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138 परक्राम्य अधिनियम के खारिज मुकदमा दुबारा कैसे स्थापित होगा

रुपए 70,000 का एक चैक अनादरित हो जाने पर मैं ने चैक प्रदाता के विरुद्ध धारा 138 परक्राम्य विलेख अधिनियम के अंतर्गत शिकायत न्यायालय में प्रस्तुत की थी। मुकदमे में मेरे बयान हो जाने के बाद दिनांक 20 दिसम्बर को मुकदमा बयान मुलजिम हेतु निश्चित था। लेकिन मेरा स्वास्थ्य खराब होने से मैं अदालत में हाजिर नहीं हो सका। मुकदमा खारिज कर मुलजिम को बरी कर दिया गया। मेरे वकील साहब ने मुकदमे को वापस नंबर पर लेने की दर्ख्वास्त दी जो अदालत ने खारिज कर दी।  मेरा उक्त मुकदमा क्या दुबारा नंबर पर लिया जा सकता है?
-लोकेश कुमार, बांदा, उत्तर प्रदेश
धारा 138 परक्राम्य विलेख अधिनियम के मुकदमे में यदि शिकायतकर्ता की उपस्थिति अत्यावश्यक न हो तो अदालत को चाहिए कि वह मुकदमे को खारिज न कर के उस में आगे की  तिथि नियत करे। आप के मामले में भी ऐसा ही है कि आप की उपस्थिति बयान मुलजिम के लिए निश्चित की गई तिथि को आवश्यक नहीं थी वैसी परिस्थिति में न्यायालय को उक्त मुकदमा खारिज नहीं करना चाहिए था। यह सिद्धांत राजस्थान उच्च न्यायालय द्वारा दिनांक 27 सितम्बर, 2001 को दिए गए मित्तल  बुक स्टेशनर्स बनाम महेन्द्र सिंह सोलंकी के मुकदमे में तय किया गया है।

स के अतिरिक्त आप निश्चित तिथि को स्वास्थ्य खराब होने के कारण उपस्थित नहीं हो सके थे। आप ने जिस चिकित्सक से चिकित्सा कराई है उस के इलाज का पर्चा या फिर उस का प्रमाण पत्र प्रस्तुत करें तो आप के मुकदमे में उपस्थित न हो पाने का एक उचित कारण भी आप के पास उपलब्ध है। आप इस मामले में सत्र न्यायालय के समक्ष अथवा उच्च न्यायालय के समक्ष निगरानी याचिका या अपील प्रस्तुत कर अपने मुकदमे को पुनर्स्थापित करने का प्रयास कर के सफलता प्राप्त कर सकते हैं। इस मामले में आप दिल्ली उच्च न्यायालय का योगेन्द्र कपिल बनाम संजय गुप्ता  तथा  पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय का मनजीत कौर बनाम पंजाब राज्य व अन्य   के मामलों में दिए गए निर्णयों का सहारा भी ले सकते हैं।

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