Tag: न्याय प्रणाली
Crime
पिछली पोस्ट से आगे ….. मैं ने कल उल्लेख किया था कि, अभी हाल ही में कुछ न्यायालयों ने जिस तरह के निर्णय इन मामलों में देना आरंभ
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Crime
1988 में जब परक्राम्य विलेख अधिनियम, 1881 में अध्याय 17 (धारा 138 से 147 तक) को जोड़ा गया था तब यह सोचा भी नहीं गया था कि यह
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System
हमारी अदालतों की हालत का इसी बात से अनुमान लगाया जा सकता है कि दिल्ली हाईकोर्ट में वर्तमान में इतने मुकदमें लंबित हैं कि जितने जज इस समय
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System
“इतने क्यों नाराज हैं वकील” यह उस आलेख का शीर्षक है जो 17 मार्च को नवभारत टाइम्स में प्रकाशित हुआ है, जिसे लिखा है सुधांशु रंजन ने। इस
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Crime
कल तीसरा खंबा पर आलेख नहीं था, केवल जनादेश में प्रकाशित आलेख ब्लागर और वेब पत्रकार भी कानूनी दायरे में की सूचना मात्र थी। इस आलेख पर सात
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Judicial Reform
तीसरा खंबा लगातार यह बताता रहा है कि न्यायालयों की कमी के कारण किस तरह आम न्यायार्थी को बरसों तक न्याय नहीं मिल पा रहा है। विगत दिनों
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Judicial Reform
जिस बात का मुझे कुछ बरसों से अंदेशा था वह सामने आ ही गई। आज अदालत ब्लाग पर खबर है कि चंडी गढ़ में चीफ जस्टिस केजी बालकृष्णन
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Crime
एस. एन. विनोद जो नागपुर के प्रधान संपादक दैनिक ‘राष्ट्रप्रकाश’ एवं समूह संपादक- मराठी ‘दैनिक देशोन्नती’ ने अपने ब्लाग चीरफाड़ पर अपने आलेख फिर फैसला हुआ, न्याय नहीं
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System
27 जनवरी से 8 फरवरी तक कोटा से बाहर रहा, अंतर्जाल से दूर भी। परिणाम कि तीसरा खंबा पर बीच में केवल 1 फरवरी को ही एक ही
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26 जनवरी, 1950 को भारत ने गणतंत्र का स्वरूप धारण किया। गणतंत्र का अर्थ है देश का शासक अब चुनी हुई सरकार करेगी। उस दिन जिस संविधान को
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