अभियुक्त के लिए वकील क्यों जरूरी है?
|अदालत ब्लाग की खबर बाप, तीन बेटियों के यौन शोषण का दोषी पाया गया पर ‘अलग सा’ जी की एक टिप्पणी है “ऐसे लोगों की वकालत करने वाले वकीलों को भी वही सजा होनी चाहिये जो अभियुक्त को मिले।”
आज क्रिसमस है, मसीह का जन्म दिन! उन्हें सजा के बतौर क्रॉस पर लटका दिया गया था। यदि किसी भी अपराध की सूचना पाते ही यह मान लिया जाए कि अपराध करने का आरोप जिस व्यक्ति पर लगाया गया है वही अपराधी है तो बाकी की प्रक्रिया की आवश्यकता ही नहीं रह जाती। न अन्वेषण की कि क्या अपराध इसी व्यक्ति ने किया है? और न ही अभियुक्त पर मुकदमा चलाए जाने की। उसे सूचना प्राप्त होते ही सीधे सजा सुना कर सजा का निष्पादन कर देना चाहिए।
लेकिन इतिहास उन किस्सों से भरा पड़ा है जिन में निरपराधों को सजा सुनाई गई और दंड दिया गया। क्या किसी भी व्यक्ति को जो वास्तव में किसी भी अपराध का कर्ता नहीं है, केवल मात्र संदेह के आधार पर या फिर केवल उस पर लगे आरोप के आधार पर सजा दे देनी चाहिए? यदि ऐसा होता है तो सत्तासीन व्यक्ति हर उस व्यक्ति को सजा देने लगेंगे जो उन के मार्ग में किसी भी प्रकार से बाधा बना हुआ है। यही कारण है कि न्याय के सिद्धान्त बने। कि किसी भी व्यक्ति को तब तक सजा नहीं दी जाए जब तक संदेह से परे यह साबित न हो जाए कि वह व्यक्ति अपराधी है और किसी सजा का भागी है।
जो न्याय का तंत्र है। वहाँ सभी कुशल व्यक्ति काम करते हैं। अन्वेषक यह अन्वेषण करता है कि अपराध करने वाला व्यक्ति कौन है? उस के विरुद्ध सबूत जुटाता है। पर्याप्त सबूत होने पर वह अभियोग को अदालत के सामने पेश करता है। यहाँ यदि अन्वेषक किसी प्रकार की चूक करता है या फिर अभियुक्त से द्वेष रखता है या अपने कठोर कर्तव्य को आसान काम में बदलने के लिए फर्जी सबूत तैयार कर अभियोग को अदालत के सामने पेश कर सकता है। इस लिए यह आवश्यक है कि अदालत सबूतों की पर्याप्तता को देखे। अदालतें किसी भी अभियोग को तभी स्वीकार करती है जब कि अभियुक्त के विरुद्ध अभियोजक अदालत के समक्ष अपराध को प्रमाणित कर सकने वाले पर्याप्त सबूत पेश करता है। यदि सबूत ऐसे हों जिन से अपराध को साबित किया जाना ही संभव नहीं हो तो अदालत ऐसे अभियोग को सुनवाई के लिए ही स्वीकार नहीं करती। इस अवसर परअदालत के समक्ष अभियोजक तकनीकी तर्क प्रस्तुत करता है कि किस प्रकार से उस के द्वारा जुटाए गए सबूत पर्याप्त हैं। इस स्तर पर क्या अभियुक्त को यह अवसर नहीं मिलना चाहिए जिस से वह जुटाए गए सबूतों की अपर्याप्तता को अदालत के सामने बता सके। यह काम सिर्फ कानून का जानकार और अभ्यासी ही कर सकता है। एक साधारण व्यक्ति नहीं जिस पर अभियोग चलाया जा रहा है। इस स्तर पर वकील की उसे नितांत आवश्यकता है।
इस के बाद अदालत में सबूतों की जाँच की जाती है जो दस्तावेज या वस्तुएँ और
