मानहानि और अपमान के अपराध : वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मूल अधिकार (9)
|इस श्रंखला की आठवीं कड़ी में भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत अपराध के रूप में परिभाषित वाक् प्रस्तुतियों और अभिव्यक्तियों पर चर्चा की थी। ये सभी वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मूल अधिकार पर निर्बंधन के रूप में प्रभावी हैं। इस कानून के अंतर्गत वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मूल अधिकार को सर्वाधिक प्रभावित करे वाले निर्बंधन किसी की मानहानि करने तथा अपमान से संबंधित हैं।
भारतीय दंड संहिता की धारा 499 में मानहानि को इस तरह परिभाषित किया गया है-
जो कोई बोले गए, या पढ़े जाने के लिए आशयित शब्दों द्वारा या संकेतों द्वारा या दृश्य निरूपणों द्वारा किसी व्यक्ति के बारे में कोई लांछन इस आशय से लगाता या प्रकाशित करता है कि ऐसे लांछन से ऐसे व्यक्ति की ख्याति की अपहानि की जाएया यह जानते हुए या विश्वास करने का कारण रखते हुए लगाता या प्रकाशित करता है कि ऐसे लांछन से ऐसे व्यक्ति की ख्याति की अपहानि होगी अपवादों को छोड़ कर यह कहा जाएगा कि वह उस व्यक्ति की मानहानि करता है।
यहाँ मृत व्यक्ति को कोई लांछन लगाना मानहानि की कोटि में आता है, यदि वह लांछन उस व्यक्ति के जीवित रहने पर उस की ख्याति की अपहानि होती और उस के परिवार या अन्य निकट संबंधियों की भावनाओं को चोट पहुँचाने के लिए आशयित हो। किसी कंपनी, या संगठन या व्यक्तियों के समूह के बारे में भी यही बात लागू होगी। व्यंगोक्ति के रूप में की गई अभिव्यक्ति भी इस श्रेणी में आएगी। इसी तरह मानहानिकारक अभिव्यक्ति को मुद्रित करना, या विक्रय करना भी अपराध है।
लेकिन किसी सत्य बात का लांछन लगाना, लोक सेवकों के आचरण या शील के विषय में सद्भावनापूर्वक राय अभिव्यक्ति करना तथा किसी लोक प्रश्न के विषय में किसी व्यक्ति के आचरण या शील के विषय में सद्भावना पूर्वक राय अभिव्यक्त करना तथा न्यायालय की कार्यवाहियों की रिपोर्टिंग भी इस अपराध के अंतर्गत नहीं आएँगी। इसी तरह किसी लोककृति के गुणावगुण पर अभिव्यक्त की गई राय जिसे लोक निर्णय के लिए ऱखा गया हो अपराध नहीं मानी जाएगी।
मानहानि के इन अपराधों के लिए धारा 500,501 व 502 में दो वर्ष तक की कैद की सजा का प्रावधान किया गया है। लोक शांति को भंग कराने को उकसाने के आशय से किसी को साशय अपमानित करने के लिए इतनी ही सजा का प्रावधान धारा 504 में किया गया है।
धारा 505 में किसी भी ऐसे कथन, जनश्रुतिया रिपोर्ट को इस आशय से प्रकाशित करना जिस से तीनों सेनाओं का कोई अफसर या सैनिक विद्रोह करे या अपने कर्तव्य की अवहेलना करे, या जनता या उस के किसी भाग को भय या संत्रास हो और जिस से कोई व्यक्ति राज्य या लोक शांति के विरुद्ध अपराध करने को उत्प्रेरित हो या जिस से व्यक्तियों का कोई वर्ग या समुदाय किसी दूसरे वर्ग या समुदाय के विरुद्ध अपराध करने को उत्प्रेरित हो अपराध घोषित कर तीन वर्ष तक की कैद की सजा का प्रावधान किया गया है। विभिन्न वर्गों में शत्रुता, घृणा या वैमनस्य पैदा करने की भावनाएं धर्म, मूलवंश, जन्मस्थान, निवास स्थान, भाषा, जाति या समुदाय के आधारों पर पैदा करने और फैलाने वाली अभिव्यक्तिय
