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और किसी देश में भी भारत जैसा चैक अनादरण के अपराध जैसा कानून है?

 पिछले आलेख में मैं ने चैक अनादरण के अपराध पर लिखे आलेखों पर आई जिज्ञासाओं और प्रश्नों पर बात की थी आज उस सिलसिले को जारी रखता हूँ…..

बवाल भाई कहते हैं, ‘कि धारा १३८ के अधिकांश मुकद्दमें सू्दखोरों ने दाखिल करके बढ़ाए हैं,  मेरे आब्ज़रवेशन के मुताबिक।  उधार के बदले चैक अनादरण के ज़्यादातर मुआमलात को अब आयकर क़ानून (धारा २६९ एस एस और २६९ यू) की ज़द में लाने से मेरे हिसाब से कमी आ सकती है।  मनी लैंडर्स क़ानून आदि फिर से सक्रिय किए जावें तो बेहतर हो। ख़ैर।’
  
बवाल भाई का कहना बिलकुल सही है।  चैक अनादरण के अपराध में शिकायत कर्ता से इस बात की कोई पूछताछ ही नहीं है कि उस के पास यह चैक धारण करने का कारण क्या था और वह सही है भी या नहीं।  इस बात का लाभ गैर कानूनी रूप से सूदखोरी का काम कर रहे लोग भारी मात्रा में उठा रहे हैं।  ब्याज पर रुपया उठाने के जिस धंधे को कानून के जरिए नियमित किया गया था।  वह कानून ही बेकार सिद्ध हो गया है।  या तो संसद और विधानसभाएँ किसी भी ब्याज पर किसी को भी रुपया उधार देना और उस का कोई हिसाब न देना कानूनी कर दे,   या फिर चैक के अनादरण की शिकायत करने वाले के लिए इन सब बातों को प्रमाणित करना आवश्यक कर दे।  वरना ये विसंगतियाँ कानून के प्रति आस्था को ही समाप्त कर देंगी।

ताऊ रामपुरिया जी कहते हैं कि, ‘चेक के अनादरण को दंडनीय मामला बनाने के पीछे नीयत तो नेक थी, और फ़र्क यह तो अवश्य ही आया है कि बोगस चेक देते समय आदमी सोचने अवश्य लगा है।  कुछ कठिनाइयां भी कम हुई हैं, पर जो मामले कोर्ट मे हैं उन पर त्वरित कार्यवाहियाँ शायद संसाधनों के अभाव मे नहीं हो पाती हैं। 

ताऊ जी बिलकुल सही कह रहे हैं कि इस कानून से चैक देते समय व्यक्ति अब सोचने लगा है।   मेरा जैसा आदमी भी अब चैक सिर्फ बिजली, पानी और टेलीफोन के बिल भरने के काम में ही लाता है।  शेष सभी भुगतान नकद करने लगा है।  संसाधनों की बात मैं लगातार करता आ ही रहा हूँ कि यदि न्याय व्यवस्था के संसाधन तुरंत ही बढ़ाने शुरू नहीं किए तो इतनी बड़ी खाई बन जाएगी कि उसे पाटना असंभव हो जाएगा। कहीं ऐसा न रो कि एक विकासशील देश विकसित देश में बदलने के स्थान पर पतनशील व्यवस्था का देश बन कर रह जाए।

तकनीक दृष्टा जी जो अमरीका से हैं वे अंग्रेजी में कहते हैं कि, ‘मुझे भारतीय बैंकों के बारे में पता नहीं, पर यहाँ संयुक्त राज्य के बैंक चैक के अनादरित होते ही 5 से 10 डालर का दंड वसूलते हैं।  यदि बैंक भारत में भी ऐसा करने का प्रस्ताव करें तो उसे भारत में भी मान्य होना चाहिए।’       

भाई तकनीक दृष्टा जी, भारत में भी चैक अनादरित होने पर बैंकों द्वारा दंड वसूली की जाती है। चैक अनादरण को अपराध बनाया जाना उस से अलग है।  लगता है कि ऐसा कानून केवल भारत में ही है।  अन्य देशों में ऐसे कानून की जानकारी फिलहाल मुझे नहीं है। यदि कहीं हो तो जानकारी अवश्य दे,  जिस से उस की तुलना भारतीय कानून से की जा सके।

आलेख इस बार भी अपनी सीमा से बड़ा होता जा रहा है इस लिए इस सिलसिले को जारी रखते हुए यहीं विराम देता हूँ। चैक अनादरण के अपराध पर लिखे आलेखों पर आई जिज्ञासाओं और प्रश्नों पर बात अगले आलेख में जारी रहेगी।  (जारी)
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