प्रत्यक्ष दर्शी व्यक्तियों की गवाही के रूप में होती हैं। यहाँ यह महत्वपूर्ण है कि कोई दस्तावेज किन परिस्थितियों में तैयार हुआ? किन परिस्थितियों में वस्तुओं का संग्रह हुआ और वे किस प्रकार से एक अभियोग को साबित करने के लिए पर्याप्त हैं। इन दस्तावेजों में से कोई फर्जी तो नहीं है? वस्तुएँ पर्याप्त रूप से सावधानी से एकत्र की गई हैं या नहीं? वे अपराध या उस के किसी एक भाग को बिना किसी संदेह के साबित करती हैं या नहीं? जो लोग गवाही दे रहे हैं उन में से कोई झूठ तो नहीं बोल रहा है? या सुनी सुनाई बात तो नहीं कह रहा है? या कोई काल्पनिक बयान तो नहीं दे रहा है? इन सब की जाँच आवश्यक है। इन की जाँच के लिए एक तकनीकी और अभ्यासी व्यक्ति की मदद जरूरी है। यह व्यक्ति कोई वकील ही हो सकता है।
इस तरह आप देख सकते हैं कि किसी भी अभियुक्त का कोई वकील होना जरूरी है। वरना रोज जिन लोगों को सजा सुनाई जाती है उन में 10 में से 9 व्यक्ति निरपराध होंगे।
कोई भी वकील किसी अपराध की पैरवी नहीं करता। वह किसी अपराधी को बचाता भी नहीं है। अभियुक्त के वकील की जिम्मेदारी यह है कि वह यह मान कर कि वह निरपराध है सबूतों और गवाहियों की जाँच में भाग लेता है। वहीं अभियोजक जो वकील होता है वह सबूतों और गवाहियों की जाँच में अभियोग को साबित करने के लिए भाग लेता है। जज उन की मदद से सबूतों और गवाहियों की जाँच करता है और किसी निष्कर्ष पर पहुँचता है। अभियोजक और अभियुक्त का वकील दोनों ही अदालत की जाँच कार्यवाही में अपनी अपनी जिम्मेदारियों को निभाते हैं। उन का दर्जा अदालत के अधिकारी का होता है। उन कि प्राथमिक जिम्मेदारी न्याय के प्रति होती है। वे अभियोजक या बचाव पक्ष के वकील के रूप में अपनी भूमिकाएँ और दायित्वों का निर्वाह करते हैं। यदि बचाव पक्ष का वकील न हो तो निरपराध लोगों को दंड मिलने लगेगा और न्याय न्याय ही नहीं रह जाएगा।
अब आप समझ गए होंगे कि एक अभियुक्त को वकील दिया जाना कितना आवश्यक है। एक निरपराध को दंड से बचाने के लिए और न्याय की गरिमा बनाए रखने के लिए, बल्कि न्याय को न्याय बनाए रखने के लिए।
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व्यक्तिगत रूप से मैं इस तर्क से सहमत हूँ कि हरेक को अपना पक्ष रखने का अवसर मिलना चाहिए. और एक वकील अपने मुवक्किल की बात को सही ढंग से कानून के सामने रखने का कार्य करता है. अतः किसी भी प्रकार का मुजरिम क्यों न हो उसे अपने वकील रखने का पूर्ण अधिकार है और इसपर किसी को भी आपत्ति नहीं होनी चाहिए. हाँ, वकील को अपना धर्म मुवक्किल के बातों को, मुवक्किल के पक्ष को सही ढंग से कानून के समक्ष पेश करना होना चाहिए न कि झूठी बयान देकर या झूठी कहानी गढ़कर मुवक्किल को बचाना. वकील को अपने मुवक्किल को बचाने के लिए सिर्फ उसके पक्ष, उसके विचार को कानून के सामने लाना है और इसी आधार पर यह तर्क देना है कि किस प्रकार कानून के अनुसार वह निर्दोष है या कम सजा पाने के लायक है. पर किसी वकील का यह कार्य/धर्म नहीं है कि वह ग़लत व झूठी कहानी गढ़कर समाज के आंखों में धूल झोंककर उसे बचाए. …………. यह बात भी सही है कि आज इसी प्रकार वकीलों द्वारा झूठी कहानी व झूठी गवाही के कारण ही निर्दोष को सजा हो जाती है अन्यथा यदि वकील झूठ का सहारा न ले तो निर्दोष को सजा नहीं हो सकेगी. वकील के इस प्रकार के कार्य जिसके झूठी व बनावटी कहानी के कारण आज निर्दोष को सजा मिल रही है व दोषी स्वतंत्र रह रहा है इसके बारे में मैं सबों का राय जानना चाहूँगा.
