वकील और कानून-व्यवस्था (1)
|अदालत ब्लाग पर खबर थी कि 4 जून को दिल्ली में जिला न्यायालयों के वकील हड़ताल पर रहे। हड़ताल की वजह अदालत परिसर में वकीलों की सुरक्षा की समुचित व्यवस्था की मांग थी। हुआ यह था कि अदालत परिसर से कुछ लोगों ने एक वकील का अपहरण कर लिया था। बाद में पता लगा कि वह उन का लक्ष्य नहीं था, उसे छोड़ भी दिया गया। वकीलों का कहना है कि अदालत परिसर में हर तरह के लोग आते हैं, उनमें बहुत से अपराधी भी होते हैं। पिछले कुछ दिनों से वकीलों के खिलाफ हिंसा के मामले बढ़े हैं। इसका कारण समुचित सुरक्षा का अभाव है। सुरक्षा कारणों से कई बार वकील अदालतों में हाजिर नहीं हो पाते और अदालत में सूचीबद्ध मामलों की सुनवाई स्थगित हो जाती है।
इस खबर से मामले की गंभीरता का अनुमान हो सकता है कि, एक समय सम्मानीय माना जाने वाला यह पेशा किन हालात को पहुँच गया है। वकालत के पेशे की ऊँचाई और गिरावट सीधे-सीधे न्याय व्यवस्था से नाभिनाल बद्ध है। देश में अदालतों की संख्या में कमी के चलते यह हालत हो गई है कि एक प्लाईवुड विक्रेता ने अदालतों में मुकदमों के निर्णयों में होने वाली देऱी को अपने उत्पाद को बेचने के लिए विज्ञापन का साधन बना डाला है। जिस का उल्लेख आज अनिल पुसदकर जी ने अपने ब्लाग अमीर धरती गरीब लोग में अपने लघु आलेख प्लाईवुड बेचने वाले मज़ाक उड़ा रहे है न्यायपालिका का? में किया है।
प्लाईवुड कंपनी का यह विज्ञापन हमारी न्याय-व्यवस्था की हालत को ठीक से प्रदर्शित करता है। हालत यह हो गई है कि दसियों वर्षों तक अपराधियों को सजाएं नहीं मिलती। साक्ष्य में देरी के कारण गवाहों को तलाश करना दुर्लभ हो जाता है। जो मिल जाते हैं उन की स्मृति घटना के संबंध में मंद हो़ जाती है जिस का नतीजा होता है कि अपराधी सजा से बच जाते हैं। अपराध करने वाले लोग जमानतों पर बरसों आजाद रहते हैं और गवाहों पर गवाही न देने के लिए दबाव डालते हैं। इस से अपराधिक गतिविधियाँ और बढ़ती हैं। धीरे-धीरे भारतीय समाज में अपराधियों का दबदबा बढ़ता जा रहा है। वे बड़ी संख्या में संसद और विधानसभाओं में पहुँचते हैं। वहाँ जो साफ सुथरे दिखाई देते हैं उन में से भी अधिकांश के रिश्ते अपराधियों से जुड़े हैं। महाराष्ट्र के एनसीपी सांसद पद्म सिंह पाटिल की हत्या मामले में गिरफ्तारी इस का ताजा सबूत है।
राज्यों में जिला स्तर तक की अदालतें स्थापित करने की जिम्मेदारी भी राज्य सरकारों की है तथा कानून और व्यवस्था बनाए रखने का दायित्व भी उन्ही पर है। सुरक्षा और कानून-व्यवस्था बनाए रखने तथा अपराधों की रोकथाम और किए गए अपराधों के लिए अपराधियों को सजा दिलाने के लिए राज्यों के पास पुलिस बल है। लेकिन उस की हालत भी सभी राज्यों में दयनीय दिखाई देती है। किसी थाने में कोई अपराध की सूचना ले कर जाए तो उस के साथ ऐसा व्यवहार होता है जैसे वह पुलिस के लिए कोई मुसीबत ले कर आया हो। किसी अपराध की प्रथम सूचना ले कर पहुँचने वाला वस्तुतः राज्य के काम में सहयोग के लिए वहाँ पहुँचता है लेकिन वहाँ जिस तरीके से प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करने के पूर्व ही उस के साथ जैसे व्यवहार किया जाता है उसे
More from my site
11 Comments
भाग दौड भरी जिन्दगी का मानसिक दबाव समस्त समाज पर है फिर वकीलों लो अलग क्यू देखा जाये ।
प्लाइवुड वाला मामला सत्य को ही दर्शाता है। इसमें मजाक उडाने जैसा कुछ भी नहीं।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
एक वकील के नजरिये से बातें आये तो कई दुविधाएं साफ़ होंगी… अच्छी श्रृंखला.
