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मंदी में नियोक्ताओं की उन के कामगारों को काम देने में असमर्थता और उस से संबंधित कानून

 मैं ने कल यह उल्लेख किया था कि मंदी के इस समय में बहुत से नियोक्ता उन के यहाँ काम करने वाले कामगारों की अज्ञानता और विवशता का लाभ उठा रहे हैं।  वे पहले उन्हें कहते हैं कि उन के पास काम नहीं है। जब काम होगा तो वे उन्हें काम पर बुला लेंगे, और वे इस व्यवस्था को स्वीकार नहीं करेंगे तो उस के पास उन्हें छंटनी करने के अतिरिक्त कोई मार्ग शेष नहीं रह जाएगा।  मजदूर उन की इस बात को स्वीकार कर काम से बैठ जाते हैं और काम पर बुलाए जाने की प्रतीक्षा करते हैं।

लेकिन इन सब परिस्थितियाँ पहले भी आ चुकी हैं। मंदी कोई नयी चीज नहीं है। यह पूंजीवादी व्यवस्था का एक अभिन्न अंग है जो मुनाफे के लिए किए जाने वाले उत्पादन की अराजकता से उत्पन्न होती है और हर आठ से बारह, पन्द्रह वर्ष बाद लोगों को बरबाद कर जाती है।  पूँजीवाद के इस लक्षण को देखते हुए खुद पूँजीवादी सरकारों ने ऐसी परिस्थितियों में मालिक मजदूर संबंधों को नियंत्रित करने के लिए कानून बनाए हुए हैं।  भारत में औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 इसी लिए बनाया गया है।  इस अधिनियम में वे सभी परिस्थितियाँ और उन परिस्थितियों में मालिक और मजदूर संबंधों को किस तरह परिचालित होना चाहिए यह निर्धारित किया गया है।

आज हम यहाँ उस परिस्थिति पर चर्चा करेंगे जब मालिक किसी वजह से अपने कामगारों को कहता है कि उस के पास काम उपलब्ध नहीं है और वह काम नहीं दे सकता है।  इस तरह मालिक द्वारा किसी भी कारण विशेष से अपने कामगारों को काम न दे सकने की असमर्थता को इस अधिनियम में ले-ऑफ कहा गया है।  ले-ऑफ की परिभाषा इस अधिनियम की धारा 2 (केकेके) में निम्न प्रकार दी गई है।

 धारा का अंग्रेजी पाठ
2 (kkk)  
“lay-off” (with its grammatical variations and cognate expressions) means the failure, refusal or inability of an employer on account of shortage of coal, power or raw materials or the accumulation of stocks or the break-down of machinery or natural calamity or for any other connected reason to give employment to a workman whose name is borne on the muster-rolls of his industrial establishment and who has not been retrenched;
Explanation : Every workman whose name is borne on the muster-rolls of the industrial establishment and who presents himself for work at the establishment at the time appointed for the purpose during normal working hours on any day and is not given employment by the employer within two hours of his so presenting himself shall be deemed to have been laid off for that day within the meaning of this clause :
Provided that if the workman, instead of being given employment at the commencement of any shift for any day is asked to present himself for the purpose during the second half of the shift for the day and is given employment, then, he shall be deemed to have been laid off only for one half of that day :
Provided further that if he is not given any such employment even after so presenting himself, he shall not be deemed to have been laid off for the second half of the shift for the day and shall be entitled to full basic wages and dearness allowance for that part of the day;

धारा का हिन्दी भावार्थ इस तरह है-
2. (केकेके) 
“ले ऑफ” का अर्थ (इसके व्याकरण भिन्नरूपों और समानार्थी भावों सहित) एक नियोक्ता की  कोयला, बिजली या कच्चे माल की कमी के या उत्पादन के संचय या  मशीनरी के ब्रेक डाउन या   प्राकृतिक आपदा अन्य किसी कारण से विफलता, इनकार या एक नियोक्ता की उस कर्मकार को रोजगार प्रदान करने में असमर्थता है जिस का नाम उस के औद्योगिक संस्थान के मस्टर रौल पर है और जिस की छंटनी नहीं की गई है।
स्पष्टीकरण: हर कर्मकार को जिसका नाम  औद्योगिक प्रतिष्ठान के मस्टर रोल पर  है और जो काम के लिए काम के लिए निर्धारित समय पर स्वयं को प्रस्तुत करता है और नियोक्ता द्वारा उसे दो घंटों के भीतर रोजगारनहीं दिया जाता है तो समझा जाएग
ा कि उसे उस दिन के लिए ले-ऑफ कर दिया गया है।
यदि कर्मकार को निर्देश दिया जाता है कि वह शिफ्ट के आखरी आधे समय के लिए काम पर आए तो समझा जाएगा कि उसे आधे दिन के लिए ही ले-ऑफ किया गया था।
और आधे दिन के बाद भी उसे काम नहीं दिया जाता है तो समझा जाएगा कि उसे दूसरे आधे दिन के लिए ले-ऑफ नहीं दिया गया था और वह उस आधे दिन के मूल वेतन और महंगाई भत्ते की हकदार होगा। 

 इस तरह आप समझ सकते हैं कि किसी भी नियोजक के समक्ष कोई ऐसी विवशता खड़ी होती है कि वह कुछ समय के लिए उस के कामगारों को रोजगार उपलब्ध कराने में असमर्थ रहे तो वह अपने कामगारों से ले-ऑफ पर रहने को कह सकता है।  इस के लिए कानून में प्रावधान हैं।   इस के लिए उसे कामगारों को लिख कर आदेश देना चाहिए और इस की सूचना उसे श्रम विभाग को भी देना चाहिए।  यदि नियोक्ता इस तरह अस्थाई रूप से अपने कामगारों को काम  दे सकने में असमर्थ रहता है और कोई लिखित आदेश नहीं देता है और इस की सूचना श्रम विभाग को भी लिखित में नहीं देता है तो कामगारों को चाहिए कि वे इस की सूचना श्रम विभाग के अधिकारी को लिखित में दें जिस से उन के अधिकार सुरक्षित रहें।  (जारी)
आलेख के अगले भाग में जानिए कि ले-ऑफ देने से कामगारों के हितों की किस प्रकार से सुरक्षा होती है और किस तरह से नियोजकों के हित भी सुरक्षित रहते हैं।

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