अपने मुवक्किल को सूचना दे कर वकील मुकदमे की पैरवी से हट सकता है …
|समस्या-
झारखण्ड से रोहित सिंह ने पूछा है-
मेरे विरुद्ध एक वसूली दावा न्यायालय में लंबित है। उस में मैं उपस्थित हुआ लेकिन मेरे वकील ने वादी से मिल कर न्यायालय को कह दिया कि मैं यह मुकदमा नहीं देख रहा हूँ। जिस के कारण मुकदमे में मेरे विरुद्ध एक तरफा निर्णय हो गया। मुझे पता चला तब तक एक तरफा कार्यवाही को समाप्त कराने की अवधि निकल चुकी थी। मैं ने दीवानी प्रक्रिया संहिता के आदेश 9 नियम 13 में डिक्री को अपास्त कर पुनः सुनवाई किए जाने का आवेदन प्रस्तुत कर रखा है। कोई ऐसी नजीर बताएँ जिस से मेरा वह आवेदन स्वीकार हो जाए।
समाधान-
किसी भी दीवानी वाद या कार्यवाही में प्रतिवादी या विपक्षी का वकील न्यायालय को यह कहे कि वह उस के मुवक्किल का मुकदमा नहीं देख रहा है या मुवक्किल उस आ कर नहीं मिला है या मुवक्किल ने उसे कोई इंसट्रक्शन्स नहीं दी हैं तो न्यायालय को पहले यह देखना चाहिए कि उस पक्षकार को उस वकील द्वारा यह सूचना दी गई है या नहीं कि वह उस की ओर से न्यायालय में उपस्थित नहीं होगा इस कारण से मुवक्किल खुद अपने मुकदमे की हिफाजत करे। न्यायालय में ऐसा कथन करने के पहले वकील को रजिस्टर्ड डाक से इस आशय का एक पत्र अपने मुवक्किल को अवश्य प्रेषित करना चाहिए। यदि वकील ने ऐसा पत्र मुवक्किल को नहीं भेजा है तो न्यायालय को एक तरफा कार्यवाही करने के पहले उस पक्षकार को स्वयं यह सूचना भेजनी चाहिए।
आप के मामले में भी ऐसा ही हुआ है। आप को पता नहीं था कि आप के वकील ने न्यायालय को यह कहा है कि उसे उस के मवक्किल से कोई सूचना नहीं है जिस के कारण आप के विरुद्ध एक तरफा डिक्री पारित हो गई। आप का दीवानी प्रक्रिया संहिता के आदेश 9 नियम 13 में डिक्री को अपास्त करने का उचित है। इस मामले में आप सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिनांक 16.10.1992 को ताहिल राम ईसरदास सदारंगानी बनाम रामचन्द ईसरदास सदारंगानी के मुकदमे में पारित निर्णय (AIR 1993 SC 1182) की नजीर प्रस्तुत कर सकते हैं।