उस्तरा किस के हाथ?
|कल मैं ने आतंकवाद निरोधक अधिनियम (पोटा) की विशेषताएँ बताई थीं। उस की ये विशेषताएँ ही उस की सब से बड़ा दुर्गुण बन गईं। उस्तरा शरीर के बालों की हजामत करने का बेहतरीन औज़ार है। पर तब तक ही, जब तक वह अभ्यासी नाई के हाथों में हो। वह किसी विज्ञान के विद्यार्थी के हाथ में हो तो वस्तुओं के महीन भागों को काट कर उन का अध्ययन करने में सहायक होता है। वही उस्तरा यदि अनाड़ी या किसी बच्चे के हाथ लग जाए तो उस से वह खुद को या औरों को नुकसान पहुँचाता है। वह किसी बदले की आग के हवाले हो जाए तो वह लोगों का गला भी काटता है, और किसी बंदर के हाथ लग जाए तो कहना ही क्या।
पोटा ने जो सुविधाएँ प्रदान की थीं उस ने हमारे नाकारा और सिरफिरे पुलिस अफसरों को भस्मासुर बना दिया। अब वे जिस किसी के सर पर हाथ रखते वही भस्म हो जाता। हमारा दस सालों का टाड़ा का अनुभव यह बता रहा था कि उस कानून में पुलिस यातनाओं के अन्तर्गत लिए गए इकबालिया बयानों को सबूत माने जाने के बावजूद जितने लोगों पर अभियोग लगाया गया था उस में से एक प्रतिशत से भी कम को सजा हो सकी थी। अर्थात 99 लोगों को पुलिस ने फिजूल ही सताया था। पोटा का अनुभव उस से भी बुरा था। जून 2005 में आई पोटा रिव्यू कमेटी की रिपोर्ट बताती है कि 11,384 लोगों को पोटा के अंतर्गत गलत रूप से आरोपित किया गया जिन्हें नियमित अपराधिक कानूनों के अंतर्गत आरोपित किया जाना चाहिए था।
वास्तव में हमारी नकारा पुलिस ने तलवार से सब्जी काटना शुरु कर दिया था। जब उन्हें अपने सामने किसी भी तरह से इकबालिया बयान दर्ज करने की छूट मिली तो इसे ही उन्हों ने अन्वेषण का पहला और आखिरी हथियार समझ लिया। जरा भी किसी को परेशान करने की नीयत होती तो उसे पोटा में बंद कर दिया जाता। पुलिस के लिए अपनी कस्टडी में इकबालिया बयान दर्ज करा लेना सब से आसान काम दिखाई देने लगा। यहाँ एक बात और भी थी कि जब भी कोई आतंकी वारदात ऐसी हो जाती जिस के अपराधियों को उस के लिए तलाशना कठिन होता तो वह किसी को भी धर दबोचती। उधर राजनेताओं को भी अपने प्रतिद्वंदियों से निपटने का यह अच्छा हथियार मिल गया था। यहाँ तक कि इस कानून के एक केन्द्रीय मंत्री तक को धर दबोचने का काम हो चुका था।
पोटा जब एक अध्यादेश के रूप में सामने लाया गया था तो उस के उद्देश्यों और कारणों के वक्तव्य में ही यह कह दिया गया था कि इस का दुरुपयोग न होने देने के लिए पर्याप्त प्रावधान कर दिये गए हैं। इस का सीधा अर्थ ही यह था कि इस का दुरुपयोग होने की पूरी संभावना थी जो भविष्य में खरी उतरी।
आतंकवाद से निपटने के लिए हमें अपनी मशीनरी को सजग और मुस्तैद बनाने की जरूरत है। वास्तविक आतंकवादियों की खोज, करना उन्हें पकड़ना, उन के मंसूबों को सफल नहीं होने देना। इन सब के लिए एक विशेष दक्षता की और सतर्क-सजग सुरक्षा व्यवस्था की आवश्यकता है। उस के बिना हम आतंकवाद को नहीं रोक सकते। हमें अपनी समूची प्रणाली को दुरुस्त करना होगा। उस के अभाव में हम किसी भी सर्वाधिकारी कानून के बाद भी असफल होते रहेंगे। इस तरह का कानून बेगुनाहों पर तलवार चलाता रहेगा और आतंकवादी अपनी गतिविधियों को अंजाम देते रहेंगे।
talented tally you’ve bear
vast account you hog
वाकई आपने इस कानून की बारीकिया समझाई है
दिनेश जी, काई बार सुना था कि पोटा का दुरुपयोग हो सकता है, हो रहा है, आदि. लेकिन असल समस्या क्या है यह अब स्पष्ट हुई.
