चैक अनादरण के अपराध का भारत-भू पर अवतरण
|विगत आलेख में हम ने बात की थी हुँडी और चैक के फर्क की। चैक में खास बात यह थी कि उस में बैंक एक भुगतान अभिकर्ता के रूप में काम कर रहा है। यदि बैंक के चैक के महत्व को बढ़ाना था तो चैक अनादरण को अपराध बनाने में बैंक की भूमिका महत्वपूर्ण होनी चाहिए थी। लेकिन यहाँ बैंक की भूमिका गौण है। बैंक का काम सिर्फ इस बात का प्रमाणपत्र देना है कि चैक की वैधता की अवधि में उस का भुगतान किसी कारण से संभव नहीं था। यह प्रमाण पत्र देने के साथ ही बैंक की भूमिका समाप्त हो जाती है। सबसे मजे की बात यह है कि बैंक द्वारा यह प्रमाण पत्र जारी कर देने के बाद भी चैक का अनादरण कोई अपराध नहीं बनता।
बैंक से अनादरण का प्रमाण पत्र प्राप्त हो जाने के 30 दिनों के भीतर चैक का धारक चैक जारी करने वाले व्यक्ति को एक लिखित सूचना प्रेषित करे कि अनादृत चैक की राशि पन्द्रह दिनों में चैक धारक को अदा की जाए अन्यथा चैक देने वाले के विरुद्ध अपराधिक कार्यवाही की जाएगी। अब पन्द्रह दिनों के भीतर यदि चैक जारी करने वाला व्यक्ति उक्त चैक की राशि भुगतान कर चैक वापस प्राप्त कर लेता है या भुगतान की रसीद प्राप्त कर लेता है तो चैक अनादरण अपराध बनते बनते रह जाता है। लेकिन यदि चैक जारी करने वाले ने चैक धारक को चैक की राशि इस अवधि में अदा नहीं की तो फिर चैक का अनादरण एक अपराध बन जाता है।
अब भी चैक अनादरण एक ऐसा अपराध है पन्द्रह दिनों का चैक राशि भुगतान का नोटिस मिलने के बाद पन्द्रह दिनों की अवधि समाप्त हो जाने के 30 दिनों में उस की शिकायत चैक धारक द्वारा अदालत को प्रस्तुत न की जाए तो फिर उस मामले में किसी प्रकार की कार्यवाही नहीं की जा सकेगी। कोई भी उस अपराध का संज्ञान नहीं कर सकेगा।
अब आप की समझ में बात आ गई होगी कि चैक अनादरण का बैंक या बैंक चैक की प्रतिष्ठा से कोई लेना देना नहीं है। यह केवल उधार वसूल करने वाले लोगों और संस्थाओं की सुविधा के लिए बनाया गया कानून है। धन की किसी भी प्रकार की वसूली सदा से एक दीवानी मामला है। लेकिन यदि वसूल करने वाले व्यक्ति के पास एक चैक है तो फिर यह एक अपराधिक मामला बन जाता है। इस सीख का नतीजा यह हुआ कि अब कोई लेन देन ऐसा नहीं छूटा है जिस के लिए धन की वसूली चाहने वाला व्यक्ति सुरक्षा में एक अदद चैक की मांग न करता हो।
प्रत्येक प्रकार की धन वसूली के मामलों में अदालत द्वारा यह निर्धारित (डिक्री पारित) कर देने पर कि धन वसूली योग्य है। एक निष्पादन प्रार्थना पत्र पर वसूली की जा सकती है और ऋणी को जेल भेजने का भी प्रावधान है। लेकिन चैक अनादरण के मामले में यह निर्धारण आवश्यक ही नहीं है कि कोई धन वसूली योग्य था भी या नहीं? बस चैक अनादरण होना चाहिए। उस के 30 दिनों में पन्द्रह दिनों में भुगतान करने का नोटिस होना चाहिए और नोटिस मिलने की तिथि से पन्द्रह दिनों में भुगतान न होने पर अगले तीस दिनों मे एक शिकायत बाकायदे अदालत में पेश होना चाहिए।
वास्तव में हो क्या रहा था? हो यह रहा था कि देश में आबादी और मुकदमों की संख्या के लिहाज से अदालतें जरूरत की 20 प्रतिशत भी नहीं हैं। वे दुगना काम कर के और न्याय की गुणवत्ता से समझौता कर के 40 प्रतिशत काम का निपटारा करती हैं। नतीजा यह है कि शेष 60 प्रतिशत मामले अदालतों में धूल फांक रहे हैं। ऐसे में दीवानी प्रक्रिया से धन वसूली के लिए कम से कम दो पीढ़ियों की जरूरत होगी। ऐसी हालत में देशी विदेशी (खास तौर पर विदेशी ही) वित्तीय कंपनियाँ अपना कारोबार करने
को तैयार नहीं थी और यह कारोबार न होता तो देश में माल की बिक्री के लिए करोडों अरबों रुपयों के कर्जों के लिए धन का निवेश होना संभव नहीं था। यदि ऐसा होता तो देश में रौनक न होती। जो विदेशी पूँजी यहाँ लगी है। वह छूने को नहीं मिलती।
पूँजी निवेशकों की माँग थी कि वसूली प्रक्रिया को सुगम बनाया जाए। लेकिन वह तब तक संभव न था जब तक कि दीवानी मुकदमों में एक वर्ष में डिक्री पारित करने की स्थिति उत्पन्न न कर दी जाए। लेकिन उस के लिए न्याय प्रणाली को चार-पाँच गुना वृद्धि चाहिए थी। इतना बड़ा निवेश भारत सरकार तो फिर भी सहन कर लेती क्यों कि उसे केवल केन्द्र शासित प्रदेशों, उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालयों की न्याय प्रणाली के खर्च की व्यवस्था करनी थी। लेकिन राज्य सरकारें उन के बूते की तो यह बात कतई नहीं थी। प्रधान मंत्री हर साल कम से कम एक बार मुख्यमंत्रियों और उच्चन्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों की बैठक में ये दायित्व राज्य सरकारों को याद दिलाते हैं। लेकिन राज्य सरकारों के कानों पर जूँ तक नहीं रेंगती। ऐसी हालत में एक ही रास्ता था जो अपनाया गया। इस तरह धारा 138 परक्राम्य विलेख अधिनियम का अवतरण इस भारत-भू पर हुआ।
