DwonloadDownload Point responsive WP Theme for FREE!

पत्नी मायके से ही पुलिस में दहेज क्रूरता की रिपोर्ट कर दे तो पति क्या करे?

पिछली पोस्ट पर मुझे टिप्पणियों में दो प्रश्न मिले हैं —

Blogger सलीम ख़ान said…

द्विवेदी जी, मुझसे मेरे एक दोस्त ने मुझसे पूछा था कि उसने सेक्शन 9 दाखिल करा दिया था जब उसकी बीवी मायके अकारण ही चली गयी थी और मायके से ही थाने में दहेज़ की ऍफ़आईआर लिखवा देती है तो क्या करना चाहिए?

8 May 2010 2:08 PMDelete
Blogger रचना said…

what is the leagal optin of this case can a couple get a divorce in this case at all ?? for another 2 years

8 May 2010 7:18 PM
 उत्तर

सलीम भाई, 

आजकल एक माहौल बना हुआ है कि यदि पत्नी के विरुद्ध कुछ किया तो वह धारा 498-ए और धारा 406 भा.दं.सं. का मुकदमा लगा देगी। इस कारण से जरा भी कोई नाइत्तफाकी होती है तो यह समझ लिया जाता है कि ऐसा होगा। लेकिन ऐसा होना जरूरी नहीं है। मैं ने पिछली पोस्ट में भी धारा-9 हिन्दू विवाह अधिनियम का आवेदन सीधे प्रस्तुत करने की सलाह नहीं दी है। मैं ने सलाह दी है कि वे पहले अपनी पत्नी को मना लें। सही बात तो यह है कि हमारा समाज पुरुष प्रधान है। हम भले ही स्त्रियों को देवी का दर्जा भी दे देते हैं और यह भी कह लेते हैं कि जन्नत माँ के कदमों के नीचे है। लेकिन वास्तविकता यह है कि स्त्रियों के साथ समाज का व्यवहार दूसरे दर्जे के नागरिक जैसा है। लेकिन अब वक्त आ गया है कि स्त्रियाँ बराबरी का व्यवहार चाहती हैं, दूसरी और पुरुष अपना दंभ नहीं छोड़ना चाहता, वह स्त्रियों को पुराने तरीके से ही हाँकना चाहता है। इस अंतर्विरोध के कारण वैवाहिक विवादों की संख्या बढ़ी है। लेकिन यदि अच्छे काउंसलर हों तो उन की मदद से बिना अदालत जाए भी इस तरह के  अधिकांश विवादों को सुलझाया जा सकता है।

जहाँ तक आप के मित्र की आशंका का प्रश्न है। आज कल देश के सभी पुलिस थानों को यह हिदायत है कि धारा 198-ए और 406 भा. दं. सं. की शिकायतों पर पहले अच्छी तरह जाँच लिया जाए कि वे फर्जी तो नहीं हैं। इस कारण से आप के मित्र को घबराने की आवश्यकता नहीं है। यदि उन के विरुद्ध कोई शिकायत पुलिस को जाती है तो उन्हें चाहिए कि वे सचाई को पुलिस अधिकारियों के सामने रखें। यदि आप के मित्र सही हैं तो उन का कुछ भी नहीं होगा। यदि पुलिस का अन्वेषण अधिकारी तरफदारी कर रहा हो तो उच्चाधिकारियों को लिखा जा सकता है। उत्तर प्रदेश के सिवाय अन्य राज्यों में तो धारा 138 दं.प्र.सं. के अंतर्गत अग्रिम जमानत भी कराई जा सकती है। उत्तर प्रदेश में जहाँ धाराभी धारा 482 दं.प्र.सं. के अंतर्गत पुनरीक्षण याचिका उच्च न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत कर प्रथम सूचना रिपोर्ट को रद्द कराया जा सकता है।

रचना जी,

हिन्दू विवाह अधिनियम में विवाह की तिथि से एक वर्ष के पूर्व तो कोई आवेदन प्रस्तुत ही नहीं किया जा सकता जब तक कि कोई विशेष बात ही न हो। पिछली पोस्ट वाले मामले में तलाक का कोई आधार नहीं है। लेकिन पत्नी ने दांपत्य त्याग किया है और यदि उस का कोई औचित्य नहीं है। तो एक वर्ष या उस से अधिक का दांपत्य त्याग विवाह विच्छेद का आधार बन सकता है, लेकिन तभी जब कि उस का कोई औचित्य न हो। यदि पत्नी के पास अलग रहने का कोई औचित्य हुआ तो वैसी स्थिति में भी तलाक नहीं हो सकेगा। हाँ, यदि पति पत्नी से दाम्पत्य अधिकारों की पुनर्स्थापना के लिए आवेदन प्रस्तुत करे और न्यायालय उसे डिक्री प्रदान कर दे, और डिक्री के बावजूद पत्नी पति के साथ रहने को तैयार न हो तो फिर उस का यह कृत्य पति के लिए विवाह विच्छेद का मजबूत आधार होगा।

9 Comments