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फौजदारी अपील संक्षेपतः मेरिट पर खारिज की जा सकती है

विगत आलेख न जज, न अदालत और न ही वकील अंधे हैं पर उन्मुक्त जी की टिप्पणी थी कि –क्या फौजदारी की अपीलें भी अदम पैरवी पर खारिज की जाती हैं? या फिर गुण दोष पर तय की जाती हैं? और यदि वह बेकसूर हो तो उसे छोड़ दिया जाता है? यदि ऐसा नहीं होता है तो यह जेल में व्यक्ति के साथ अन्याय होगा कि पैसे के अभाव में उसका पक्ष नहीं देखा गया।

मैं इसी विषय को आगे दो दिन अदालती कामों और शादियों में उलझा रहा। समय कम मिला तो तीसरा खंबा पाठकों की अदालत में गैर हाजिर हो गया। आज दुबारा उसी विषय पर बात की जा सकती है। “एक ने आजीवन कारावास की सजा दी, दूसरे ने बरी कर दिया” आलेख में  जिस मामले का उल्लेख किया गया था उस में से एक ही निर्णय के विरुद्ध दो अपीलें दाखिल की गई थीं। पहली अपील जो मुलजिम के रिश्तेदारों द्वारा वकील नियुक्त कर दाखिल की गई थी को निरस्त कर के सजा को बहाल रखा गया था। दूसरी अपील जेल में बंद अभियुक्त द्वारा की गई थी जिस में उसे बरी कर दिया गया। फौजदारी अपीलें दोनों में से किसी एक तरह से दाखिल की जा सकती हैं, दोनों तरह से अपीलों की सुनवाई के कायदे  भिन्न हैं।  हम दोनों पर अलग अलग बात करते हैं।

किसी भी फौजदारी फैसले की अपील अभियुक्त के वकील के हस्ताक्षरों से दाखिल की जा सकती है और वह वकील उस मुकदमे में किसी और वकील को भी नियुक्त कर सकता है। जैसा कि पहली वाली अपील के मामले में हुआ है। रिश्तेदारों ने उस के वकील के जरिए अपील करवा दी और इस की खबर जेल में अभियुक्त को नहीं हुई और उसे सूचित भी कर दिया हो तो उसे इस पर विश्वास नहीं हुआ।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 384 के अंतर्गत उसे संक्षेपतः खारिज कर दिया गया। जो कि अभियुक्त या उस के वकील को सुनवाई का अवसर दे कर खारिज की जा सकती है। अपील में वकील का नाम हो और मुकदमें की सूची में वकील का नाम छपा हो तो यह माना जाता है कि अभियुक्त के वकील को अवसर दे दिया गया है। वकील  के अदालत में हाजिर न होने पर अपील को खारिज किया जा सकता है। एक बार अपील के दायर हो जाने के बाद अपील खारिज हो जाने पर यही लिखा जाएगा कि निचली अदालत के निर्णय को बहाल रखा जाता है। संक्षेपतः खारिज की गई अपील के लिए यह आवश्यक नहीं है कि निचली अदालत की फाइल को मंगाया और अवलोकन किया ही जाए। केवल निर्णय को और अपील के आधार देख कर उसे खारिज किया जा सकता है।

जेल से हुई अपील में न्यायालय खुद जिम्मेदार हो जाता है वह खुद अभियुक्त की ओर से वकील नियुक्त करवाता है और सुनवाई भी गंभीरता से होती है। क्यों कि वहाँ अभियुक्त द्वारा नियुक्त वकील नहीं होता। इस मामले में निचली अदालत की फाइल मंगा कर निर्णय किया गया हो तो उसे उलटा भी जा सकता है। इस मामले में यही हुआ है। गलती केवल इतनी है कि जेल से हुई अपील को सुनते समय यह नहीं देखा जा सका कि इस मामले में पहले कोई अन्य अपील दाखिल तो नहीं हुई है और उस का नतीजा क्या रहा है। आम तौर पर जेल से होने वाली अपील पहली ही होती है।

मेरा कहना बस इतना है कि फौजदारी अपील अदम पैरवी में खारिज नहीं की जाती है।  लेकिन अपील में आधार ढंग के न हों और वकील हाजिर न हो तो उसे मेरिट पर निर्णीत किया जा सकता है लेकिन अधिकांश मामलों में निर्णय अपील का खारिज होना ही होगा।

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