ों के प्रकाशन और वितरण करने को भी अपराध घोषित कर इतनी ही सजा का प्रावधान किया गया है। लेकिन किसी बात के सत्य होने का युक्तियुक्त आधार होने पर उसे सद्भावनापूर्वक प्रकाशित करने या वितरित करना अपराध नहीं है।
ों के प्रकाशन और वितरण करने को भी अपराध घोषित कर इतनी ही सजा का प्रावधान किया गया है। लेकिन किसी बात के सत्य होने का युक्तियुक्त आधार होने पर उसे सद्भावनापूर्वक प्रकाशित करने या वितरित करना अपराध नहीं है।
उक्त सभी अभिव्यक्तियों को अपराध के रूप में परिभाषित किया गया है जो कि वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मूल अधिकार पर निर्बंधन हैं।
इस श्रंखला की अगली कड़ी में ब्लागिंग पर इन निर्बंधनों के प्रभाव की बात करेंगे। (क्रमशः जारी)
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10 Comments
महोदय
मेरी एक रिश्तेदार बाजार से अपनी 5 वर्षीया पुत्री के साथ अपने फ्लैट पर जा रही थी। मार्ग में उसके देवर और सास जोकि उसके साथ नहीं रहते और उनके साथ कानूनी झगड़ा चल रहा है, मिल गए और उन लोगों ने मेरी रिश्तेदार के साथ मारपीट और बदतमीजी की। इस घटना में पुलिस भी मौके पर पहुंच गई और एक एफआईआर दर्ज हो गई। एफआईआर में अन्य धाराओं के साथ-साथ धारा 354 भी लगी। मेरी रिश्तेदार की सास और देवर ने इस मामले में कोर्ट में अपनी जमानत करवा ली तथा उन लोगों ने कोर्ट में एक अर्जी दाखिल कर कोर्ट से प्रार्थना की कि कोर्ट उन लोगों की भी एक एफआईआर दर्ज करने के लिए पुलिस को निर्देश दे। अर्जी में उन लोगों ने मेरी रिश्तेदार के साथ-साथ मेरा भी नाम आरोपियों में लिखवा दिया है जबकि मैं तो घटनास्थल पर था ही नहीं। इसके सबूत और साक्ष्य मेरे पास हैं। मेरी रिश्तेदार की सास ने अपनी अर्जी में आरोप लगाया है कि मैंने मेरी रिश्तेदार की सास पर डंडे से प्रहार कर उसे मारने का प्रयास किया और मैंने उसके कपड़े फाड़ने का प्रयास किया। ऐसा भद्दा आरोप उसने मुझ पर लगाया है। मुझे अभी ही पता चला है कि ऐसा ही कुछ बयान उसने अदालत में दिया है और इस संबंध में झूठे गवाह भी खड़े कर दिये गए हैं।
अब प्रश्न यह है कि मैं इस संबंध में बिल्कुल निर्दोष हूं। इसके सारे साक्ष्य-सबूत मेरे पास हैं। क्या मैं इस मामले में मानहानि का मुकदमा दायर कर सकता हूं। इस संबंध में मैं किस-किस को पार्टी बना सकता हूं। क्या मैं उन गवाहों को भी पार्टी बना सकता हूं।
'इस श्रंखला की अगली कड़ी में ब्लागिंग पर इन निर्बंधनों के प्रभाव की बात करेंगे।'
-प्रतीक्षा रहेगी.
हूं, ध्यान रखने वाली बातें।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
बढ़िया व काम की जानकारी धन्यवाद .
बडिया जानकारी के लिये धन्यवाद्
द्विवेदी जी,
जहां तक मेरी जानकारी है, न्यायालय की कार्यवाही की रिपोर्टिंग नहीं की जा सकती, केवल फैसला बताया जा सकता है।
यदि मेरी जानकारी गलत है तो कृपया इस पर कुछ प्रकाश डालें।
व्यवहारिक जानकारी का सटीक चित्रण… साधुवाद दादा..
आप की बात से सहमत हुं, हमारे यहां इन कानूनो को कडाई से पालन होता है,
धन्यवाद
बहुत उम्दा जानकारी.
रामराम.
व्यवहारिक रूप से इन कानूनों का एहसास करनें में सालों साल लग जाते हैं इसी लिए इसका प्रयोग कम ही दिख पाता है .