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स्थगन की शर्त के रूप में न्यायालय में जमा राशि डिक्री का भुगतान नहीं है

मेरी कार दुर्घटना में क्षतिग्रस्त हो गई थी। मेरी कार का बीमा था। बीमा कंपनी ने मुझे क्षतिपूर्ति देने से मना कर दिया। मैं ने क्षतिपूर्ति के लिए बीमा कंपनी के विरद्ध जिला उपभोक्ता फोरम में मुकदमा किया। मुकदमे में करीब 2,75,000 रुपए क्षतिपूर्ति तथा दुर्घटना की तिथि से भुगतान करने तक क्षतिपूर्ति की राशि पर 8 प्रतिशत ब्याज अदा करने का आदेश हुआ। कंपनी ने क्षतिपूर्ति अदा करने के स्थान पर अपील की। राज्य मंच ने इस शर्त पर कि बीमा कंपनी दिलाई गई क्षतिपूर्ति की राशि की आधी राशि उपभोक्ता फोरम में जमा करा दे तो जिला फोरम के निर्णय का निष्पादन रोक दिया जाए। बीमा कंपनी ने आधी राशि जिला फोरम में जमा करवा दी। जिला फोरम ने उसे राज्य कोष में जमा करवा दिया जिस का कोई ब्याज नहीं मिलता। राज्य मंच ने बीमा कंपनी की अपील खारिज करते हुए जिला मंच का निर्णय बहाल रखा। अब बीमा कंपनी क्षतिपूर्ति की आधी राशि व उस पर ब्याज देने को तैयार है। लेकिन आधी राशि जो जिला फोरम के यहाँ जमा है उस का ब्याज देने को तैयार नहीं है। उस के लिए कहती है कि वह राशि मैं जिला फोरम से प्राप्त कर लूँ। मुझे जिला फोरम के यहाँ जमा राशि का ब्याज मिलेगा या नहीं? यदि मिलेगा तो उस के लिए कोई नजीर अवश्य बताएँ।

-कमल गुप्ता, अजमेर, राजस्थान

प को 2,75,000 रुपए क्षतिपूर्ति अदा करने तथा उस पर दुर्घटना की तिथि से भुगतान तक 8 प्रतिशत ब्याज देने का निर्णय जिला फोरम ने दिया था जो अपील में बहाल रहा। इस तरह आप को दुर्घटना की तिथि से उक्त राशि अदा होने तक पूरी राशि पर 8 प्रतिशत ब्याज प्राप्त करने का अधिकार है। बीमा कंपनी ने जो राशि जिला फोरम में जमा कराई है वह उक्त निर्णय के निष्पादन के लिए नहीं जमा कराई थी अपितु इस बात की सुरक्षा के लिए जमा कराई थी कि उस के विरुद्ध क्षतिपूर्ति की जिस राशि को अदा करने का निर्णय हुआ है उस निर्णय का निष्पादन नहीं हो सके। जिला फोरम के समक्ष उक्त राशि जमा कराने के साथ बीमा कंपनी का कर्तव्य था कि वह जिला फोरम से यह आग्रह करती कि उस के द्वारा जमा कराई गई राशि को किसी ऐसे फण्ड में निवेश किया जाए जिस से कम से कम 8 प्रतिशत वार्षिक ब्याज उस राशि पर मिलता रहे। न्यायालय उस के आवेदन पर उस राशि को किसी सावधि जमा में निवेश कर सकता था। इस तरह उस राशि पर ब्याज मिलता रहता और अपील खारिज होने की स्थिति में बीमा कंपनी उस ब्याज से जिला फोरम के निर्णय द्वारा दिलाए गए ब्याज की अदायगी कर सकती थी। लेकिन बीमा कंपनी ने अपने इस कर्तव्य का पालन नहीं किया। इस कारण बीमा कंपनी को क्षतिपूर्ति की पूरी राशि पर भुगतान की तिथि तक ब्याज देना होगा।

स संबंध में 29 मई 2009 को दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा मेसर्स अरविंद कंस्ट्रक्शन कंपनी बनाम मेसर्स इंजिनियरिंग प्रोजेक्ट के मुकदमे में दिया गया निर्णय देख सकते हैं। इस के अतिरिक्त आप ए. तोष एण्ड सन्स इंडिया लि. बनाम एन.एन. खन्ना के मुकदमे में दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा पारित निर्णयों को देख सकते हैं और आवश्यकता होने पर इन्हें निष्पादन न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत कर सकते हैं। इन दोनों ही निर्णयों में बताया गया है कि यदि अपील न्यायालय द्वारा अधीनस्थ न्यायालय की डिक्री को स्थगित करने के लिए कोई राशि जमा करने का आदेश दिया जाता है तो ऐसी राशि को डिक्री के भुगतान के लिए अदा की गई राशि नहीं माना जा सकता। ऐसी राशि वास्तव में जिस दिन डिक्री धारक को प्राप्त होगी उस दिन तक का ब्याज निर्णीत ऋणी को अदा करना होगा।