498-ए के मामले अब अन्वेषण के बाद ही दर्ज होंगे, केन्द्र सरकार का निर्देश
|भारतीय दंड संहिता की धारा 498-ए महिलाओं पर पति या उस के नातेदारों द्वारा क्रूरता पूर्ण व्यवहार के संबंध में है। लेकिन यह देखने में आया है कि इस धारा के अंतर्गत दर्ज अपराधों में अधिकांश फर्जी पाए जाते हैं। लेकिन पुलिस रिपोर्ट में जिन लोगों के नाम दर्ज होते हैं सभी को पुलिस गिरफ्तार कर लेती है और धन वसूलने के लिए उस का उपयोग करती है। बाद में होता यह है कि केवल पति या नजदीकी संबंधियों के विरुद्ध ही आरोप पत्र दाखिल होता है। उन में से भी अधिकांश के विरुद्ध आरोप साबित नहीं हो पाते हैं। इस तरह बहुत से लोगों को नाजायज परेशानी उठानी पड़ती है। ऐसे लोगों को केन्द्र सरकार के निर्देश से राहत मिल सकती है कि धारा 498-ए के मामलों में यह धारा अन्वेषण में इसे साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत मिल जाने पर ही लगाई जाए, पहले नहीं।
दैनिक भास्कर कुरुक्षेत्र ने समाचार (दहेज में अटक जाते हैं रिश्ते) है कि केन्द्र सरकार ने इस तरह का निर्देश जारी किया है कि इस तरह के मामलों में अन्वेषण किया जाए और धारा 498-ए के लिए पर्याप्त सबूत मिल जाने पर ही मामले में धारा 4987-ए के अनुसार कार्यवाही की जाए। अभी हालत यह है कि देश भर में वर्ष में 70 हजार मामले इस धारा के अंतर्गत दर्ज किए जाते हैं। प्रतिदिन अनेक निर्दोष वरिष्ठ नागरिक, महिला और बच्चे इस धारा के अंतर्गत गिरफ्तार किए जाते हैं। केन्द्र सरकार के इस निर्देश के उपरांत इस तरह के मामलों में कमी आएगी और निर्दोष लोग इस का शिकार होने से बचेंगे। इस कानून की जो बदनामी हुई है वह भी कम हो सकेगी।
वास्तविकता यह है कि देश में ऐसी विश्वसनीय संस्थाओं की बहुत कमी है जो वैवाहिक मामलों में दोनों पक्षों को बुला कर उन के बीच के विवाद को समझने का प्रयत्न करें और उन की समझाइश के माध्यम से विवादों को हल करें। सरकारों ने पुलिस विभाग के अंतर्गत इस तरह के समझौता केंद्र चला रखे हैं वहाँ इस काम को करने वाले विशेषज्ञों के न होने के कारण उन का लाभ नहीं मिलता है, अन्यथा अधिकांश पारिवारिक विवाद काउंसलिंग के माध्यम से हल किए जा सकते हैं।
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10 Comments
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अच्छी जानकारी. इसकी आज ज़रुरत भी है.
किसी भी तरह के निर्देशों की अनदेखी करने के लिए पुलिस कुख्यात है. विशेषकर जब पुलिस राज्य सरकारों के अंतर्गत आती हो तो केंद्र सरकार के निर्देशों के पालन का तो सवाल ही नहीं उठता. ऐसे निर्देश गाल बजाने से ज़्यादा कुछ भी साबित नहीं होते.
अच्छा होता कि इस तरह के घासीराम-कोतवालनुमा निर्देश जारी करने के बजाय सरकार CrPC/IPC में विधिसम्मत संशोधन करती ताकि आगे चलकर किसी तरह के अदालती वाद-विवाद की संभावना ही समाप्त हो जाती…अन्यथा ऐसे निर्देश नए मुद्दों को ही जन्म देंगे व अदालतों की कार्यवाही और अधिक खिंचने का एक मुद्दा और पैदा हो गया है
आप का धन्यवाद इस अच्छी जानकारी के लिये, मैने एक दो परिवार देखे है जो सिर्फ़ अपनी नाक ऊंची रखने के लिये हि दुसरे परिवार को जेल की हवा खिला देते है.
धन्यवाद
दुरूपयोग तो होता है पर कौन करता है? दरअसल स्त्रियों के पक्ष में जो थोड़े-बहुत कनूम हैं, उन्हें ख़त्म करने की मांग लगातार होती है. सोचिये ये कानून न हो तो गीदड़ भभकी भी न रह जाए. दलित उत्पीडन के मामले में भी मीडिया और ताक़तवर तबका ऐसी ही मांग करता रहता है, मजदूरों के लिए बने कानून भी इसी तरह निष्प्रभावी कर दिए गए हैं
बहुत ही उम्दा जानकारी के लिए आभार . केंद्र सरकार का यह निर्णय कई बेगुनाहों को जेल यात्रा करने से रोकेगा ..
बहुत उत्तम जानकारी.
रामराम.
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thanks
यह निर्णय वाकई स्वागत योग्य है! बहुत बार फर्जी मामले कायम होते हैं व पूरे परिवार को कष्ट का सामना करना पड़ता है! परामर्श व जांच के बाद ही अपराध कायम होना चाहिए!
आप के इस ब्लॉग के माध्यम हम आम लोगों को बहुत ही अच्छी जानकारी मिलाती है । बहुत बहुत धन्यवाद !!!