अपमानित कर के काम से निकाल दिया, क्या करना चाहिए?
|मेरे पिता जी 16 वर्ष से दैनिक भास्कर प्रेस बिलासपुर में फोरमेन, सहायक प्रोडक्शन मैंनेजर) के पद पर काम करते हैं, कुछ दिन पूर्व उन्हें प्रोडक्शन मैनेजर ने काम के दौरान कंपनी से अपमानित कर के बाहर निकाल दिया और धमकी दी कि सिधाई से त्यागपत्र दे दो वर्ना टर्मिनेट कर दिए जाओगे और गार्ड से बोल कर कंपनी में प्रवेश पर रोक लगा दी। इस की शिकायत उन्हों ने प्रेस के शाखा प्रमुख से की। लेकिन कोई भी हल नहीं निकला। उच्च अधिकारियों से भी बात की परन्तु किसी ने उन्हें कंपनी से निकालने का का कारण नहीं बताया। इस सम्बन्ध में उचित मार्गदर्शन करें कि आगे क्या करना चाहिए?
-महेश, बिलासपुर, छत्तीसगढ
आप के कथन से यह स्पष्ट हो चुका है कि आप के पिताजी को नौकरी से हटा दिया गया है और संस्थान के उच्चाधिकारियों की इस में सहमति थी। उन में से किसी से भी, यहाँ तक कि कंपनी के निदेशकों तक से गुहार लगाना बेकार सिद्ध होगा। आप के पिताजी फोरमेन थे। एक प्रेस का फोरमेन औद्योगिक विवाद अधिनियम के अंतर्गत कर्मकार होता है। जब कि सहायक प्रोडक्शन मैनेजर पदनाम उसे इस लिए दिया गया है कि उसे प्रबंधन का एक भाग मान लिया जाए और उस के कर्मकार होने से इन्कार कर दिया जाए। जिस से वह औद्योगिक विवाद न उठा सके। लेकिन यह प्रबंधन की यह चालबाजी श्रम न्यायालयों के सामने नहीं चल पाती है। प्रबंधन किसी को नौकरी से इस तरह इसलिए निकालता है कि बाद में वह कह सके कि कर्मकार स्वयं ही नौकरी से अनुपस्थित था, तथा जब तक वह न्यायालय में कार्यवाही न करे तब तक उस पर त्यागपत्र दे कर हिसाब ले लेने का दबाव बनाया जाए।
आप के पिताजी को तुरंत अपने नियोजक जो संस्थान में उन का नियुक्ति अधिकारी हो उसे एक पंजीकृत पत्र लिखना चाहिए कि उसे दिनांक 00-00-0000 को प्रोडक्शन मैनेजर ने दुर्व्यवहार करते हुए काम से हटा दिया। ऐसा करना संस्थान से उन की छंटनी है। यदि प्रबंधन उन्हें पत्र मिलने के तीन दिनों में सेवा में पुनः वापस नहीं लेता है और बैठकी के दिनों का वेतन नहीं देता है तो वे कानूनी कार्यवाही करने को बाध्य होंगे। इस पत्र की एक प्रति राज्य सरकार के श्रम विभाग में देते हुए उस की रसीद भी प्राप्त कर लें।
इस के बाद भी यदि उन्हें पुनः सेवा में वापस नहीं लिया जाता है तो श्रम विभाग में अवैध छंटनी को निरस्त कराने और पिछले पूरे वेतन, सेवा की निरंतरता के साथ पुनः सेवा में वापस लेने की मांग करते हुए शिकायत प्रस्तुत करें और उस की रसीद जिस पर श्रम विभाग ने शिकायत प्राप्त करने की तिथि अंकित की हो और प्राप्तकर्ता ने अपने हस्ताक्षर और सील लगाई हो प्राप्त कर ले। इस शिकायत पर श्रम विभाग समझौता कार्यवाही आरंभ करेगा। यदि 45 दिनों में कोई समझौता संपन्न नहीं होता है या राज्य सरकार द्वारा विवाद को श्रम न्यायालय को अधिनिर्णयार्थ संप्रेषित नहीं किया जाता है तो आप के पिता जी सीधे ही श्रम न्यायालय के समक्ष विवाद प्रस्तुत कर सकते हैं। जहाँ विवाद का न्यायिक प्रक्रिया द्वारा निर्णय होगा। इन सब कामों के लिए आप के पिताजी को ऐसे वकील की मदद लेनी चाहिए जो श्रम न्यायालय में पिछले दस वर्षों से प्रेक्टिस कर रहा हो और श्रम विवादों के संबंध में अच्छी कानूनी जानकारी रखता हो। इस के साथ ही आप के पिताजी को चाहिए कि वे अन्यत्र काम तलाश लें और मिलने पर नौकरी करें, खाली न बैठे रहें।