एफआईआर में नाम होने मात्र के आधार पर पति-संबन्धियों के विरुद्ध धारा-498ए का मुकदमा नहीं होना चाहिये -उच्चतम न्यायालय
|भारत की सबसे बड़ी अदालत, अर्थात् सुप्रीम कोर्ट द्वारा अनेक बार इस बात पर चिन्ता प्रकट की जा चुकी है कि भारतीय दण्ड संहिता की धारा 498-ए का जमकर दुरुपयोग हो रहा है। जिसका सबसे बड़ा सबूत ये है कि इस धारा के तहत तर्ज किये जाने वाले मुकदमों में सजा पाने वालों की संख्या मात्र दो फीसदी है! यही नहीं, इस धारा के तहत मुकदमा दर्ज करवाने के बाद समझौता करने का भी कोई प्रावधान नहीं है! ऐसे में मौजूदा कानूनी व्यवस्था के तहत एक बार मुकदमा अर्थात् एफआईआर दर्ज करवाने के बाद वर पक्ष को मुकदमे का सामना करने के अलावा अन्य कोई रास्ता नहीं बचता है। जिसकी शुरुआत होती है, वर पक्ष के लोगों के पुलिस के हत्थे चढने से और वर पक्ष के जिस किसी भी सदस्य का भी, वधु पक्ष की ओर से धारा 498ए के तहत एफआईआर में नाम लिखवा दिया जाता है, उन सबको बिना ये देखे कि उन्होंने कोई अपराध किया भी है या नहीं उनकी गिरफ्तारी करना पुलिस अपना परम कर्त्तव्य समझती है!
डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’जयपुर से प्रकाशित हिन्दी पाक्षिक समाचार-पत्र “प्रेसपालिका” के सम्पादक, होम्योपैथ चिकित्सक, मानव व्यवहारशास्त्री, दाम्पत्य विवादों के सलाहकार, विविध विषयों के लेखक, टिप्पणीकार, कवि, शायर, चिन्तक, शोधार्थी, तनाव मुक्त जीवन, लोगों से काम लेने की कला, सकारात्मक जीवन पद्धति आदि विषय के व्याख्याता तथा समाज एवं प्रशासन में व्याप्त नाइंसाफी, भेदभाव, शोषण, भ्रष्टाचार, अत्याचार और गैर-बराबरी आदि के विरुद्ध 1993 में स्थापित एवं 1994 से राष्ट्रीय स्तर पर दिल्ली से पंजीबद्ध राष्ट्रीय संगठन-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास) के मुख्य संस्थापक एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष भी हैं। जिसमें 31 अक्टूबर, 2010 तक, 4531 पंजीकृत आजीवन कार्यकर्ता देश के 17 राज्यों में सेवारत हैं। मो. : 098285-02666 |
अनेक बार तो खुद पुलिस एफआईआर को फड़वाकर, अपनी सलाह पर पत्नीपक्ष के लोगों से ऐसी एफआईआर लिखवाती है, जिसमें पति-पक्ष के सभी छोटे बड़े लोगों के नाम लिखे जाते हैं। जिनमें-पति, सास, सास की सास, ननद-ननदोई, श्वसुर, श्वसुर के पिता, जेठ-जेठानियाँ, देवर-देवरानियाँ, जेठ-जेठानियों और देवर-देवरानियों के पुत्र-पुत्रियों तक के नाम लिखवाये जाते हैं। अनेक मामलों में तो भानजे-भानजियों तक के नाम घसीटे जाते हैं। पुलिस ऐसा इसलिये करती है, क्योंकि जब इतने सारे लोगों के नाम आरोपी के रूप में एफआईआर में लिखवाये जाते हैं तो उनको गिरफ्तार करके या गिरफ्तारी का भय दिखाकर अच्छी-खासी रिश्वत वसूलना आसान हो जाता है और अपनी तथाकथित अन्वेषण के दौरान ऐसे आलतू-फालतू-झूठे नामों को रिश्वत लेकर मुकदमे से हटा दिया जाता है। जिससे अदालत को भी अहसास कराने का नाटक किया जाता है कि पुलिस कितनी सही जाँच करती है कि पहली ही नजर में निर्दोष दिखने वालों के नाम हटा दिये गये हैं।
ऐसे में सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश द्वय टीएस ठाकुर और ज्ञानसुधा मिश्रा की बैंच का हाल ही में सुनाया गया यह निर्णय कि “केवल एफआईआर में नाम लिखवा देने मात्र के आधार पर ही पति-पक्ष के लोगों के विरुद्ध धारा-498ए के तहत मुकदमा नहीं चलाया जाना चाहिये”, स्वागत योग्य है| यद्यपि यह इस समस्या का स्थायी समाधान नहीं है। जब तक इस कानून में से आरोपी के ऊपर स्वयं अपने आपको निर्दोष सिद्ध करने का भार है, तब तक पति-पक्ष के लोगों के ऊपर होने वाले अन्याय को रोक पाना असम्भव है, क्योंकि यह व्यवस्था न्याय का गला घोंटने वाली, अप्राकृतिक और अन्यायपूर्ण कुव्यवस्था है!
