आमिर कसाब और अभियुक्त का प्रतिरक्षा कराने का अधिकार
|303. जिस व्यक्ति के विरुद्ध कार्यवाही संस्थित की गई है उस का प्रतिरक्षा कराने का अधिकार – जो व्यक्ति दण्ड न्यायालय के समक्ष अपराध के लिए अभियुक्त है या जिस के विरुद्ध इस संहिता के अधीन कार्यवाही संस्थित की गई है, उस का यह अधिकार होगा कि उस की पसंद के प्लीडर द्वारा उस की प्रतिरक्षा की जाए।
304. कुछ मामलों में अभियुक्त को राज्य के व्यय पर विधिक सहायता-
(1) जहाँ सेशन न्यायालय के समक्ष विचारण में अभियुक्त का प्रतिनिधित्व किसी प्लीडर द्वारा नहीं किया जाता है, और न्यायालय को यह प्रतीत होता है कि अभियुक्त के पास किसी प्लीडर को नियुक्त करने के लिए पर्याप्त साधन नहीं हैं, वहाँ न्यायालय उस की प्रतिरक्षा के लिए राज्य के व्यय पर प्लीडर उपलब्ध करेगा।
(2) राज्य सरकार के पूर्व अनुमोदन से उच्च न्यायालय उपबंध करने वाले नियम बना सकता है।
(क). उपधारा (1) के अधीन प्रतिरक्षा के लिए प्लीडरों के चयन के ढंग का,
(ख) ऐसे प्लीडरों को न्यायालयों द्वारा दी जाने वाली सुविधाओं का,
(ग) ऐसे प्लीडरों को सरकार द्वारा संदेय फीसों का और साधारणतः उपधारा (1) के प्रयोजनों को कार्यान्वित करने के लिए,
(3) राज्य सरकार अधिसूचना द्वारा यह निर्देश दे सकती है कि उस तारीख से जो अधिसूचना में विनिर्दिष्ट की जाए, उपधारा (1) और (2) के उपबंध राज्य के अन्य न्यायालयों के समक्ष किसी वर्ग के विचारणों के संबंध में वैसे ही लागू होंगे जैसे वे सेशन न्यायालय के समक्ष विचारणों के संबंध में लागू होते हैं।
यहाँ इन प्रावधानों को प्रस्तुत करने का उद्देश्य मात्र इतना है कि पाठक जान लें कि एक अभियुक्त के क्या अधिकार हैं।
पाकिस्तान को हम ने एक सूची भारत के प्रति आतंकवाद का अपराध करने वाले व्यक्तियों की सूची दी है, और उन्हें अभियोग के लिए भारत को सौंप देने की बात कही है। पाकिस्तान कहता है कि उसे सबूत दिए जाएँ वह खुद उन पर मुकदमा चलाएगा उन के कानून के अनुसार।
यहाँ हम ने एक आतंकवादी मोहम्मद अजमल आमिर कसाब को को रंगे हाथों पकड़ा है, हम उस के विरुद्ध अपने कानून के हिसाब से मुकदमा चला कर उसे दंडित करना चाहते हैं। हमें अपने कानून के अनुसार उसे प्लीडर (वकील) उपलब्ध कराना ही होगा। यह उसे दंडित करने के लिए उस के विरुद्ध मुकदमा चलाने की पहली शर्त है।
उसे वकील उपलब्ध न कराने का अर्थ होगा कि हम उसे मुकदमा चलाए बिना बंद रखें। जो हम कानून के अनुसार नहीं कर सकते। हमें उस पर मुकदमा चलाना ही होगा। हम उसे मुकदमा चलाए बिना दंडित भी नहीं कर सकते। यदि हम मुकदमा चलाए बिना मृत्युदंड से दंडित करते हैं, तो यह हिरासत में हत्या होगी।
जब उस के हाथ में बन्दूक थी और वह हमले पर था तब हम उसे गोली मार सकते थे। वह आत्मरक्षा में किया गया वध होता, और निर्दोष होता। मुम्बई हमले के शेष नौ आतंकवादी ऐसे ही मारे गए हैं। एक बार उसे जीवित पकड़ लेने और उसे निहत्था कर देने पर बिना मुकदमा चलाए उसे दिया गया मृत्यु-दंड सदोष-वध होगा।
कसाब को जीवित पकड़ना हमारे सुरक्षा बलों और पुलिस की एक उपलब्धि है। जिस से हमें अंतर्राष्ट्रीय मंच पर आतंकवाद के उदगम को साबित कर पाने में सफलता मिल रही है। क्या हम हमारे सुरक्षा बलों और पुलिस की उस उपलब्धि को नष्ट कर देना चाहेंगे, जो हमारे जवानों की शहादत पर हासिल हुई है?
