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Tag: Legal History

मद्रास का मेयर न्यायालय और चाउल्ट्री अदालतें : भारत में विधि का इतिहास-15

 मेयर न्यायालय1687 के चार्टर के अधीन मद्रास नगर निगम के ही एक आवश्यक अंग के रूप में न्यायिक कार्य करने के लिए मेयर न्यायालय स्थापित किया गया। मेयर
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मद्रास का प्रथम नगर निगम और मेयर का न्यायालय : भारत में विधि का इतिहास-14

1683 और 1686 के चार्टर 9 अगस्त 1683 को इंग्लेंड के सम्राट चार्ल्स द्वितीय ने न्याय प्रशासन को सक्षम बनाने के लिए एक चार्टर जारी किया। इस में
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मद्रास की अंग्रेजी बस्ती : भारत में विधि का इतिहास-13

सूरत में व्यापारिक केन्द्र मजबूत हो जाने के बाद कंपनी ने अन्य महत्वपूर्ण स्थानों पर अपनी फैक्ट्रियाँ स्थापित करने का निर्णय किया जिस के परिणाम स्वरूप मद्रास, कोलकाता
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अंग्रेजों का भारत प्रवेश : भारत में विधि का इतिहास-12

मुगल काल में ही भारत में अंग्रेजों का प्रवेश हुआ और धीरे-धीरे उन्हों ने भारत को अपने अधीन कर लिया। पुर्तगाली नाविक वास्कोडागामा ने 22 मई 1498 को
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समान एकल नागरिकता और न्याय की एकरूपता का बीजारोपण : भारत में विधि का इतिहास-11

मुगलकाल की दंड व्यवस्था पूरी तरह से मु्स्लिम विधि पर आधारित थी और अपराध साबित हो जाने पर अपराधी को दिए जाने वाले दंडों को चार तरह से
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मुगल कालीन न्याय प्रक्रिया और सबूत : भारत में विधि का इतिहास-10

अब तक आप ने पढ़ा कि मुगल काल में किस तरह से न्याय प्रशासन की व्यवस्था की गई थी। अपने पूर्ववर्ती राज्यों की अपेक्षा मुगल काल में न्याय
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मुगल कालीन सरकार और परगना न्यायालय : भारत में विधि का इतिहास-9

सरकार (जिला)  न्यायालय  मुगल काल में जिला न्यायालयों को सरकार कहा जाता था और उपजिलों को परगना। इसी आधार पर इन्हें सरकार न्यायालय और परगना न्यायालय कहा जाता
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मुगल कालीन सर्वोच्च और प्रांतीय न्यायालय : भारत में विधि का इतिहास-8

सामान्य प्रशासन मुगल काल की तीसरी पीढ़ी के शासक अकबर ने मुगल साम्राज्य को स्थायित्व प्रदान किया। इस स्थायित्व का मुख्य कारण तब तक का सब से सुव्यवस्थित
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मुस्लिम विधि का पदार्पण और अकबर का धार्मिक न्याय को अधीन करने का युग परिवर्तनकारी कदम: भारत में विधि का इतिहास-7

300 ईस्वी पूर्व से 12 वीं शती तक प्राचीन धार्मिक विधियों और अर्थशास्त्र के सिद्धांतों के अनुरूप ही न्याय व्यवस्था चलती रही। धार्मिक और नैतिक नियम न्याय का
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मोर्य युगीन अपराध विधि : भारत में विधि का इतिहास-6

अर्थशास्त्र की दंडविधि अर्थशास्त्र का यह सिद्धांत आज भी अनुकरणीय है कि उन सभी सदोष कार्यों को जिस से किसी अन्य व्यक्ति को किसी प्रकार की क्षति होती
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