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आज की दुर्गा – महिला सशक्तिकरण

उन्मुक्त जी का यह लेख महिलाओं की अपने अधिकारों की कानूनी लड़ाई के बारे में है। इसमें महिला अधिकार और सशक्तिकरण की चर्चा है।

दुर्गा, शक्ति का रूप हैं। इतनी शक्तिमान कि भगवान राम ने भी लंका पर आक्रमण के समय, दुर्गा की आराधना की। उनकी कथा कुछ ऐसी है कि जब देवता, महिषासुर से संग्राम में हार गये और उनका ऐश्वर्य, श्री और स्वर्ग सब छिन गया तब वे दीन-हीन दशा में वे भगवान के पास पहुँचे।  भगवान के सुझाव पर सबने अपनी सभी शक्तियॉं (शस्त्र) एक स्थान पर रखीं।  शक्ति के सामूहिक एकीकरण से दुर्गा उत्पन्न हुई।  पुराणों में उसका वर्णन है – उसके अनेक सिर हैं, अनेक हाथ हैं। प्रत्येक हाथ में वह अस्त्र-शस्त्र धारण किए हैं। सिंह, जो साहस का प्रतीक है, उसका वाहन है।  ऐसी शक्ति की देवी ने महिषासुर का वध किया। वे महिषासुरमर्दनी कहलायीं।

मेरे विचार से यह कथा संघटन की एकता का महत्व बताने के लिये बतायी गयी है। शक्ति, संघटन की एकता में ही है।  हमारी कथाओं में देवी दुर्गा का वर्णन है कि उनके सहस्त्र सिर और असंख्य हाथ हैं।  यह वास्तव में संघटक के सहस्त्रों सिर और असंख्य हाथ हैं।  साथ चलोगे तो हमेशा जीत का सेहरा बंधेगा।  देवताओं को जीत तभी मिली जब उन्होने अपनी ताकत एकजुट की।

दुर्गा, शक्तिमयी हैं, उनका सशक्तिकरण हो चुका है।  लेकिन आज की महिला क्या शक्तिमयी है?  क्या उसका सशक्तिकरण हो चुका है?  क्या वह आज दुर्गा बन चुकी है?  शायद नहीं, पर उसके पास कुछ अधिकार तो हैं, वह कुछ तो शक्तिमान हुई।  यह अधिकार, यह शक्तियां उसे किसी ने दिये नहीं हैं। यह उसने खुद लड़ कर प्राप्त किये हैं।  आइये नजर डालें उन किस्से कहानियों पर, उस कानून पर, उन फैसलों पर, जिन्हों ने महिला अधिकारों को सुदृढ़ किया और कुछ हद तक महिलाओं को दुर्गा का रूप दिया पर सबसे पहले कुछ बातें इस महिला दिवस के बारे में।

महिला दिवस (women’s day)

मेरिका में सोशलिस्ट पार्टी के आवाहन, यह दिवस सबसे पहले २८ फरवरी १९०९ में मनाया गया। इसके बाद यह फरवरी के आखरी इतवार के दिन  मनाया जाने लगा।  १९१० में सोशलिस्ट इंटरनेशनल के कोपेनहेगन के सम्मेलन में इसे अन्तरराष्ट्रीय दर्जा दिया गया।  उस समय इसका प्रमुख ध्येय महिलाओं को वोट देने के अधिकार दिलवाना था क्योंकि, उस समय अधिकर देशों में महिला को वोट देने का अधिकार नहीं था।

९१७ में रुस की महिलाओं ने, महिला दिवस पर रोटी और कपड़े के लिये हड़ताल पर जाने का फैसला किया। यह हड़ताल भी ऐतिहासिक थी। ज़ार ने सत्ता छोड़ी, अन्तरिम सरकार ने महिलाओं को वोट देने के अधिकार दिये। उस समय रुस में जुलियन कैलेंडर चलता था और बाकी दुनिया में ग्रेगेरियन कैलेंडर। इन दोनों की तारीखों में कुछ अन्तर है। जुलियन कैलेंडर के मुताबिक १९१७ की फरवरी का आखरी इतवार २३ फरवरी को था जब की ग्रेगेरियन कैलैंडर के अनुसार उस दिन ८ मार्च थी। इस समय पूरी दुनिया में (यहां तक रूस में भी) ग्रेगेरियन कैलैंडर चलता है। इसी लिये ८ मार्च, महिला दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।