आपने बहुत ही सधे शब्दों में मामला समझाया है.
सस्नेह — शास्त्री
आपने समस्या का मूल बता दिया । आपके परिश्रम को नमन ।
ये उस्तरा वाली बात पोता के अलावा भी कई जगह हो रही है. हर जगह ग़लत हाथों में ! बड़ी समस्या है. और उस्तरे बनाने से ये समस्या तो हल होनी नहीं.
पहली बार इस बारे में कुछ जाना, कानून के बारे में, समझाने के लिए मेरे विचार में देश में यह अकेला ब्लाग है ! आपको अपनी प्रैक्टिस के अलावा, इतना समय निकाल कर भला कार्य करने के लिए शुभकामनायें !
उस्तरा नेता याने बन्दर के हाथ में ही रहेगा. बहुत ही विचारणीय . धन्यवाद.
यह सही है कि सिर्फ़ कोई कानून बना देने से अपराध कम नहीं हो जाते. कानून का सही, निष्पक्ष और ईमानदारी से इस्तेमाल जरूरी है.
लेकिन इस बात पर भी गौर कीजिए. जो राजनीतिक पार्टियाँ पोटा का विरोध किया और करती हैं, उन्होंने ही मालेगांव के आरोपियों पर मकोका (पोटा का एक और रूप) लगाया है. यही पार्टियां गुजरात में मकोका जैसे कानून को सहमती नहीं दे रही हैं. कानून में भी भेद भाव!!! हर पार्टी और सरकार बस यही कर रही है – दूसरों को नसीहत, ख़ुद मियां फजीहत.
पोटा के बारे में इतने अच्छे विश्लेषण के लिए धन्यवाद.
हम पोटा लागू किए जाने के ज़माने से मानते रहे हैं कि इस प्रकार के कानून आतंकवाद का मुकाबला नही करते आतंकवाद का मुकाबला करती है सुदृढ़ और मुस्तैद पुलिस तथा न्यायिक व्यवस्था
हमें दिखावों की नही सही क़दमों की आवश्यकता है
dada,hame hamare gyan ka,ojar ka pryog karna aaye tabhee fayda hai warna bandar ke hath me ustra kahawat hai naa. narayan narayan
चाणक्य नीति यही कहती है कि जिस राष्ट्रका खुफिया तँत्र सक्षम होता है वही सुरक्षा दे पाता है
आम जनता के सुख का खयाल रखा जाना जरुरी है
आतंकवाद से निपटने के लिए हमें अपनी मशीनरी को सजग और मुस्तैद बनाने की जरूरत है। वास्तविक आतंकवादियों की खोज, करना उन्हें पकड़ना, उन के मंसूबों को सफल नहीं होने देना। इन सब के लिए एक विशेष दक्षता की और सतर्क-सजग सुरक्षा व्यवस्था की आवश्यकता है। उस के बिना हम आतंकवाद को नहीं रोक सकते। हमें अपनी समूची प्रणाली को दुरुस्त करना होगा। उस के अभाव में हम किसी भी सर्वाधिकारी कानून के बाद भी असफल होते रहेंगे। इस तरह का कानून बेगुनाहों पर तलवार चलाता रहेगा और आतंकवादी अपनी गतिविधियों को अंजाम देते रहेंगे।
सही लिखा आपने | जब तक हम अपना सजग खुफिया तंत्र मजबूत नही कर लेते तब तक आतंकवादी घटनायों पर काबू नही पा सकते ना ही तलाश सकते हैं |
आप ने बिलकुल सही लिखा, यह नेता …
धन्यवाद
सच इन नामुरादों [netaon]से और क्या उम्मीद करें हम