फिल्मों और टीवी सीरियलों में गलत जानकारियाँ और लिखित तथा रजिस्ट्रीकृत में फर्क
|भाई अभिषेक ओझा ने पिछले आलेख पर एक सवाल किया “लिखित और रजिस्ट्रीकृत में कितना फर्क है… अगर केवल लिखित दस्तावेज है तो शायद वो वैध नहीं होता?”
दिखने में साधारण सा यह प्रश्न बहुत ही महत्वपूर्ण है। लोगों को कानून और उस की पद्धतियों के बारे में जो जानकारी मिलती है वह समाचार पत्रों, रेडियो टीवी पर दिखाए गए समाचारों, टीवी सीरियलों और फिल्मों आदि के माध्यम से मिलती है। जिन में अधकचरा ज्ञान भरा पड़ा होता है। चीजों और घटनाओं को अत्यन्त विकृत रूप में दिखाया गया होता है कि उन पर विश्वास किया जाए तो अनर्थ हो जाए। मसलन अनेक टीवी सीरियलों और फिल्मों में दिखाया जाता है कि तलाक के लिए नोटिस भेजा जाता है जिसे कोई वकील ले कर पहुँचता है। नोटिस पर दस्तखत होते ही तलाक हो जाता है। इसी तरह कोई भी किसी दूसरे कागजों के बीच कागज फंसा कर या दूसरे किसी दस्तावेज को समझ कर संपत्ति हस्तांतरण के दस्तावेज पर हस्ताक्षर करा लेता है। एक इसी कागज के कारण तुरंत ही संपत्ति का मालिक संपत्ति से बेदखल होता नजर आता है। ये सभी बातें बनावटी हैं, वास्तव में ऐसा कुछ नहीं होता। न तो तलाक किसी नोटिस से या उस पर दस्तखत कर देने से होना संभव है और न ही संपत्ति का हस्तांतरण।
हिन्दू कानून में कोई भी तलाक अदालत के बिना संभव ही नहीं। अदालत में किसी एक को तलाक की अर्जी देनी होगी। उस पर दूसरे के नाम अदालत का नोटिस आएगा जिसे कोई वकील नहीं बल्कि अदालत का एक चतुर्थश्रेणी कर्मचारी ले कर आएगा। जिस में केवल यह सूचना होगी कि आप को निश्चित तारीख पर अदालत में आना है, और आप नहीं आए तो मुकदमा एक-तरफा सुनवाई कर निर्णय कर दिया जाएगा। आप को अदालत में हाजिर होना है, अपना जवाब देना है। उस के बाद एक लम्बी प्रक्रिया है जिस में समझाइश, दस्तावेज, सबूत, गवाही, बहस और बीच बीच में विविध प्रार्थना पत्र आदि सब कुछ है। तब जा कर तलाक की नौबत आती है। कई बार जवान लोग तलाक होते होते अधेड़ हो जाते हैं और अधेड़ वृद्ध हो जाते हैं।
इसी तरह संपत्ति हस्तांतरण के संबंध में है। 100 रुपए से अधिक मूल्य की कोई भी अचल संपत्ति किसी भी व्यक्ति को हस्तांतरित नहीं की जा सकती है। उस के लिए सरकार द्वारा उप रजिस्ट्रार के दफ्तर खोले हुए हैं, जहाँ संपत्ति हस्तांतरण आदि के दस्तावेज रजिस्टर होते हैं। संपत्ति हस्तांतरण पर शुल्क और स्टाम्प ड्यूटी अदा करनी होती है। फिर रजिस्ट्रार पूछता है कि आप कौन सी संपत्ति बेच रहे हैं? या हस्तांतरित कर रहे हैं? क्यों कर रहे हैं? बेच रहे हैं तो रकम पूरी मिल गई है या नहीं? आदि आदि। दस्तावेज पर हस्तांतरण करने वाले के, गवाहों के दस्तखत होते हैं, कार्यालय के रजिस्टर पर भी दस्तखत होते हैं। यही नहीं सब के अंगूठा निशानी कराए जाते हैं। फोटो भी दोनों जगह चिपकाए जाते हैं। इस तरह कोई भी काम इतना आसान नहीं होता जितना दिखा दिया जाता है।
यहाँ ऊपर जो कुछ लिखा गया है वह भी साधारण जानकारी है। इस विषय पर जानकारी कभी विस्तार से बताऊँगा। हाँ अभिषेक जी ओझा के प्रश्न का उत्तर है कि….. लिखित दस्तावेज वह है जो किसी कागज या स्टाम्प पेपर पर लिखा होता है जिस पर लिखने वाले के दस्तखत और कभी गवाहों के दस्तखत भी होते हैं। रजिस्ट्रीकृत वह जो सरकार के उप रजिस्ट्रार के दफ्तर में कानून और नियमों के तहत रजिस्टर कराया गया हो। रजिस्ट्रीकृत दस्तावेजों का पूरा रिकार्ड रखा जाता है, उन की प्रतिलिपियाँ सुरक्षित रखी जाती हैं जिन की प्रमाणित प्रतिलिपियाँ निर्धारित शुल्क दे कर उप रजिस्ट्रार के दफ्तर या जिला अभिलेखागारों से प्राप्त की जा सकती हैं।
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कानूनी मुद्दोँ को बडी आसानी से समझाते हैँ आप –
– लावण्या
यह तो बड़े काम की बात बताई। कुछ अंदाज था, पर पहले स्पष्टत: नहीं ज्ञात था रजिस्ट्री का महत्व।
बहुत बढिया जानकारी!!!शुक्रिया!!
बहुत आसान एवं सरल शब्दावली में आपने ये कानूनी पेंच समझाए हैं, शुक्रिया।
सही कानूनी व्याख्या है…
एक ही बात को बार-बार कहने से वह या तो हास्यास्पद हो जाती है या फिर चापलूसी । ये दोनों खतरे उठाते हुए एक बार फिर कह रहा हूं कि जिस सरलता और सहजता से आप कानूनों की व्याख्या प्रस्तुत कर रहे हैं उससे कानून के प्रति भय में कमी आ रही है और लगने लगा है कि कानून हमारा अच्छा मित्र हो सकता है ।
आपने फिल्मों वाली बात कही है । क्या ऐसा कोई तरीका हो सकता है जो फिल्मों में, कानून की ऐसी हास्यास्पद प्रस्तुति पर राके लगा सके ।
बहुत बढिया जानकारी सरजी..
धन्यवाद दिनेशजी आपने एक छोटे से सवाल की पूरी विस्तृत जानकारी दे दी. कानून जब भी दिमाग में आता है, फिल्मों का असर तो होता ही है 🙂
फ़िल्मी शादियाँ, फ़िल्मी पुलिस और फ़िल्मी तलाक सब एक जैसे !