आस्ट्रेलिया में भारतीय पर हमलावरों को सजा का समाचार – अच्छा, लेकिन अवसाद प्रदायक
|आस्ट्रेलिया से खबर आई है कि ‘भारतीय मूल के एक चिकित्सक पर हमला करने के वाले तीन युवकों को बुधवार को ऑस्ट्रेलियाई अदालत ने लंबे कारावास की सजाएँ सुना दी हैं। विक्टोरिया राज्य के काउंटी जज जो गुलाची ने डॉक्टर मुकेश हैकरवाल पर हमला करने वाले 20 वर्षीय आल्फर आजोपार्डी को साढे़ अठारह साल की सजा सुनाई है जिसे कम से कम साढे तेरह साल की सजा काटनी ही होगी ।दूसरे दोषी 20 साल के माइकल बाल्टिट्सस को साढे़ सोलह साल की सजा सुनाई गई है उसे भी साढे़ दस साल की जेल की बाद ही सजा में रियायत मिल सकेगी। तीसरे हमलावर, बीस वर्षीय शॉन गैब्रिएल को भी जज ने उसे नौ साल कैद की सजा सुनाई है।
डॉ. हैकरवाल सितंबर 2008 में विलियम्सटाउन शहर के पार्क में अकेले घूम रहे थे, इसी दौरान हमलावरों ने उन्हें अपना निशाना बनाया। आजोपार्डी ने डॉक्टर के सर को ऎसे मारा जैसे वह क्रिकेट में छक्का मारने की कोशिश कर रहा हो। हैकरवाल के सर से हड्डी को टूटने की आवाज भी आई इसके बाद हमलावर जोर-जोर से हंसता हुआ घटना स्थल से भागा।
इस खबर से भारतीयों को यह तसल्ली हो सकती है कि एक भारतीय को आस्ट्रेलिया में केवल सवा साल में न्याय मिल गया। यदि इस मामले में अपील आदि भी हुई तो भी एक दो वर्ष में ही निर्णय अंतिम हो जाएगा। पहले भी एक कारखाने में हुई छंटनी के मामले में आस्ट्रेलियाई अदालत ने मात्र 3 माह में निर्णय दे दिया था जब कि भारत में इस तरह के मामलों में तीस वर्ष भी कम पड़ जाते हैं। इस तरह यह मामला मेरे और करोड़ों भारतियों के लिए यह एक अवसाद पूर्ण खबर है कि हम भारत में इस तरह के मामले में दसियों बरस इंतजार करते रह जाते हैं, लेकिन न्याय का ओर-छोर भी पता नहीं होता। हम देख रहे हैं कि भारत में न्याय में तीव्रता के लिए जो प्रयास किए जा रहे हैं वे दिखावे के अधिक और वास्तविक परिणाम लाने वाले कम हैं। केन्द्र औऱ राज्य सरकारों की इस ओर उदासीनता तोड़ने के लिए जनता के संगठनों को ही आगे आना होगा। दुर्भाग्य इस बात का है कि अभी तक वकीलों और पक्षकारों के इस तरह के संगठन ही नहीं हैं जो इस विषय पर जनचेतना को जगाने और सरकारों पर दबाव बनाने के लिए काम कर सकें।
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6 Comments
अजी साहिब अब मेरा भारत महान वाली बात का पोल तो खुल ही चुका है शायद अबी
यह कहने की कसर बाकी हो ; " शर्म हम को मगर नहीं आती"
इतना समय तो भारत में FIR दर्ज कराने में ही लग जाता है, जितने में वहां फैसला हो गया…हमें कुछ सीखने की जरूरत है
दिनेश जी हमारे यहां हर सरकारी काम की एक सीमा है वो ६ सप्ताह, अगर हमारा काम इन ६ सप्ताहो मै नही हुया तो हम उन कर्ययाले पर, उस अधिकारी पर केस कर सकते है, लेकिन हमारा कोई भी काम आज तक दो सप्ताह के अन्दर ही हो जाता है, आदलत से आज तक काम नही पडा लेकिन वहा भी दो चार सुनवाई मै ही काम निवट जाता है, यानि ज्यादा से ज्यादा ६ महीने, लेकिन हर सुनवाई ६ सप्ताह के अंदर होगी,
भारत मै आज भी हम जंगल राज मै ही जी रहे है, ना तो सही रुप मे मेडिकल मदद, ना शिक्षा ही सही रुप मे( जो अब धंधा बन गई) ओर ना ही सही रुप ने न्याय, खाने पीने की चीजे हद से महंगी, ऎशो आराम का समान सस्ता…..:)
द्विवेदी सर,
ऑस्ट्रेलिया में तो अगर कोई वोट नहीं देता तो उसे बाद में जुर्माना भरना पड़ता है…क्या भारतवासी तैयार होंगे इस व्यवस्था के लिए…
देश में न्यायिक सुधारों के लिए क्रांतिकारी बदलाव की आवश्यकता है…ठीक वैसे ही जैसे देश में कम्प्यूटर या दूरसंचार क्रांति हुई…इसके लिए न्यायिक फील्ड में भी एक अदद राजीव गांधी और एक अदद सैम पित्रोदा की ज़रूरत है…
जय हिंद…
जय हिंद…
भारतीय न्याय व्यवस्था वाकई में मज़ाक बन कर रह गयी है , फिर भी इस देश का यारो क्या कहना …..
अपनी स्पष्ट न्याय प्रणाली के रहते, ऑस्ट्रेलिया अपने मुंह पर लगी कालिख पोंछने में सफल रहा है !
स्टेंस और उनके दोनों मासूम बच्चों को सोते हुए पर जला दिया गया था ….क्या वह कालिख याद है हमें ….?
द्विवेदी जी आपके इस सामयिक लेख के लिए हार्दिक बधाई
सुधरेंगी स्थितियाँ शायद न्याय जल्दी मिला करे..बस, आशा ही कर सकते हैं.