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पहले माँ के हाजिर न होने से खारिज दुर्घटना दावा क्या अब 18 वर्ष बाद चल सकता है?

प्रीति शुक्ला पूछती हैं…..

लगभग 18 साल पहले मेरे पिताजी का रोड एक्सीडेंट में देहान्त हो गया।  तब मैं लगभग 3 वर्ष की थी।   माँ मुझे ले कर नानी (माँ के मायके) के यहाँ आ कर रहने लगी।  जिस वैन से मेरे पिता जी का एक्सीडेण्ट हुआ था उस वैन को पुलिस द्वारा पकड़ा भी गया  था और क्लेम के लिए सम्बन्धित कोर्ट में मुकदमा भी चलाया गया था। परन्तु मेरी माँ अकेले होने के कारण ज्यादा दौड़ भाग नहीं कर सकी और मुकदमा दो-तीन साल के बाद रुक गया।   क्या ये मुकदमा पुनः चल सकता है?  यदि हाँ, तो मुझे और मेरी माँ को क्या करना होगा?  मुझे उचित सलाह देने की कृपा करें, मैं आप की बहुत आभारी रहूँगी।  कृपा कर के जवाब जल्दी से जल्दी देना। आप की अति महान कृपा होगी। 
( यह मेल मैं अपनी सहेली की सहायता से भेज रही हूँ)

उत्तर

प्रीति बहन!
यह पत्र आप का है या आप की मित्र का यह पता नहीं लग पा रहा है।  लेकिन यह उत्तर आप की ही समस्या मान कर दिया जा रहा है।

आप का मुकदमा नए सिरे से किया जा सकता है।  लेकिन यह देखना होगा कि जिस वैन से टक्कर हुई थी उस का जिस दिन दुर्घटना हुई थी उस दिन बीमा था या नहीं।  यदि बीमा हुआ तो मुआवजा मिलना आसान होगा, अन्यथा कुछ कठिन अवश्य हो जाएगा।

पहले कानून में यह बाधा थी कि मोटर एक्सीडेण्ट का मुकदमा दुर्घटना के बाद एक निश्चित अवधि तक ही पेश किया जा सकता था।  लेकिन अब बाधा नहीं है।  मुकदमा कभी भी पेश किया जा सकता है।  पहले किया हुआ मुकदमा आप की माता जी के उपस्थित न होने से खारिज हो गया होगा।  तो भी आप नए सिरे से यह मुकदमा दायर करवा सकती हैं।  आप यह मुकदमा उस क्षेत्र के मोटर दुर्घटना अधिकरण  में पेश कर सकती हैं जहाँ आप खुद रहती हैं।  इस के लिए आप को अदालत में पेशियों पर उपस्थित भी नहीं होना पड़ेगा।

आप को करना यह होगा कि जिस पुलिस थाने ने दुर्घटना कारित करने वाली वैन को पकड़ा था वहाँ से पता करना होगा कि वैन के ड्राइवर के विरुद्ध आरोप पत्र किस अदालत में पेश किया गया था।  वहाँ ड्राइवर के विरुद्ध मुकदमा चला होगा।  उस मुकदमें में पेश आरोप पत्र और उस के साथ संलग्न दस्तावेजों की नकलें लेनी पड़ेंगी।  उन के आधार पर क्लेम मुकदमा हो जाएगा। 

आप को अपने क्षेत्र की मोटर दुर्घटना के दावे सुनने वाले अधिकरण ( न्यायालय) में दावे लड़ने वाले किसी वकील से संपर्क करना चाहिए।  उस से मुकदमा दायर करने की फीस तय कर लेनी चाहिए।  आम तौर पर इस तरह के मुकदमे लड़ने वाले वकील फीस तभी लेते हैं जब दावे में निर्णय हो जाने पर दावेदार को पैसा मिल जाता है।  यह फीस स्थान भेद से 10 से 15 प्रतिशत होती है।  प्रारंभ में वकील को केवल दावा करने का खर्च ही देना पड़ता है।  जो लगभग एक-दो हजार रुपया होता है।  यह खर्च मुकदमे के लिए आवश्यक द्स्तावेज एकत्र करने और दावा पेश करने में होता है। 

आप वकील से संपर्क करें और जल्दी ही दावा पेश कराएँ।  फिर भी आप को किसी प्रकार की परेशानी हो तो आप तीसरा खंबा से सलाह कर सकती हैं। 

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