जब तक झूटी f i r करवाने की सजा इन रांडो को नहीं मिलेगी तब तक कानून के समझ में सच सामने नहीं आएगा
सर
मेरे ससुराल वाले झूठा मुक़दमा करने की धमकी देते है . मै किस तरह बच सकता हूँ क्या कानून में इस तरह के निर्देश आ गए है कि FIR के सभी नाम पर मुक़दमा नहीं चलेगा . और मुझे बचने के लिए क्या करना चाहिए कृपा करके मुझे कुछ कानूनी राय दीजिये ताकि मै अपने परिवार को बचा सकू . मेरी माता जी को ब्लड सुगर , DIBITIES , की बीमारी है . एक भाई भी है
आप का आभारी रहूगा
धन्यवाद
श्रीमान निरंकुश साहब, आपका लेख पढ़ा
परन्तु आपने यह नहीं बताया क स.कोर्ट ने यह फेसला मैं पक्छ्कर कौन थीय, यदि हो सके तो बताइए.
काफी जानकारीपूर्ण ज्ञानवर्द्धक अभिव्यक्ति …
इस आलेख व्यक्त विचारों से पूर्णता सहमत हूँ. ऐसे मामलों में ठोस कार्यवाही करते हुए किसी लडके का जीवन बर्बाद करने के लिए जब तक सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के जज दहेज के झूठे मामलों में लड़की के परिजनों और पुलिस के अधिकारीयों को सिर्फ डांटने/सलाह देने के अलावा उनपर सख्त कार्यवाही नहीं करती हैं. तब तक यह “क़ानूनी-आतंकवाद” रुकने वाला नहीं है.
ऐसे आदेशों को पुलिस अधिकारी रद्दी की टोकरी में फैंक देते हैं. यदि ऐसे आदेशों को मानने लग गए तो उनके बच्चे भूखे(सैलरी से पेट नहीं भरता है, बहुत कम होती है ) मर जायेंगे, क्योंकि यदि सुसराल वालों के जितने ज्यादा से ज्यादा सदस्यों का नाम होगा. उतनी ही मोटी रकम मिलेगी. जब मोटी रिश्वत नहीं मिलेगी तब तक गिरफ्तारी का भय दिखाकर परेशान करते रहेंगे.