आपका
महेश
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न्याय प्रणाली के मौलिक सिद्धान्तों में यह शर्त शामिल है कि किसी भी आरोपित को अपने बचाव का उचित व पर्याप्त अवसर अनिवार्य रूप से उपलब्ध होना चाहिए।
‘न्याय-दान’ एक सम्पूर्ण और सर्वांग प्रक्रिया है । तानाशाह और सामन्त ही इससे बचते हैं । वैसे भी वकील का काम अपने पक्षकार को बचाना नहीं, न्याय-दान मे सहायता करना होता है ।
मेरे परिचय क्षेत्र में ऐसे वकील हैं जो अपराधी का प्रकरण लेते समय ही स्पष्ट कर देते हैं कि न तो उसका बचना सम्भव है और न ही वे, उसे बचाने का काम करेंगे । वे, सारी बातें सामने रखकर, कोशिश्ा करेंगे कि कानूनों की सहायता से उसे कम से कम सजा मिले ।
कोई भी ‘व्यवस्था’ सम्पूर्ण रुप से न तो निर्दोष होती है और न ही पूर्णत: दूषित ।
आपकी बातें असहमत होने की रंच मात्र भी सम्भावना नहीं छोडतीं ।
बिना न्यायिक प्रक्रिया के सजा मिलने लगी तो पुलिस वाले जिसे मर्जी आरोपी बना देंगे ! कोई भी व्यक्ति किसी पर भी गंभीर आरोप लगा कर सजा दिलवा देगा ! किसी भी अपराध के लिए न्यायिक प्रक्रिया जरुरी है और वो तभी पुरी की जा सकती है जब आरोपी को भी अपना पक्ष रखने लिए वकील मिले !
यह सच है कि आज कल दुसरो को फ़साने के लिये भी,ज्यादाद हडपने के लिये, परिवारिक दुशमनी निकालने के लिये ऎसे केस होते है, कुछ समय पहले एक फ़िल्म देखी थी राज पाल यादव की, नाम था Undertrial ओर उस फ़िल्म मै भी ऎसे ही केस पर कहानी चलती है.
बाकी विवेक जी की बात से सहमत हु.
धन्यवाद
वकील केवल गान्धीजी के उदाहरण को ध्यान में रख कर चलें। बाकी तो जन भावना से टीका टिप्पणी लोग हर किसी के लिये करते ही रहते हैं। वह स्थाई नहीं होती।
आदरणीय सर,
सिर्फ़ इसलिए नहीं के मैं भी एक वकील हूं, बल्कि एक आम न्यायप्रिय जन होने के नाते भी,
मैं आपके द्वारा इस लेख में रखे गए इस अति महत्वपूर्ण, सामाजिक, व्यवहारिक, नैतिक और न्यायिक पक्ष से १०० फ़ीसदी सहमत हूं.
आजकल माहोल ही ऐसा है ! क्या किया जा सकता है !
निष्पक्ष न्याय के लिए अभियुक्त को वकील देना तो जरूरी है
वकील सबको मिलना चाहिए पर वकील को भी चाहिए कि जब उन्हें मालूम हो कि केस झूठा है तो उसे सही साबित करने के लिए हथकण्डे न अपनाएं . गांधी जी की आत्मकथा में हमने पढा है कि उन्होने झूठा केस छोड दिया था . पर आजकल तो बडा वकील वही है जो झूठ को अदालत में सच साबित कर दे . कृपया अन्यथा न लें . कुछ गलत बोल दिया हो तो क्षमा प्रार्थी हूँ .
एक निरपराध को दंड से बचाने के लिए और न्याय की गरिमा बनाए रखने के लिए, बल्कि न्याय को न्याय बनाए रखने के लिए….
निरपराध लोगो को कभी कभी भी सज़ा हो जाती है..
100 अपराधी भले छूट जाये मगर किसी एक निर्दोस को सजा ना मिले, मेरी समझ में कुछ ऐसी ही कोशिश है हमारे कानून कि..
दिनेश जी,
मेरी बात से आपको ठेस लगी, तहे दिल से क्षमा चाहता हूं।
आप का कहना सही है और सभी जानते हैं कि यदि बचाव पक्ष ना हो तो सक्षम लोग कुछ भी करवा सकते हैं। पर वही सक्षमता तब भी आड़े आती है जब दोषी को बचाने के लिये कानून की पेचदिगियों को ढाल बना लिया जाता है। मेरे कहने का आशय यह था कि बात जब साफ हो जाए तो झूठ को सच साबित करने के प्रयासों को भी हतोत्साहित करने का प्रावधान होना चाहिये। ऐसे पूराने उदाहरणों को यदि छोड़ भी दें तो अभी पढने में आया था कि आतंकी कसाब का केस लड़ने के लिये भी एक वकील तैयार है। वैसे मेरे मन में भी इस पेशे के लिये आदर भाव है जो और भी पुख्ता हुआ था जब 36गढ में बलात्कार के आरोपियों का केस लड़ने से वहां के वकीलों ने साफ इंकार कर दिया था।
मेरी किसी बात को अन्यथा ना लें। क्योंकि वह किसी पूर्वाग्रह या दुर्भावना के अंतर्गत नहीं लिखी गयी थी। फिर एक बार क्षमा चाहता हूं।
सहमत हू आपसे.. कभी कभी निरपराध लोगो को भी सज़ा हो जाती है… न्याय प्रणाली के लिए ज़रूरी है वकील.. बढ़िया लेख