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चैक अनादरण के अपराध का एक असली मुकदमा

उस दिन हुसैन भाई के मुकदमे की पेशी थी।  हुसैन भाई कम्प्यूटर असेम्बल करने, कम्पूटर और ऐसेसरीज की दुरुस्ती का काम करते हैं।  किसी ने उन्हें सस्ते में कोई विदेशी माल बेचने के धंधे का ऑफर दिया।  उन्हों ने धंधे का ऑफर तो अस्वीकार कर दिया मगर कुछ लाख का माल उसे सप्लाई करने का आदेश दे दिया। माल आ भी गया और भुगतान भी कर दिया।  लेकिन माल में खोट थी।  सप्लायर ने माल उठा लिया और भुगतान वापसी के लिए तीन माह बाद के चैक दिए।  चैक भुने नहीं और मुकदमा कर दिया।  हुसैन भाई ने भी रकम दोस्तों से ले कर दी थी।  दोस्त अब रकम मांग रहे थे।  रकम थी नहीं, कहाँ से देते?

चैक अनादरित हुए तो 138 परक्राम्य विलेख अधिनियम में अदालत में परिवाद दिया गया।  जिस थाने के बैंक में चैक लगाया गया था उस थाने में बहुत से बैंक थे। नतीजा यह हुआ की थाने से संबंधित अदालत में इस तरह के मुकदमों का अंबार है।  शिकायत पेश होने के बाद उस पर बाबू की रिपोर्ट के लिए एक माह की तारीख दी गई।  एक माह में भी रिपोर्ट तब हो सकी जब निश्चित तारीख को सांमने खड़े हो कर कराई गई।  उस दिन अदालत ने उस शिकायत पर प्रसंज्ञान लिया और अभियुक्त को समन जारी करने का आदेश हो गया।  अभियुक्त की हाजरी के लिए पाँच माह की तारीख दी गई।

हुसैन भाई का तारीख सुन कर ही दिल बैठ गया।  पर क्या करें?  हुसैन भाई हर महिने याद दिलाते कि समन जारी कर दिया य़ा नहीं।  जिस बाबू को समन जारी करने थे उसने साफ मना कर दिया कि समन ठीक एक माह पहले जारी होंगे, उस से पहले नहीं।  उस से पहले उन का नंबर ही नहीं आएगा।  एक माह पहले अदालत के दफ्तर संपर्क किया तो पता लगा कि बाबू बीमारी अवकाश पर हैं।  उन की अनुपस्थिति से दो दिन में ही काम अस्तव्यस्त हो चला है।   नया बाबू लगाया गया है उसे काम संपट में ही नहीं आ रहा है। किसी तरह मुंशी ने हाथ पैर जोड़ कर कुछ रकम खर्च कर समन निकलवाए।  मगर इस बीच अभियुक्त का दूसरी जगह तबादला हो गया।  थाने ने रिपोर्ट ही अदालत को नहीं भेजी कि समन तामील हुए या नहीं।

पेशी पर दुबारा सम्मन निकालने का आदेश हुआ। लेकिन तारीख छह माह की।  इतने दिनों मे अदालत में हजार मुकदमों का इजाफा हो गया था। जज से प्रार्थना की तो भी कुछ असर नहीं हुआ।  हाँ समन दस्ती ले जाकर संबंधित थाने को देने का आदेश हो गया। अब समन अदालत से ले कर थाने पर देने का काम भी उन पर है।   थाने वालों के हाथ पैर जोड़ कर या उन्हें येन-केन-प्रकरेण खुश कर के उस की तामील करवा कर लाने की जिम्मेदारी भी उन्हें ही ढोनी है।  हुसैन भाई मुसीबत में हैं।  इस लिए यह भी करेंगे।  जब तक समन अभियुक्त को तामील नहीं हो जाता मुकदमा आगे नहीं बढ़ेगा।  समन तामील भी हो गया और अभियुक्त फिर भी पेशी पर हाजिर न हुआ तो अदालत अभियुक्त का जमानती वारंट निकालेगी।

फिर जमानती वारंट तो उन्हें दस्ती भी नहीं दिया जाएगा।  लेकिन थाने जा कर उसे भी वही तामील कराएँगे। तब भी अभियुक्त अदालत में हाजिर न हुआ तो गिरफ्तारी वारंट निकलेगा।  उस पर पुलिस से कार्यवाही कराने की जिम्मेदारी भी वही उठाएंगे।  तब कहीं कार्यवाही आगे बढ़ेगी।  फिर अगर कभी अभियुक्त कार्यवाही से गैर हाजिर हो गया तो।  जब तक वह खुद या गिरफ्तार हो कर अदालत में हाजिर न होगा तब तक कार्यवाही न होगी।  ऐसा वह कम से कम पूरे मुकदमे में दो तीन बार तो कर ही सकता है।  कुल मिला कर यदि अभियुक्त न चाहे तो मुकदमे की उम्र आठ दस साल तो हो ही जाएगी।  तब तक हुसैन भाई से पैसा वसूल करने वाले उन की हालत क्या बना देंगे?  यह तो आप भी सोच सकते हैं।  हाँ, हुसैन भाई  के पास एक रास्ता है, कि उन्हों ने भी लेनदारों को चैक दिए हुए हैं।  उन से उन चैकों का चुकारा नहीं हुआ तो  उन के लेन दार भी चैक अनादरित करवा कर अदालत पह

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