निस्सन्देह अत्यन्त उपयोगी जानकारी आपके माध्यम से जन्समन्यको मिलती है मै आपकाबहुत बहुत आभरी हु
सर मैंने अपना बैंक अकाउंट खुलवाने के लिए एक चेक दिया था और बैंकवालो से कहा था क वो जब चेक लगाये तो मुझे २ दिन पहेले बता दे की मैं उसमे पैसे लगादू क्योकि उस समय अकाउंट में पैसे नही थे और मैं चाहता था की चेक अनादरण न हो पर मुझे बिना जानकारी दिए चेक लगा दिया जिससे चेक अनादरण हो गया तो इसका क्या समाधान है मुझे सिर्फ अकाउंट खुलवाना था कृपया जवाब दे
आम तौर पर बैंक नकद राशि से ही बैंक खाता खोलते हैं। मुझे आश्चर्य है कि बैंक खाता खोलने के लिए उन्हों ने चैक स्वीकार किया। आप को भी यदि अपने दूसरे बैंक के खाते में रुपया जमा ही करवाना था तो आप जिस बैंक में खाता खुलवा रहे थे उसी में पैसा जमा करवा देते। खैर।
अब चैक अनादरित हो ही गया है तो बैंक वाले आप का खाता नहीं खोलेंगे। यह कोई दायित्व के अधीन दिया गया चैक नहीं है इस कारण आप के विरुद्ध कोई कार्यवाही बैंक द्वारा नहीं होगी। यदि वे आप को चैक अनादरण के लिए लिखित नोटिस देते हैं तो आप १५ दिनों में राशि जमा करवा कर खाता खुलवा लें।
दिनेशराय द्विवेदी का पिछला आलेख है:–.व्यवस्थागत दोषों के विरुद्ध सामूहिक या संस्थागत कार्यवाही करने पर ही सुधार की गुंजाइश हो सकती है
Bahut sunder sir.
pehli bar aapke blog ke darshan kiye par man prafullit ho gaya. Is puneet karm me meri shubhkamnaye….
Jute rahe….
निस्सन्देह अत्यन्त उपयोगी। एक बार फिर दुख हुआ कि ब्लाग की दुनिया इतनी छोटी, इतनी सीमित क्यों है।
बहुत उपयोगी जानकारी.
====================
आभार
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
एक और सवाल, मैंने किसी को आगामी तिथि का चैक दिया, पर उसके धारक द्वारा चैक को बैंक में देने से पहले ही मैं भुगतान रद्द करने का फैसला करता हूँ. और चैक में लिखी तिथि से पहले ही बैंक से लिखित तौर पर, फलां क्रमांक के चैक के भुगतान को रोकने का अनुरोध करता हूँ, तो क्या बैंक उस चैक को रद्द कर सकता है? क्या यह चैक अनादरण होगा?
दिनेशराय जी, एक छोटा सा सवाल.. अगर मै अपने किसी विशवश्निया व्यक्ति को एक कोरा चेक साईन कर के दे दुं, जिस पर कोई तारीख ना हो, ओर कई वर्षॊ तक उस चेक की जरुरत ना पडे, इस बीच उस आदमी की नीयत बदल जाये, ओर वो अपनी मन पसंद रकम भर कर, बेंक मै उस चेक को दे, लेकिन बेंक मै उतने पेसे नहो तो… कार्यावाही किस पर होगी???? ओर अगर पेसे हो ओर वो निकलवा ले, लेकिन चेकधारक को कई साल बाद पता चले तो…. क्या उस चेक भुनाने वाले का कुछ कर सकते है, कानूनी तोर पर???
धन्यवाद
पूँजी निवेशकों की माँग थी कि वसूली प्रक्रिया को सुगम बनाया जाए। लेकिन वह तब तक संभव न था जब तक कि दीवानी मुकदमों में एक वर्ष में डिक्री पारित करने की स्थिति उत्पन्न न कर दी जाए।
वाकई आज इस कडी मे आपने कानून से अलहदा जाकर उनके बनाए जाने के मूल कारण को बताकर लोगो की एक बडी जिज्ञासा शांत की है. बहुत धन्यवाद.
रामराम.
अच्छा ज्ञानबर्द्धक लेख। धारा 138 अपरक्राम्य विलेख अधिनियम की जानकारी का इन्तजार है।
बहुत उम्दा जानकारीपूर्ण आलेख. निश्चित ही वसूली प्रक्रिया को सुगम बनाये जाने की महती आवश्यक्ता है. बहुत आभार इस आलेख के लिए.
दिनेशराय जी बहुत ही अच्छी जानकारी दी आप ने , इन मे बहुत सी बातो के बारे हमे पता ही नही था, बस सुनी सुनाई बातो पर ही यकीन रखते थे.
धन्यवाद
I am not sure how its dealt by Indian banks, but in the US banks as well as the individual/institution to whom the check was payable often ask for the check dishonor penalty ranging from $5-30 irrespective of the amount being deemed for transction by check. If the banks do ask for this is it accepted by law in India.