भारत सरकार या राज्य सरकार में लाभ का पद धारण करने वाला विधानसभा प्रत्याशी नहीं हो सकता ?
|विगत आलेख शासकीय कर्मचारी चुनाव हारने के बाद नौकरी में कैसे लौटे? पर एक टिप्पणी ज्ञान की प्राप्त हुई कि …
… लेकिन PSUs के जारी परिपत्र के अनुसार तो, यदि अधिकारी चुनाव लड़ना चाहता है तो त्यागपत्र देना होगा, कर्मचारी चुनाव लड़ना चाहे तो त्यागपत्र नहीं देना होगा। कर्मचारी के जीतने की सूरत में त्यागपत्र देना होगा!
इस टिप्पणी ने एक असमंजस उत्पन्न कर दिया है। इस के लिए यह आवश्यक है कि भारत के संविधान का अनुच्छेद 191 को पढ़ा जाए जो निम्न प्रकार है ….
Article 191 in The Constitution Of India 1949
191. Disqualifications for membership
(1) A person shall be disqualified for being chosen as, and for being, a member of the Legislative Assembly or Legislative Council of a State
(a) if he holds any office of profit under the Government of India or the Government of any State specified in the First Schedule, other than an office declared by the Legislature of the State by law not to disqualify its holder;
(b) if he is of unsound mind and stands so declared by a competent court;
(c) if he is an undischarged insolvent;
(d) if he is not a citizen of India, or has voluntarily acquired the citizenship of a foreign State, or is under any acknowledgement of allegiance or adherence to a foreign State;
(e) if he is so disqualified by or under any law made by Parliament Explanation For the purposes of this clause, a person shall not be deemed to hold an office of profit under the Government of India or the Government of any State specified in the First Schedule by reason only that he is a Minister either for the Union or for such State
(2) A person shall be disqualified for being a member of the Legislative Assembly or Legislative Council of a State if he is so disqualified under the Tenth Schedule
इस तरह यह स्पष्ट है कि अनुच्छेद 191 (1) (a) के अनुसार कोई भी व्यक्ति जो भारत सरकार अथवा किसी राज्य सरकार में लाभ का पद धारण करता है तो उसे विधानसभा सदस्य बनने के लिए अयोग्यता माना जाएगा।
यह असमंजसता इस लिए है कि ऐसी कोई कंपनी जिस में भारत सरकार या राज्य सरकार के 25 % या उस से अधिक शेयर हैं उन का कोई भी अधिकारी विधानसभा के चुनाव में प्रत्याशी नहीं हो सकता है।
हाँ एक कर्मचारी जो कि अधिकारी नहीं है वह चुनाव लड़ सकता है। लेकिन उसे चुनाव जीतने पर अपने पद से त्यागपत्र देना पड़ेगा। क्यों कि वह अपने सेवा नियमों के अनुसार अब नौकरी में नहीं रह सकता।
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अच्छी जानकारियां हैं ।
भारतीय जीवन बीमा निगम, भारत सरकार के पूर्ण नियन्त्रण वाला उपक्रम है । इसके कुछ कर्मचारियों ने चुनाव से पर्याप्त समय पूर्व, चुनाव लडने की अनुमति मांगी थी । एन्हें अनुमति मिलजी तो जरूर लेकिन चुनाव हो जाने के बाद ।
क्या यह सम्भव है कि चुनाव से, महीने-दो महीने पहले अनुमति मांगने वाला कर्मचारी, अनुमति न मिलने पर चुनाव लड सके । उसने तो भरपूर समय पहले अनुमति मांगी । अनुमति मिलने में देर हो तो उसका क्या दोष ।
जानकारी का धन्यवाद ।
चलिए हम सरकारी नौकरी में नहीं है उम्र पुरी होते ही तैयारी करते हैं चुनाव की 🙂
good information
बहुत ही सही ओर अच्छी जानकारी के लिये धन्यवाद
विश्वविद्यालयी कर्मचारी, अहैं)धिकारी व शिक्षक इस अड़ेंगे से मुक्त हैं। भले ही उन्हें शत-प्रतिशत वेतनराशि सरकार के खजाने से ही मिलती है। अब इसका विधिक कारण क्या है ? (शायद ये कि विश्वविद्यालय सरकारी निकाय नहीं माने जाते बल्कि स्वायत्त माने जाते हैं) वे चुनाव लड़ सकते हैं, सदन के सदस्य भी बने रह सकते हैं, हॉं यदि वे सदस्य होन के नाते वित्त लाभ लेना वाहते हैं तो उन्हें छुट्टियॉं लेनी पड़ती हैं (एक तरह से डेपुटेशन हो जाता है प्रकरण) हमारे राज्य में एक मुख्यमंत्री भी हो गए छुटृटी पर रहते हुए, शायद बाद में इस्तीफा दिया साहिब सिंह चौहानजी ने।
और एक अच्छी जानकारी मिली ! धन्यवाद !
भेदभावपूर्ण लगता है यह कर्मचारी के पक्ष में प्रावधान।
द्विवेदीजी ब्लाग्स्ते ,
यह धारावा परिपत्र का विवरण दे कर आपने तो कितनो की बाछें खिला दीं हैं ,बस मुझे इसमें एक ही पेंच नज़र आता है कि उसे निर्दलीय ही लड़ना होगा क्यों कि कोई कर्मचारी ,सेवा में रहते हुए किसी राजनीतिक दल का सदस्य नही हो सकता ,है |
लेकिन इससे भी बड़ा विधिक पेंच एवं अड़ंगा तो विभाग को सूचना देना एवं अनुमति लेने के नियम का मामला है ,जो कहीं अन्यत्र कही आवेदन करने पर लागू होता है .?