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Tag: न्याय प्रणाली

क्या रुक पाएगा चैक बाउंस के फौजदारी मुकदमों का सिलसिला?

 पिछली पोस्ट से आगे ….. मैं ने कल उल्लेख किया था कि, अभी हाल ही में कुछ न्यायालयों ने जिस तरह के निर्णय इन मामलों में देना आरंभ
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दिल्ली हाई कोर्ट को मौजूदा मुकदमों के निपटारे में लगेंगे 466 साल

हमारी अदालतों की हालत का इसी बात से अनुमान लगाया जा सकता है कि दिल्ली हाईकोर्ट में वर्तमान में इतने मुकदमें लंबित हैं कि जितने जज इस समय
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इतने क्यों नाराज हैं वकील ? -बनाम- वकीलों का गंभीरतम अपराध

“इतने क्यों नाराज हैं वकील” यह उस आलेख का शीर्षक है जो 17 मार्च को नवभारत टाइम्स में प्रकाशित हुआ है, जिसे लिखा है सुधांशु रंजन ने।  इस
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डी अजित के मामले में सर्वोच्च न्यायालय का कोई निर्णय नहीं है

कल तीसरा खंबा पर आलेख नहीं था, केवल जनादेश में प्रकाशित आलेख ब्लागर और वेब पत्रकार भी कानूनी दायरे में  की सूचना मात्र थी।  इस आलेख पर सात
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नियुक्तियों के अभाव में रिक्त पड़ी अदालतें और भटकते न्यायार्थी

तीसरा खंबा लगातार यह बताता रहा है कि न्यायालयों की कमी के कारण किस तरह आम न्यायार्थी को बरसों तक न्याय नहीं मिल पा रहा है।  विगत दिनों
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न्याय व्यवस्था से टूटता मोह : सरकारें जल्दी चेत जाएँ ___

जिस बात का मुझे कुछ बरसों से अंदेशा था वह सामने आ ही गई।   आज अदालत ब्लाग पर खबर  है कि चंडी गढ़ में चीफ जस्टिस केजी बालकृष्णन
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अपराधों के अन्वेषण, अभियोजन और अदालतों की पर्याप्तता और स्वतंत्रता-स्वायत्तता के बारे में सोचा जाना जरूरी है

एस. एन. विनोद जो नागपुर के प्रधान संपादक दैनिक ‘राष्ट्रप्रकाश’ एवं समूह संपादक- मराठी ‘दैनिक देशोन्नती’  ने अपने ब्लाग चीरफाड़ पर अपने आलेख फिर फैसला हुआ, न्याय नहीं
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ई-कोर्ट प्रोजेक्ट से काम न चलेगा, अदालतों की संख्या तो बढ़ानी होगी

27 जनवरी से 8 फरवरी तक कोटा से बाहर रहा, अंतर्जाल से दूर भी। परिणाम कि तीसरा खंबा पर बीच में केवल 1 फरवरी को ही एक ही
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न्याय रोटी से पहले की जरूरत है, न्याय प्रणाली की पर्याप्तता के लिए आवाज उठाएँ

26 जनवरी, 1950 को भारत ने गणतंत्र का स्वरूप धारण किया।  गणतंत्र का अर्थ है देश का शासक अब चुनी हुई सरकार करेगी।  उस दिन जिस संविधान को
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