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उद्योग/कार्यालय से दूर रहने की निषेधाज्ञा के मुकदमे को हलके से न लें, उस में अंतिम समय तक पैरवी की व्यवस्था करें

 बलदेव कुमार शर्मा ने पूछा है –
मैं एक लिमिटेड कम्पनी में पिछले पांच सालों से एसोशिएट के रूप में स्टोर विभाग में कार्य कर रहा हूँ , परन्तु कुछ दिन पहले श्रमिकों व प्रबंधकों के बीच किसी मुद्धे को लेकर कुछ तनाव पैदा हुए, जिसके चलते हुए श्रमिकों ने कम्पनी के गेट पर धरना शुरू कर दिया। यह धरना करीब 5 दिन चलता रहा और यह मुद्दा मीडिया में भी चर्चित रहा, और छठे दिन कम्पनी प्रबंधन ने कोर्ट द्वारा 22 कर्मचारियों के नामो की सूची गेट पर लगा दी कि ये लोग 23/5/2011 तक कम्पनी के गेट से 50 मीटर के दायरे के अंदर ना आयें और उसके अगले ही दिन शाम को कम्पनी कर्मचारियों और प्रबंधन के बीच सभी मुद्दों को लेकर आपसी समझैता हो गया। उसके बाद कम्पनी ने मुझे कुछ आरोप लगाकर कोर्ट से सम्मन निकलवा दिया है। जिस में 23/05/2011 को कोर्ट में पेश होने को दर्शया गया है, तो कृपया बताइये कि मैं कम्पनी द्वारा लगाये गए झूठे आरोपों के खिलाफ कोई मान हानि का मुकदमा या फिर किसी अन्य रूप में मैं क्या कर सकता हूँ? 

 उत्तर –
बलदेव जी,

प ने बात को स्पष्ट रूप से नहीं लिखा है, या फिर स्पष्ट रूप से समझा ही नहीं है। जब श्रमिकों ने कंपनी के गेट पर धरना आरंभ किया तो कंपनी ने धरना देने वाले श्रमिकों के विरुद्ध एक दीवानी वाद दीवानी न्यायालय में इस बात का प्रस्तुत किया जिस में ये कथन किए गए होंगे कि श्रमिकों ने गेट पर धरना दिया है, वे शोर करते हैं, कंपनी में आने जाने वाले लोगों के मार्ग में रुकावट पैदा करते हैं। लगातार नारे बाजी आदि के कारण कंपनी के काम में बाधा उत्पन्न होती है। इस तरह श्रमिकों की गतिविधियों के कारण कंपनी का सामान्य कामकाज बाधित होता है। इस कारण से डिक्री पारित की जा कर श्रमिकों के विरुद्ध निषेधाज्ञा पारित की जाए कि वे कंपनी की उत्पादन करने वाली इकाई और कार्यालय से 50 मीटर के दायरे में न आएँ और अपनी गतिविधियों को उस दायरे के बाहर ही रखें। इसी वाद में उन्हों ने अस्थाई निषेधाज्ञा के लिए आवेदन प्रस्तुत किया होगा जिस में तुरंत इस तरह की अस्थाई निषेधाज्ञा पारित करने की प्रार्थना की गई होगी। इस आवेदन के प्रस्तुत होने पर कंपनी के वकीलों ने अदालत को तुरंत आवश्यकता बताते हुए निवेदन किया होगा कि आप को नोटिस मिलने और आप के अदालत में उपस्थित होने तक इस तरह की अंन्तरिम आज्ञा जारी की जाए। प्रथम दृष्टया कंपनी के आवेदन को सही मानते हुए न्यायालय ने इस तरह का आदेश जारी कर दिया है। उसी आदेश को सम्मन व नोटिस के माध्यम से पहुँचाया गया है और आप को 23 मई को न्यायालय में स्वयं या किसी अधिवक्ता के माध्यम से उपस्थित होने के लिए आदेशित किया गया है। सम्मन व नोटिस में यह भी अंकित होगा कि यदि आप उपस्थित नहीं हुए तो न्यायालय एक तरफा सुनवाई कर के आदेश पारित कर देगा। 

