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अपने संवैधानिक मूल कर्तव्यों को स्मरण रखें और उस के अनुरूप व्यवहार करें।

26 नवम्बर,2008 को मुम्बई पर हुए आतंकवादी हमले के विरुद्ध जिस तरह देश में आतंकवाद के विरुद्ध जंग का वातावरण बना है और अकर्मण्यता के विरुद्ध रोष व्याप्त हुआ है, उसे अतुलनीय कहा जा सकता है। 27 नवम्बर, 2008 को अनवरत और तीसरा खंबा पर प्रकाशित आलेख यह शोक का वक्त नहीं, हम युद्ध की ड्यूटी पर हैं की भावना सर्वत्र देश भर में पायी गई। लेकिन आज उस पर एक प्रश्न यह उठ रहा है कि क्या यह भावना स्थाई हो सकेगी?

इस भावना के स्थाई होने से ही आतंकवाद को परास्त किया जाना संभव हो सकेगा। प्रश्न यह भी सामने आया कि आम नागरिक क्या करे? आम नागरिक एक काम तो यह कर सकता है कि वह जीवन में सतर्कता को अपनाए और ऐसी किसी भी संदेहास्पद परिस्थिति, गतिविधि और व्यक्ति की सूचना ऐसे अधिकारियों को दे जो उस संबंध में संदेह की जाँच कर आवश्यक कार्यवाही कर सकें। जब तक संदेह की जांच और आवश्यक कार्यवाही न हो तब तक चैन से न बैठें। इस के अलावा इस बात का भी ध्यान रखें कि निरर्थक संदेहों के कारण हमारी शक्ति और सामर्थ्य का अपव्यय न हो। यह भी ध्यान रखा जाए कि मिथ्या संदेह के कारण हम किसी देश-भक्त नागरिक के नागरिक और जनतांत्रिक अधिकारों की बलि न चढ़ा दें।

इस के साथ ही हम हमारे संविधान में 42वें संशोधन विधेयक 1976 द्वारा जोड़े गए नागरिक कर्तव्यों को स्मरण करें। उन्हें अपनी आदत बनाने का प्रयत्न करें। संविधान के भाग 4क के अनुच्छेद 51क में दर्ज नागरिकों के मूल कर्तव्य इस प्रकार हैं …..

मूल कर्तव्य 

 51 क. मूल कर्तव्य- भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह-

(क) संविधान का पालन करे और उस के आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्र ध्वज और राष्ट्रगान का आदर करे ;
(ख) स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को हृदय में संजोए रखे और उन का पालन करे;
(ग) भारत की प्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करे और उसे अक्षुण्ण रखे;
(घ) देश की रक्षा करे और आह्वान करने किए जाने पर राष्ट्र की सेवा करे;
(ङ) भारत के सभी लोगों में समरसता और समान भ्रातृत्व की भावना का निर्माण करे जो धर्म, भाषा और प्रदेश या वर्ग पर आधारित सभी भेदभाव से परे हो, ऐसी प्रथाओं का त्याग करे जो स्त्रियों के सम्मान के विरुद्ध है;
(च) हमारी सामासिक संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का महत्व समझे और उस का परिरक्षण करे;
(छ) प्राकृतिक पर्यावरण की, जिस के अंतर्गत वन, झील नदी और वन्य जीव हैं, रक्षा करे और उस का संवर्धन करे तथा प्राणि मात्र के प्रति दयाभाव रखे;
(ज) वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करे;
(झ) सार्वजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखे और हिंसा से दूर रहे;
(ञ) व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का सतत प्रयास करे जिस से राष्ट्र निरंतर बढ़ते हुए प्रयत्न और उपलब्धि की नई ऊंचाइयों को छू ले;
(ट) यदि माता-पिता या संरक्षक है, छह वर्ष से चौदह वर्ष तक की आयु वाले अपने, यथास्थिति, बालक या प्रतिपाल्य के लिए शिक्षा का अवसर प्रदान करे।

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आशा है आप इस विनम्र आग्रह को स्वीकार करेंगे…
 
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