अबू काज़मी पर महाराष्ट्र सरकार खजाना लुटा रही है?
|अब्बास काज़मी को कसाब की पैरवी करने के लिए 2500.00 रुपए प्रतिदिन और 50,000.00 रुपए प्रतिमाह फीस के रूप में प्राप्त होंगे। हमारे कुछ ब्लागर मित्रों को यह फीस अधिक प्रतीत होती है। उन्हों ने यह लिखा कि महाराष्ट्र सरकार उन पर पैसा लुटा रही है। मैं कुछ तथ्य आप के सामने रख रहा हूँ।
अब्बास काज़मी मुम्बई के वरिष्ठ फौजदारी वकील हैं। मैं खुद एक वकील होने के कारण यह जानता हूँ कि वकील के क्या दायित्व होते हैं? उन्हें अदालत ने अज़मल आमिर कसाब का वकील नियुक्त किया है। वे अदालत के अलावा किसी भी अन्य के प्रति जिम्मेदार नहीं हैं। अदालत को न्याय करने में मदद करना उन की जिम्मेदारी है। उन्हें जो जिम्मेदारी का काम मिला है उस में 1000 पृष्टों से अधिक का एक आरोप पत्र है जिस में कसाब पर कुल 86 आरोप लगाए गए हैं। इस तरह के मुकदमे में किसी पक्ष का वकील होना कोई मामूली काम नहीं है। इस मुकदमे में पैरवी करते हुए उन पर सारी दुनिया की निगाहें हैं। सारी दुनिया भर के अखबारों और दृष्य माध्यमों के संवाददाता उन के पीछे हैं। उन का एक एक मिनट देखा परखा जा रहा है। अनेक जासूसी ऐजेंसियाँ और पुलिस उन की निगरानी कर रही होंगी। वे अदालत और कानून द्वारा सौंपे गए महत्वपूर्ण दायित्व को निभा रहे हैं।
एक वकील जब साल भर में अपनी कमाई का हिसाब लगाता है तो उस की वास्तविक कमाई उसे मिलने वाली फीस की आधी से कुछ कम या कुछ ही अधिक होती है। शेष आधी फीस में उस के अपने कर्मचारियों जिन में टाइपिस्ट, क्लर्क, चालक आदि के वेतन, वाहन का खर्च, ऑफिस का खर्च, पुस्तकों, कम्प्यूटर, इंटरनेट व स्टेशनरी आदि का खर्च शामिल होता है।
यदि हम अनुमान लगाएँ तो अब्बास आज़मी को मात्र 25,000.00 रुपए प्रतिमाह इस काम के लिए मिलेंगे। जब कि मुम्बई में एक क्लर्क का वेतन इस से अधिक है। पर मेरी व्यक्तिगत मान्यता है कि अबू काज़मी को बहुत कम फीस दी जा रही है। यह उन का बड़प्पन है कि उन्हों ने इस फीस में यह काम करना स्वीकार किया है।इस के बावजूद यदि यह कहा जा रहा है कि उन पर सरकार खजाना लुटा रही है तो भारतीय जनतंत्र में किसी को कुछ भी कहने की पूरी आजादी है, कहता रहे। किसी की जुबान पकड़ी तो नहीं जा सकती।
आदरणीय ,द्विवेदी जी मै आपकी फीस वाली बात से सहमत तो सहम्त हू ,लेकिन कसाब जैसे लोगो को अदालत तक पहुंचने देने का हिमायती नही हू इन लोगो का तो एनकाउंटर घटना स्थल पर ही कर देना चाहिये ताकी अदालत का वक्त ही जाया ना हो ।
@राम त्यागी,
अदालत औसतन 20 दिन से अधिक काम नहीं करती, एक माह में। और इस हिसाब से 50,000.00 से अधिक एक माह में नहीं मिल सकते।
आपने लिखा है की २५ हजार वो क्लर्क वगैरह की फीस में खर्च करेगा तो २५ हजार बचे , पर इसमें कुछ प्रश्न है मेरे दिमाग में, आपका स्पष्टीकरण चाहूँगा –
१. २५०० रुपये प्रतिदिन के हिसाब से ७५००० एक महीने के होते है, तो कुल वेतन ७५००० + ५०००० = १२५००० हुआ
२. तो २५ हजार निकालने के बाद भी १ लाख बच रहे है
३. २५ हजार एक महीने के ऑफिस एक्सपेंस पर कुछ ज्यादा नहीं है, क्या सारे केसेस का खर्चा आजमी साहब यही से निकालेंगे या आप कह रहे है की लगभग २५ हजार इस केस पर ही हर महीने खर्च होंगे.
४. एस गरीब देश में १२५००० एक महीने के कुछ ज्यादा नहीं है ? इधर तो लोग ५०० रुपये में भी खर्चा चला लेते है.
