाता है तो संता हत्या करता है।
2. संता यह जानते हुए कि बंता ऐसे रोग से ग्रस्त है कि संभावित है कि एक प्रहार ही उस की मृत्यु कारित कर दे, शारीरिक क्षति कारित करने के इरादे से बंता पर प्रहार करता है और परिणाम स्वरुप बंता मर जाता है। यहाँ संता हत्या का अपराध करता है। हालांकि वह प्रहार किसी स्वस्थ व्यक्ति की मृत्यु कारित करने के लिए प्रकृति के सामान्य अनुक्रम में पर्याप्त नहीं होता। हाँ, यदि संता को यह पता नहीं होता कि बंता बीमार है और एक प्रहार भी उस के जीवन के लिए घातक हो सकता है तो वह हत्या का दोषी नहीं होता।
3. संता इरादा कर के बंता पर तलवार या लाठी से ऐसा घाव पहुँचाता है जो प्रकृति के मामूली क्रम में किसी भी मनुष्य की मृत्यु कारित करने के लिए पर्याप्त है परिणाम स्वरूप बंता की मृत्यु हो जाती है। तो यहाँ संता बंता की हत्या का दोषी है, हालाँकि उस का इरादा बंता की हत्या करने का नहीं था।
4. संता बिना किसी कारण के मनुष्यों के एक समूह पर भरी हुई तोप चलाता है और उन में से एक की मृत्यु हो जाती है। संता यहाँ हत्या का दोषी है, हालांकि किसी व्यक्ति विशेष की हत्या करने का उस का कोई इरादा या पूर्व चिंतित परिकल्पना नहीं थी।
उक्त कार्यों के होते हुए भी कुछ अपवाद हैं जिन में अपराधिक मानव वध को हत्या नहीं माना जा सकता है। वे अपवाद कौन से हैं? इस पर आगे बात करेंगे? (जारी)
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11 Comments
उदाहरण देकर समझाना बहुत अच्छा लगा ।
उदाहरण देकर समझाना बहुत अच्छा लगा ।
Badhaayi ho, aapka ye lekh aaj AMAR UJALA men prakashit huaa hai.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
अच्छी जानकारी..आभार!
ज्ञानवर्धन हुआ।
शरदजी की जिज्ञासा का समाधान ज़रूर करें।
जोधपुर से कब लौट आए?
कानून की भाषा मे कई पेचोखम हैं लेकिन आप इसे बहुत सहज बनाकर प्रस्तुत कर रहे हैं । सेना मे एक देश का सैनिक दूसरे देश के सैनिक की जो हत्या करता है उसे किस श्रेणि मे रखा जायेगा ?
संता-बंता का उदहारण देकर समझना आसन बना दिया,
क्लिष्ट भाषा में लिखे कानूनों को यथेष्ट आसन बिधि से समझाने का आपका यह मानवीय कृत्य निश्चय ही सराहनीय है……..
हार्दिक आभार.
बहुत अच्छी जानकारी मिली. धन्यवाद.
रामराम.
"हाँ, यदि संता को यह पता नहीं होता कि बंता बीमार है और एक प्रहार भी उस के जीवन के लिए घातक हो सकता है तो वह हत्या का दोषी नहीं होता।"
द्विवेदी जी, बहुत अच्चे जानकारी आपने दी, मगर कभी-कभार सोचता हूँ कि कितनी हास्यास्पद ब्याख्या की है हमारे कानून ने, ह्त्या की और हत्यारे की ?
इस मसले पर स्पष्ठीकरण सटीक लगा. आभार.
सामान्य भाषा में पढ़कर कुछ राहत महसूस हुई और रिविजन भी हो गया।