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बैंक की गलती से चैक अनादरित होने पर क्या होगा? क्या बैंक के विरुद्ध मुकदमा किया जासकता है?

डाक्टर अनुराग ने-
चैक अनादरण सबंधी आलेख पर अपनी टिप्पणी में प्रश्न किया  ……

लेकिन उसका क्या जब बैंक की गलती से कोई चेक बोउंस हो जाये …….और बैंक स्वीकार भी करे।  क्या हम बैंक पर भी मुकदमा कर सकते हैं?

एक ओर सवाल इससे अलग हटकर,  क्या पार्टीशन डीड में भी मिले कागजात में पहले ओर दूसरे कागज का कोई अलग महत्त्व है ?

उत्तर

यदि बैंक की गलती से कोई चैक अनादरित हो जाए तो धारा 138 परक्राम्य विलेख अधिनियम का अपराध कभी नहीं बनेगा।  क्यों कि केवल चैक के अनादरण से धारा 138 का अपराध नहीं बनता है।  चैक अनादरण के बाद उस की सूचना प्राप्त होने पर चैक धारक चैक देने वाले को एक लिखित सूचना देता है कि वह चैक की राशि सूचना प्राप्ति के 15 दिनों में भुगतान कर दे।  इस तरह बैंक की गलती होने पर चैक की राशि चैक धारक को सूचना मिलने के 15 दिनों में नकद या बैंक ड्राफ्ट के माध्यम से अदा कर दी जाए धारा 138 का अपराध नहीं बनेगा।

यहाँ मैं एक बात और स्पष्ट करना चाहूँगा कि चैक प्रदाता चैक की राशि का भुगतान कर उस की रसीद या कोई अन्य साक्ष्य. अपने पास अवश्य रखे,  जिससे यह साबित किया जा सके कि चैक प्रदाता ने चैक की राशि का भुगतान कर दिया है।  सब से सावधान कदम तो यह होगा कि चैक प्रदाता चैक धारक से रसीद प्राप्त करने के साथ साथ अपना अनादरित चैक भी वापस प्राप्त कर ले।  जब कि अनादरित चैक ही धारक के पास से चैक प्रदाता के पास वापस आ जाएगा तो इस बात की संभावना भी समाप्त हो जाएगी कि चैक धारक उस के विरुद्ध किसी प्रकार की कार्यवाही कर सके।  इस तरह चैक प्रदाता को धारा 138 का मिथ्या अभियोजन कर के परेशान करने की संभावना पूरी तरह से समाप्त हो जाएगी।

हाँ, यदि चैक बैंक की गलती से अनादरित होता है तो उस का यह परिणाम तो होगा ही कि चैक प्रदाता को किसी न किसी रूप में परेशान होना ही होगा।  जिस से उसे आर्थिक हानि के साथ-साथ शारिरिक व मानसिक संताप भी होगा।  बैंक की यह गलती उस के द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाओं में एक गंभीर त्रुटि है।  चैक प्रदाता बैंक का उपभोक्ता भी है।  ऐसी अवस्था में चैक प्रदाता बैंक के विरुद्ध उपभोक्ता मंच के समक्ष क्षतिपूर्ति के लिए परिवाद कर सकता है।

 आप के दूसरे प्रश्न का उत्तर अगले अंक में ……

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