धय्न्वाद आपके समय के लिए – राम
यह हमारा सौभाग्य है कि ऐसे भावना प्रधान मामलों पर आप यथार्थ की रौशनी डालते हैं और हमें तर्क से बात समझा देते हैं। अन्यथा मैं भी यही सोचती कि गलत हो रहा है। शायद इसीलिए कहते हैं कि जिसका काम उसी को साजे…।
घुघूती बासूती
dhiru singh {धीरू सिंह} वाला प्रश्न मेरे दिमाग में भी आया था पर अब तो उसका भी उत्तर आ गया है. तो फिलहाल शंके की कोई गुंजाइश नहीं है 🙂
@dhiru singh {धीरू सिंह}
मुम्बई हमले का प्रकरण एक विशेष अदालत सुन रही है जो सोमवार से शुक्रवार तक इसी केस की सुनवाई करेगी। इस केस की सुनवाई सुबह 11 बजे से पाँच बजे तक चलेगी। जिस में काज़मी का हाजिर रहना जरूरी है। इस काम के अलावा वकील को कम से कम चार घंटे उस की तैयारी पर भी लगेंगे। अन्य मुकदमों की सुनवाई का काम काजमी साहब नहीं करेंगे। न ही उन्हें किसी दूसरे केस में जाने को समय नहीं मिलेगा। उन की फीस प्रतिदिन के हिसाब से तय हुई है। यदि किसी दिन काम न हुआ तो फीस नहीं मिलेगी।
Mere liye yah ekdam nayi jankari hai..
Aachha hua aapke lekh ke maadhyam se janne ka mouka mila…Aabhar
वकील साब मेरे हिसाब से आपने ये केस जीत लिया है।
I think there should always be professional approach instead of emotional approach…U r right in ur views.
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विश्व पर्यावरण दिवस(५ जून) पर "शब्द-सृजन की ओर" पर मेरी कविता "ई- पार्क" का आनंद उठायें और अपनी प्रतिक्रिया से अवगत कराएँ !!
सही बात को तर्कपूर्ण ढंग से रखना आपकी विशेषता है। बधाई।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
kya kazmi sahab ek hi mukaddma ladenge is dauraan
अपने स्थिति बहुत स्पष्ट कर दी है और आशा है इससे फ़ीस वाले पहलू पर काफ़ी रोशनी डल चुकी है.
रामराम.
आपके नजरिये और आम आदमी के नजरिये में फरक होना स्वाभाविक है परन्तु भावनाओं से अलग करके इसको देखनें की जरूरत है ,इस मामले में संभवतः आप सही हैं .
आप के एक एक शव्द से सहमत हुं,सचाई भी तो सामने ऎसे ही आती है, ओर सबूत भी, बहुत ही सही ढंग से आप ने सारी बात लिखी.
धन्यवाद
Bhavnaon ke pare yatharthparak jaankari di hai aapne.
@ajay kumar jha
अजय जी, अब्बास आज़मी को सामान्य नियमों के तहत वकील नियुक्त नहीं किया गया है। उस के लिए तो कोई तैयार ही नहीं था। फिर मुकदमे का वैश्विक महत्व, आकार, काम का परिमाण और वकील की वरिष्ठता को देखते हुए अदालत ने उसे विशेष रूप से नियु्क्त किया है और अदालत ने उक्त सब बातों को देखते हुए सरकार से कहा था कि उचित फीस तय की जाए। सरकार ने सभी तथ्यों को ध्यान में रखते हुए यह फीस तय की है।
dinesh jee, isse itar mera ek prashn ye hai ki yadi sarkaar ne unhein kasaab kaa wakeel amicus curaie ke roop mein hee niyukt kiyaa hai to kyaa uskee fees itnee tay kee jaa saktee hai…kya uske liye adhiktam nyuntam fees tay nahin hai……
@संजय बेंगाणी
संजय जी, यह दृष्टिकोण भारतवासियों का नहीं केवल मात्र 10-5% लोगों का है। आज विश्व पूँजीवाद के युग मे यह दृष्टिकोण आदिम युग का ही कहा जाएगा, जब दो कबीले भिड़ जाते थे तो जब तक एक कबीले के अन्तिम व्यक्ति के जीवित रहते भिड़न्त जारी रहती थी। क्या आज इस दृष्टिकोण से प्रत्येक भारतवासी को पीछा नहीं छुड़ाना चाहिए?
फिर कसाब की ट्रायल मामूली नहीं है, इस ट्रायल से भारत को दुनिया के सामने बहुत कुछ साबित करना है। इसे आप अच्छी तरह समझते हैं।
भारतवासियों का दृष्टिकोण यह है कि जो सरेआम हत्यारा है उस पर लोगो के टेक्स का पैसा उड़ाया जा रहा है. उन्हे फीस से या वकील से शिकायत नहीं है.
आपकी बात भी सही है. वकील के हिसाब से मासिक 25 हजार कम वेतन है.