'अपराध' क्या है?
|किसी भी देश में यदि अपराध अधिक हों तो समझा जाएगा कि उस देश की कानून और व्यवस्था की स्थिति ठीक नहीं है और वहाँ सामान्य जन जीवन सुरक्षित नहीं है। इस कारण से यह आवश्यक है कि अपराधों की रोकथाम के लिए देश में स्पष्ट विधि हो जिस के द्वारा यह परिभाषित हो कि क्या क्या कृत्य (कामों का किया जाना) या अकृत्य (कामों का न किया जाना) अपराध हैं। फिर यह भी आवश्यक है कि उन अपराधों के घटित होने पर उन का संज्ञान करने के लिए अधिकारी नियुक्त् किए गए हों। अपराध की सूचना प्राप्त करने का तंत्र हो, सूचना प्राप्त हो जाने पर उस के अन्वेषण (यह पता लगाने का कार्य लिए कि किस व्यक्ति ने यह अपराध किया है और उस के क्या क्या सबूत हैं? और उन्हें एकत्र करना) की पर्याप्त व्यवस्था हो। ऐसी न्याय पालिका हो जो इन अपराधों के आरोपों का विचारण कर के उस के लिए विधि द्वारा निर्धारित दंड दे सके। सभी व्यवस्थाओं में इस के लिए एक सुस्पष्ट दंड विधि और दंड प्रक्रिया की विधि का होना अनिवार्य है। भारत में दंड विधान के लिए भारतीय दंड संहिता-1860 है तथा अन्य अनेक अधिनियमों के द्वारा अनेक कृत्यों और अकृत्यों को अपराध घोषित किया गया है। इन सभी अपराधों के विचारण औरअपराधियों को विधि द्वारा निर्धारित किए गए दंड देने के लिए दंड प्रक्रिया संहिता-1973 है।
अब प्रश्न है कि हम अपराध को किस तरह परिभाषित कर सकते हैं। भारतीय दंड संहिता की धारा-40 में अपराध को परिभाषित किया गया है-
धारा-40 “अपराध”- इस धारा के खंड 2 और 3 में वर्णित अध्यायों और धाराओं में के सिवाय ‘अपराध’ शब्द इस संहिता द्वारा दण्डनीय की गई किसी बात का द्योतक है।
खंड-2 अध्याय 4, अध्याय 5क और निम्नलिखित धाराएँ, अर्थात् धारा 64, 65, 67, 71, 109, 110, 112, 114, 115 ,116, 117, 187, 194, 195, 203, 211, 213, 214, 221, 222, 203, 211, 213, 214, 221, 222, 223, 224, 225, 327, 328, 329, 329, 330, 331, 347, 348, 388, 389, और 445 में “अपराध” शब्द इस संहिता के अधीन या एतस्मिन पश्चात् यथापरिभाषित विशेष या स्थानीय विधि के अधीन दण्डनीय बात का द्योतक है।
खंड-3 और धारा 141, 176, 177, 201, 202, 212, 216 और 441 में “अपराध” शब्द का अर्थ उस दशा में वही है जिस में कि विशेष या स्थानीय विधि के अधीन दण्डनीय बात ऐसी विधि के अधीन छह मास या उस से अधिक अवधि के कारावास से, चाहे जुर्माने सहित हो या रहित, दण्डनीय हो।
भारतीय दंड संहिता की उक्त खंड-3 में वर्णित उक्त धाराओं में जो कुछ कहा गया है उसे हम छोड़ दें तो हम पाते हैं कि वे कृत्य या अकृत्य “अपराध” हैं जिन्हें भारतीय दंड संहिता या किसी विशेष विधि तथा स्थानीय विधि के द्वारा दंडनीय बनाया गया है। यहाँ भारतीय दंड संहिता के अतिरिक्त अन्य सभी केन्द्रीय विधियाँ विशेष अधिनियम कही जाएंगी तथा राज्यों के लिए राज्यों द्वारा निर्मित विधियाँ स्थानीय विधियाँ कही जाएंगी। हम सामान्य रूप से “अपराध” उसे समझ सकते हैं जिसे देश या उस के किसी भी भाग में प्रचलित किसी भी विधि द्वारा दंडनीय बनाया गया हो।