ह किसी तरह का आरोप पत्र नहीं है। यह कंपनी द्वारा न्यायालय में प्रस्तुत एक दीवानी वाद का समन  और अस्थाई निषेधाज्ञा (व्यादेश) का नोटिस मात्र है। इन समन और नोटिस के साथ न्यायालय में प्रस्तुत वाद और प्रार्थना पत्र की प्रतियाँ भी अवश्य ही साथ होंगी। आप उन्हें पढ़ कर पता लगा सकते हैं कि क्या वाद और प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किए गए हैं। आप को चाहिए कि आप 23 मई 2011 को न्यायालय में उपस्थित हों अथवा सभी श्रमिक जिन के विर
ुद्ध यह वाद और प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किए गए हैं किसी वकील को अपना पक्ष प्रस्तुत करने को नियुक्त करें। अधिक उत्तम यही है कि इस मामले में किसी वकील की मदद आप प्राप्त करें। क्यों कि तकनीकी ज्ञान के अभाव में न्यायालय आप के विरुद्ध पारित अन्तरिम आदेश को अस्थाई व्यादेश में परिवर्तित कर सकता है और ऐसी स्थिति में आप को कठिनाई का सामना करना पड़ सकता है।

न्यायालय में आप का वकील आप का पक्ष प्रस्तुत करते हुए यह तथ्य सामने रख सकता है कि किन बातों पर उद्योग में नियोजक और कर्मचारियों (श्रमिकों) के मध्य विवाद उठ खड़ा हुआ था और उसे आपसी बातचीत व समझौते के माध्यम से सुलझा लिया गया है। अब विवाद सुलझ जाने के कारण न तो किसी तरह का कोई धरना और आंदोलन शेष रहा है और न ही इस तरह के न्यायालय के किसी आदेश की आवश्यकता है। आप को न्यायालय में यह भी कहना होगा कि आप का धरना प्रतीकात्मक था और उस से उद्योग की किसी भी उत्पादन और व्यापारिक गतिविधि पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है और न ही ऐसे प्रमाण नियोजक द्वारा इस वाद और आवेदन में प्रस्तुत किए गए हैं। 

म तौर पर होता यह है कि नियोजक इस तरह के वाद को न्यायालय से वापस नहीं लेते, अस्थाई निषेधाज्ञा पारित हो जाए या न भी हो। लेकिन वह वाद चलता रहता है। श्रमिक और उन की यूनियनें समझौता हो जाने पर न्यायालयी कार्यवाहियों के प्रति उदासीन हो जाते हैं और न्यायालय में चल रहे मुकदमे में वे स्वयं और उन के वकील उपस्थित होना ही बंद कर देते हैं। वकील को भी फीस आदि पूरी न मिलने के कारण वह ध्यान  नहीं देता। नतीजा यह होता है कि जो वाद नियोजकों द्वारा प्रस्तुत किया गया होता है उस में न्यायालय को एक तरफा सुनवाई करनी पड़ती है और अक्सर ही श्रमिकों के विरुद्ध इस तरह का निर्णय व डिक्री पारित हो जाती है कि श्रमिक उद्योग से 50,100 या 200 मीटर की परिधि में न जाएँ। शांति काल में नियोजक भी इस डिक्री का कोई उपयोग नहीं करते। लेकिन जैसे ही दोनों के बीच कुछ भी विवाद उत्पन्न होता है। वे डिक्री का सहारा ले कर श्रमिकों के वैधानिक और शांतिपूर्ण आंदोलन को भी पुलिस की मदद से तथा न्यायालय में अवमानना याचिका दाखिल कर के कुचलने का प्रयत्न करते हैं। पुलिस को भी डिक्री की आड़ में श्रमिकों के विरुद्ध कार्यवाही के लिए मौका मिल जाता है। 

स तरह के समन या नोटिस से मानहानि का कोई मामला नहीं बनता है। इस लिए उस दिशा में सोच कर आप अपना ही अहित करेंगे। आप को चाहिए कि जो वाद और अस्थाई निषेधाज्ञा का आवेदन आप के विरुद्ध न्यायालय में प्रस्तुत किया गया है उस में किसी भी तरह से सक्षम वकील को अपनी ओर से नियुक्त करें और पैरवी करवाएँ। प्रयत्न करें कि आप के विरुद्ध कोई अस्थाई निषेधाज्ञा का आदेश पारित न हो। उस प्रार्थना पत्र पर अंतिम आदेश केवल दावे के निर्णय तक के लिए ही होगा। इस कारण से उस के बाद भी दावे में पैरवी जारी रखें और उस में कोई निर्णय और डिक्री अपने विरुद्ध पारित न होने दें। क्यों कि इस तरह का निर्णय और डिक्री हमेशा हमेशा के लिए प्रभावी हो जाएगी। यदि आप के विरुद्ध कोई आदेश और निर्णय होता भी है तो उस की अपील अवश्य ही करें।  

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