मैं आपको अपना एक छोटा-सा उदाहरण देता हूँ कि मेरे और मेरे परिजनों के नाम मुकद्दमा दर्ज होने के लगभग अठारह महीने बाद एक दिन आए मेरी पत्नी के फोन पर बताया था. हमें वुमंस सैल वालों ने कहा था कि अपने पति के भाइयों आदि का भी नाम लिखवा दो और तुम्हारे खिलाफ ही हमारा मामला मजबूत नहीं बन रहा था. इसलिए अश्लील फोटो और वीडियो बनाने आदि के आरोप लगाने पड़े है. मैंने बिना दहेज लिए “कोर्ट मैरिज” की थी. फिर पुलिस ने रिश्वत लेने के लिए कभी मेरे भाइयों की जमानत रद्द करवाने के लिए धमकी दी और मेरी जमानत सुप्रीम कोर्ट में भी न होने देने की और मेरे गुप्त अंग पर करंट लगाने की धमकी देकर परेशान रखा. आखिर में कोर्ट में “आत्मसमपर्ण” किया और निर्दोष होते हुए भी एक महीना तिहाड़ जेल रहकर आ चुका हूँ. अब आने वाले समय में सभ्य युवा भी हथियार उठाकर अपराध नहीं करेगा तो क्या करेगा ? यदि मेरी पत्नी के कथन को सत्य मानते हुए मेरे खिलाफ मुकद्दमा दर्ज हो सकता है तो मेरी पत्नी का तो यह भी कहना है कि “वुमंस सैल” के एक अधिकारी ने उसका “रेप” करने का प्रयास भी किया था और जान से मारने की धमकी भी दी. कानून बनाने वालों की और महिला आयोग की यह कैसी कार्यशैली है महिलाओं का इंसाफ दिलवाने की रणनीति. क्या इसी प्रकार की रणनीति को अपनाकर महिलाओं को इंसाफ दिला जायेगा ?
एक बेबस युवा की टिप्पणी देखें-आजकल बलात्कार(धारा 376) के मामले कम दर्ज होने लगे है लेकिन…..दहैज प्रताडना(धारा 498 अ)के ज्यादा मामले सामने आ रहै और वो भी 94% झुठे है.फिर भी सरकार जाने कब जागेगी ?
हमारी टिप्पणी-सरकार को नीचे से ऊपर तक हिस्सा पहुँच जाता है, तब जागने की क्या जरूरत है ? आज जागने की जरूरत तो युवाओं और देशवासियों को हैं. आज उनको संगठित होकर बेहतर न्याय व्यवस्था(आवश्यकतानुसार अदालतों का निर्माण) बनाने की मांग करना जरुरी है. आज के समय में पुलिस वालों और कुछ वकीलों(जिनका नैतिकता पतन हो चुका है) के दहेज प्रताड़ना ((धारा 498 अ) मामले देखते ही आँखों में जितनी चमक आती है. उतनी तो किसी अन्य मामलों में भी नहीं आती है. हर आदमी की गिरफ्तारी का भय दिखाकर पुलिस लुटती है और फिर हर आरोपी की जमानत करवाने की फ़ीस वकील को मिलती है और तोहफे में एक साथ अनेको केस भी मिलते है. जैसे-बच्चों की कस्टडी, तलाक, गुजारा भत्ता आदि. इससे बहुत सारे प्रतिभाशाली युवा अपना जीवन नष्ट भी कर रहे है.
हमें (पत्नी पीड़ित) एकजुट होना होगा और मौत (जब मौत आनी होगी तो सात तालों में भी आ जायेगी.मौत एक दिन सब को आनी है. फिर हम मौत से क्यों डरें ? मौत से वो डरें जो गलत करता है.मौत एक कड़वा सच है. इसको जितनी जल्दी स्वीकार कर लें, उतना अच्छा होता है.मैं तो बस यह कहता हूँ कि आप आये हो, एक दिन लौटना भी होगा. फिर क्यों नहीं तुम ऐसा करो कि तुम्हारे अच्छे कर्मों के कारण तुम्हें पूरी दुनिया हमेशा याद रखें. धन-दौलत कमाना कोई बड़ी बात नहीं, पुण्य कर्म कमाना ही बड़ी बात है) का डर निकालकर आने वाली पीढ़ी के कुछ अच्छा करने के लिए सख्त कदम उठाने होंगे.
रमेश कुमार जैन उर्फ सिरफिरा का पिछला आलेख है:–.सरकार, पुलिस और लड़की वालों का गुंडाराज कब चलेगा ?
श्री रमेश कुमार जैन उर्फ सिरफिरा जी आपने इस लेख पर टिप्पणी करके लेखक को क्रतार्थ किया, इसके लिए आपका आभार!
धन्यवाद!
डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’
डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’ का पिछला आलेख है:–.अनर्गल बयानबाजी का कड़वा सच?