आपका चिन्तन सही ह-प्रोफेश्नलिजम बना रहे बस!! बाकी तो अपेक्षाऐं और उपक्षाऐं सब जीवन खेल का हिस्सा हैं. अगली कड़ी का इन्तजार.
सर जी एक बात कहना चाहता हूँ कि मेरे शहर में कभी कभी वकील भी कानून व्यवस्था को बिगाड़ते देखे जा सकते है तो कभी कभी कानून भी वकीलों पर डंडे बरसाते देखे जा सकते है . मेरे मानना है कि हर हंगामे के पीछे कोई न कोई कारण अवश्य होते है . कभी कभी वकीलों को गुंडों से अधिक दोस्ती पालना भी मुसीबत का सबब बन जाता है .
महेंद्र मिश्र
जबलपुर
आपका कहना सही है कि वकीलों को सामुहिक रुप से एक पेशेवर समूह के तौर पर इस से कुछ आगे जा कर सोचना होगा. वर्ना आज अधिवक्ताओं की तो एक पूरी जमात ही उद्दंड व्यवहार को बहस का पर्याय मान बैठी है. न्यायपालिका के बारे में भी भीतर से आवाज़ उठाने की ज़रुरत है.
मै सभी के विचारो से सहमत हू, अगली कडी का इंतजार, यह लेख बहुत ही रुचिकर लगा.
धन्यवाद
बढ़िया आलेख। वकील भी एक हिस्सा है। समाज की कुल जमा पेचीदगियों का जमावड़ा होती हैं अदालतें। दुनियाभर के उलझाव वहां आते हैं। सो किसी भी संतुलन की उम्मीद रखना बेकार है। अपराध दर्ज कराने की स्थितियां हम आने भी नहीं देना चाहते। विवशता में वह सब होता है, जिसका उल्लेख आपने किया है।
आपका चिंतन सही है ,बहुत सारी अपेक्षाएं लोग वकीलों से पाल लेतें हैं जो की गलत है .आपके अगले कड़ी का इन्तजार रहेगा .
देश का जो माहौल है उससे वकील कैसे बच सकते हैं. अगली कड़ी का इंतज़ार रहेगा.
दिनेश जी, उस दिन कर्कर्दूमा कोर्ट में तीन घटनाएं हुई थी जो अगले दिन अखबारों में छपी, मुझे उसी दिन पता चल गयी थी मगर कुछ विभागीय कारणों से उन्हें मैं कोर्ट-कचहरी पर नहीं लिखता हूँ…एक घटना आपने पढ़ ली जिसे लोकेश जी अदालत में लगाया.. दूसरी थी की एक पुरुष वकील ने अपनी साथी महिला वकील को थप्पड़ मारा जिससे क्रोधित होकर अन्य महिला वकीलों ने उन पुरुष वकील की धुनाई कर दी..तीसरी थी की कुछ लोगों को गलतफहमी में बदमाश समझ कर वकीलों ने पीट दिया…अगले दिन हड़ताल हुई….
वैसे भी शाहदरा बार हड़तालों के कारण कुछ ज्यादा ही चर्चा में रहती है….अपने खुद ही कहा है की वकीलों के पेशेवर समूह को खुद ही आगे आकर सोचना होगा…मगर मुझे संदेह है की aaisa हो paayegaa…आज तक कितने बार assoceeyeshanon ने वकीलों के khilaaf shikaayat दर्ज होने दी है…और दर्ज होने के बाद उन पर kaaryavaahee की है…haalaat gambheer हैं….और kamiyaan बहुत saaree हैं….अगली kadi की प्रतीक्षा रहेगी…