ऊपर के फ्लेट से रिसते पानी को रोकने और हो चुकी क्षतियों की पूर्ति के लिए दीवानी वाद प्रस्तुत करें।
|समस्या-
एस के जैन ने बंगलूरु, कर्नाटका से राजस्थान राज्य की समस्या भेजी है कि-
राजस्थान ब्यावर में एक कॉम्प्लेक्स में मेरा फ्लैट है। छत से पानी रिसता है। ऊपर फ्लैट वाले को बहुत बार कहा पाइप सही कराओ, लेकिन वो 3 साल से ऐसे ही टालमटोल कर रहा है। 2 जगह से सीमेंट भी गिर गयी है। बिल्डिंग कमजोर होती जा रही है। क्या कोई क़ानूनी कार्यवाही कर सकते हैं।
समाधान–
किसी पडौसी द्वारा अपने क्षेत्र में ऐसा कार्य करना जिस से दूसरे पड़ौसी को किसी तरह की परेशानी हो या उस की संपत्ति को नुकसान पहुँचे और उस का जीवन या संपत्ति खतरे में पड़ जाए दुष्कृत्य है। किसी पड़ौसी के किसी दुष्कृत्य से आप को यदि कोई हानि पहुँचती है तो आप उस हानि की क्षतिपूर्ति के लिए दीवानी वाद न्यायालय में प्रस्तुत कर सकते हैं। यदि ऐसा कोई दुष्कृत्य लगातार किया जा रहा है तो उसे रोके जाने के लिए न्यायालय से निषेधाज्ञा प्राप्त की जा सकती है।
आप के फ्लेट को ऊपर वाले फ्लेटवासी के कृत्य से नुकसान पहुँच रहा है तो आप सीधे सीधे क्षतिपूर्ति तथा दुष्कृत्य को रोके जाने के लिए स्थाई निषेधाज्ञा का वाद प्रस्तुत कर सकते हैं तथा इसी वाद में अस्थाई निषेधाज्ञा के लिए आवेदन प्रस्तुत कर तुरन्त दुष्कृत्य को रोके जाने हेतु अस्थाई निषेधाज्ञा प्राप्त कर सकते हैं।
आप को यह वाद ब्यावर में प्रस्तुत करना होगा। यदि आप ब्यावर आ कर यह कार्य नहीं कर सकते तो आप किसी व्यक्ति को इसी कार्य के लिए मुख्तार खास (Special Attorney) नियुक्त कर उस के माध्यम से यह कार्य करवा सकते हैं।
न्याय में देरी इसलिए भी होती है कि हम तारिखों पर स्वयं नहीं जाते। तारिखों पर स्वयं जाये व जज से मामले को समय से देखने को कहे। एक शिकायत आपकी पत्नी को महिला आयोग में डालनी चाहिए । सामान्य थाने वाले सही कार्यवाही नहीं करते , पर महिला आयोग के फोन पर वो मन से कार्यवाही करते है क्योंकि उन्हें भी अपनी नौकरी प्यारी होती है ।
अपनी बात जब तक निर्भय होकर नहीं कहेगे हम अन्याय ही सहते रहेगे ।
बबिता, आप की बात आंशिक सत्य है। पर हर पेशी पर न्यायालय जाने वाले लाखों लोग भी इस देश में न्याय नहीं पाते हैं और उन के मुकदमे पेशी दर पेशी चलते रहते हैं। सचाई यही है कि भारतीय न्याय व्यवस्था को सरकारों ने लील लिया है। वे उस के लिए पर्याप्त बजट ही उपलब्ध नहीं कराते। जजों के कोटा निश्चित कर दिए गए हैं उन्हें रोज इतने मुकदमे तो निपटाने ही हैं। वे निपटाते भी हैं। यदि भारतीय न्याय पालिका का रिकार्ड देखा जाए तो वह विश्व में सर्वोत्तम गति से काम करने वाली सिद्ध हो जाएगी। लेकिन वह केवल आँकड़ों का निर्माण करती है, न्याय नहीं कर पाती।
दिनेशराय द्विवेदी का पिछला आलेख है:–.भगतसिंह आज भी भारत की जनता के मार्गदर्शक हैं – शैलेन्द्र चौहान