शत्रु के साथ भी समान व्यवहार करने की भारत की गौरवशाली सांस्कृतिक परम्परा, प्राकृतिक न्याय के सिध्दान्त और राष्ट्र्ीय रक्षा के सन्दर्भों में मैं पहले ही आपकी बात पर सहमति प्रकट कर चुका हूं । किन्तु आज के नईदुनिया (इन्दौर) में प्रकाशित अपने लेख में, देश के पूर्व प्रधान न्यायाधीश, न्यायमूर्ति वी. एन. खरे ने, ‘कसाब को कानून मदद का हक है ?’ शीर्षक आलेख में कहा है – ‘सम्विधान के अनुच्छेद 22 में, गिरफ्तारी के मामले में नागरिकों को प्राप्त संरक्षण का लाभ शत्रु या दूसरे देश के नागरिक को प्राप्त नहीं है ।’
यह बहुत ही महत्वपूर्ण तथ्य है जो आपकी इस पोस्ट सहित (आपके और मुझ जैसे) उन तमाम लोगों की धारणा ध्वस्त करता है जो कसाब को वकील उपलब्ध कराने का समर्थन कर रहे हैं ।
असुविधाजनक बात यह है कि न्यायमूर्ति खरे ने भी अपना कोई स्पष्ट निष्कर्ष प्रस्तुत नहीं किया है किन्तु प्रकरण में महत्वपूर्ण सन्दर्भ तो उपलब्ध करा ही दिया है ।
आपसे अनुरोध है कि कृपया http://www.naidunia.com पर जाकर, इसके इन्दौर संस्करण को देखने का कष्ट उठाएं । जहां तक मैं देख सका हूं, पृष्ठ 9 पर यह लेख उपलब्ध है । इस लेख को डाउन लोड करने में मुझे सफलता नहीं मिली अन्यथा मैं यह लेख अपने ब्लाग पर प्रस्तुत कर देता ।
कृपया यह कष्ट उठा कर स्थिति स्पष्ट करने का दुरुह श्रम करें ।
बेहतरीन प्रस्तुति के लिये आपका आभार
इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि हमारी ही कमजोरी का नाजायज फायदा उठाकर आज आतंकवाद व भ्रष्टाचार हम पर हावी है. हमें अपनी कमजोरी को ढूंढ कर आतंकवाद व भ्रष्टाचार को जड़ से समाप्त करना होगा. कसाब को फांसी देने से आतंकवाद कभी भी समाप्त नहीं हो सकती.
आपका
महेश
मैं लेखक के बातों व तर्कों से सहमत हूँ. पर यह बात सही है कि हम ख़ुद इतने गिरे हुए व पतित हैं कि अन्दर से पैसा खाकर दोषी को निर्दोष व निर्दोष को दोषी बनाने से नहीं हिचकते. हमें इस बात पर विचार करना होगा कि आख़िर आतंकवाद व भ्रष्टाचार के इतने बड़े पैमाने पर फैलते जाने का मुख्य कारण क्या है.
आपका
महेश
कानूनी पेंचों में उलझकर कहीं ये मामला गले की हड्डी ना बन जाए । इस मामले में तो जल्द से जल्द फ़ैसला कर कसाब को फ़ानी दुनिया से रवाना करना चाहिए वरना मौलाना मसूद अज़हर की तरह इसकी रिहाई के लिए फ़िर कोई नई आतंकी कार्रवाई की तैयारी हो सकती है ।
aapke pass to bhndar hai dada jo kabhee khali nahi hoga, bante raho. narayan narayan
जानकारी के लिये आपको धन्यवाद !
राम राम !