हिलाओं के अधिकारों की बात करते समय एक शब्द लैंगिक न्याय (Gender Justice) प्रयोग होता है। इस शब्द के अर्थ अलग अलग समय पर, अलग अलग देश में अलग अलग रूप में जाने जाते हैं। आइये समझें कि हमारे देश इस समय यह किस अर्थ में लिया जाता है।

लैंगिक न्याय (Gender Justice)

लैंगिक न्याय अर्थात किसी के साथ लिंग के आधार पर भेद-भाव नहीं होना चाहिये। बहुत से लोग समलैंगिक अधिकारों को भी इसके अन्दर मानते हैं। समलैगिंकों के साथ भेदभाव होता है लेकिन वह इसलिये नहीं कि उनका लिंग क्या है वह इसलिये कि वे अपने लिंग के ही लोगों में रूचि रखते हैं।  मेरे विचार से, समलैंगिग अधिकारों को लैंगिक न्याय के अन्दर रखना उचित नहीं है।  उनके अधिकारों को अलग से नाम देना, या अल्पसंख्यक (Minority) या जातीय (ethnic) अधिकारों के अन्दर रखना, या Gay rights कहना ठीक होगा।

म कुछ अन्य श्रेणी के व्यक्तियों के अधिकारों पर भी विचार करें, उदाहरणार्थः

  1. Trans- Sexual:  यह वह लोग हैं जो एक लिंग के होते हैं पर बर्ताव दूसरे लिंग के व्यक्तियों की तरह से करते हैं;
  2. Trans gendered:  लिंग परिवर्तित: यह वह व्यक्ति हैं जो आपरेशन करा कर अपना लिंग परिवर्तित करवा लेते हैं। इसमें सबसे चर्चित व्यक्ति रहे रीनी रिचर्डस्। ये पुरुष थे और आपरेशन करा कर महिला बन गये, पर उन्हें महिलाओं की टेनिस प्रतियोगिता में कभी भी खेलने नहीं दिया गया। उन्हें कुछ सम्मान तब मिला जब वे मार्टीना नवरोतिलोवा की कोच बनीं। मैंने इस तरह के लोगों के साथ हो रहे भेदभाव के बारे में Trans-gendered – सेक्स परिवर्तित पुरुष या स्त्री की चिट्ठी पर लिखा है;
  3. Inter-Sex बीच के: लिंग डिजिटल नहीं है। मानव जाति को केवल पुरूष या स्त्री में ही नहीं बांटा जा सकता हैं। हम क्या हैं, कैसे हैं, यह क्रोमोसोम (chromosome) तय करते हैं। यह जोड़े में आते हैं। हम में क्रोमोसोम के २३ जोड़े रहते हैं। हम पुरूष हैं या स्त्री, यह २३वें जोड़े पर निर्भर करता है। महिलाओं में यह दोनों बड़े अर्थात XX होते हैं पुरूषों में एक बड़ा एक छोटा यानि कि XY रहते हैं। अक्सर प्रकृति अजीब खेल खेलती है। कुछ व्यक्तियों में २३वें क्रोमोसोम जोड़े में नहीं होते: कभी यह तीन या केवल एक होते हैं अर्थात XX,Yया XYY, या X, या Y. यह लोग पूर्ण पुरूष या स्त्री तो नहीं कहे जा सकते – शायद बीच के हैं। इसलिए इन्हें Inter-Sex कहा जाता है। संथी सुन्दरराजन शायद इसी प्रकार की हैं। इसलिये दोहा एशियाई खेलो में, उनसे रजत पदक वापस ले लिया गया।

पर वर्णित तीनो तरह के व्यक्तियों के साथ लिंग के आधार पर भेदभाव होता है। अधिकतर जगह, यह लोग हास्य के पात्र बनते हैं।  इन्हें भी न्याय पाने का अधिकार है।  पर अपने देश में लैंगिक न्याय का प्रयोग केवल महिलाओं के साथ न्याय के संदर्भ में किया जाता है और अगले अंक में हम बात करेंगे महिलाओं के साथ न्याय, उनके सशक्तिकरण की: आज की दुर्गा की।

-उन्मुक्त

(क्रमशः)

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