Category: Law
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पिछले आलेख कंट्रेक्ट के वैध-अवैध उद्देश्य और प्रतिफल पर ज्ञान जी की टिप्पणी थी… … मैं तो दो बार पढ़ गया। पर लगता है अब भी मन एकाग्र
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आज हम जानेंगे कि कौन से उद्देश्य या प्रतिफल कानूनी हैं, जिन के कानूनी न होने के कारण कोई भी कंट्रेक्ट शून्य हो सकता है……. किसी भी अनुबंध
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पिछले साल दिसम्बर में खबर थी कि एक टेलीफोन कंपनी ने एक ही दिन में बंगलुरू में 73000 मुकदमे चैक बाउंस के प्रस्तुत किए थे। तब भारत के
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कहावत है कि “अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता” । लेकिन “एक अकेला व्यक्ति पहाड़ तोड़ सकता है”, यदि वह साधनों का सदुपयोग करे और उद्देश्य से सहमत
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वकीलों में एक कहावत है – “किसी को मुफ्त सलाह नहीं देनी चाहिए, क्यों कि मुफ्त सलाह पर न तो मुवक्किल विश्वास ही करता है, और न ही
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कानून सम्बन्धी भूल का प्रभाव कोई भी कंट्रेक्ट केवल इस कारण से शून्यकरणीय नहीं हो सकता कि वह भारत में प्रवृत्त किसी कानून से संबंधित भूल का परिणाम
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अब तक हम ऐसे अनुबंधों की बात कर रहे थे जिन्हें अनुबंध के किसी पक्षकार के जोर देने पर शून्य घोषित किया जा सकता था। अब बारी है,
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युवनीत सूरी को कंपनी ने 07.12.2003 के पत्र से रेस्टोरेंट जनरल मैनेजर के पद पर नियुक्त किया था। नियुक्ति पत्र की शर्त के अनुसार उसे दिसम्बर 2003 से
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तीसरा खंबा के विगत आलेख कंट्रेक्ट को निरस्त करने की न्यायालय की शक्ति पर भाई नीरज जी रोहिल्ला ने अपनी टिप्पणी में एक गंभीर प्रश्न किया था….. “इंजीनियरिंग
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पिछले आलेख में मैं ने कानून के साथ दिए तीन उदाहरण आप को बताए थे। स्वतंत्र सहमति के बिना अनुबंधों की शून्यकरणीयता के विषय पर दो और उदाहरण
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