कंट्रेक्ट को निरस्त करने की न्यायालय की शक्ति
|पिछले आलेख में मैं ने कानून के साथ दिए तीन उदाहरण आप को बताए थे। स्वतंत्र सहमति के बिना अनुबंधों की शून्यकरणीयता के विषय पर दो और उदाहरण कानून में सम्मिलित हैं…
(क) ‘क’ की सम्पत्ति में स्थित एक मूल्यवान खनिज युक्त चट्टान का पता लगा कर ‘ख’ इस बात को छुपाते हुए कि उस चट्टान में कोई मूल्यवान खनिज है ‘क’ से उस चट्टान को कम कीमत पर खरीदने में सफल हो जाता है। चट्टान को खरीदने का कंट्रेक्ट ‘क’ के विकल्प पर शून्य घोषित किया जा सकता है।
(ख) ‘ख’ की मृत्यु हो जाने पर ‘क’ उस की संपत्ति को उत्तराधिकार में प्राप्त करने का अधिकारी है। ‘ख’ की मृत्यु हो जाती है। ‘ग’ उस की मृत्यु का समाचार ‘क’ तक नहीं पहुँचने देता और ‘क’ को इस प्रकार प्रेरित करता है कि वह ‘ख’ की सम्पत्ति में अपने हक को उसे विक्रय कर दे और अनुबंध करने में सफल हो जाता है। ऐसा कंट्रेक्ट ‘क’ के विकल्प पर शून्य घोषित किया जा सकता है।
हम कुछ असली मामलों पर आएं। एक साहूकार ने अपने कर्जदार की विधवा से एक प्रोनोट यह कह कर लिखवाया कि यह उस के पति के कर्जे के नवीनीकरण के लिए है। जब कि वह कर्ज अवधि बाधित हो चुका था अर्थात उस कर्जे को समय अधिक हो जाने से कानून के माध्यम से वसूल नहीं किया जा सकता था। यह मिथ्या तथ्य के आधार पर हासिल किया गया था इस कारण से न्यायालय ने इस प्रोनोट को रद्द कर दिया।
यदि इस मिथ्या समझ के आधार पर कि कोई व्यक्ति ग्रेजुएट है कोई नियोजक किसी व्यक्ति को नियोजन दे देता है या कोई व्यक्ति कपट पूर्वक अपनी योग्यता गलत बता कर नौकरी हासिल कर लेता है तो गलती या कपट के आधार पर उस के नियोजन के कंट्रेक्ट को निरस्त किया जा सकता है।
कोई व्यक्ति अपनी संपत्ति को बंधक रखने का कंट्रेक्ट करता है लेकिन यह बात छुपा लेता है कि उस की बंधक रखी गई संपत्ति पहले से बंधक है तो यह बंधक पूर्व बंधक का तथ्य छुपाने के आधार पर शून्य घोषित किया जा सकता है।
किसी मामले में अत्यधिक कम मूल्य का प्रतिफल, कपट और अनुचित प्रभाव के उपयोग से सहमति प्राप्त करने का अच्छा कारण होता है। इस आधार पर अक्सर ही न्यायालयों ने कंट्रेक्ट को शून्य घोषित किया है।
उक्त प्रकार के सभी मामलों में यह आम तौर पर कंट्रेक्ट को उस के होने की तिथि से ही शून्य मान कर न्यायालय राहत प्रदान करते हैं। लेकिन अनुचित-प्रभाव के मामलों में कुछ न्यायालयों को कानून ने अधिक शक्तियाँ प्रदान की हैं। (धारा 19)
अनुचित प्रभाव के उपयोग से किए गए कंट्रेक्ट को निरस्त करने की शक्ति….
जब एक व्यक्ति की सहमति अनुचित-प्रभाव से प्राप्त की गई हो तो कंट्रेक्ट उस व्यक्ति के विकल्प पर शून्यकरणीय होता है जिस की सहमति अनुचित-प्रभाव से प्राप्त की गई हो।
ऐसा कंट्रेक्ट पूरी तरह निरस्त किए जाने योग्य है, लेकिन कोई पक्ष ऐसे कंट्रेक्ट के अंतर्गत कोई लाभ प्राप्त कर चुका हो तो न्यायालय ऐसे मामले में अपनी ओर से कुछ नियम और शर्तें भी तय कर सकती है।
उदाहरण के तौर पर…..
(क) ‘क’ का पुत्र एक वायदा पत्र (प्रोमिसरी नोट) पर ‘ख’ के नाम की कूट रचना कर लेता है। ‘क’ के पुत्र के विरुद्ध फौजदारी मुकदमा चलाने की धमकी दे कर ‘ख’ क से एक बंध-पत्र लिखवा लेता है। बाद में इस बंध-पत्र के आधार पर ‘ख’ ‘क’ के विरुद्ध मुकदमा प्रस्तुत करता है तो न्यायालय ऐसे बंध-पत्र को निरस्त कर सकता है।
(ख) एक साहूकार ‘क’ किसान ‘ख’ को 1000 रुपए उधार देता है और अनुचित-प्रभाव का उपयोग कर 6 प्रतिशत प्रतिमाह ब्याज पर 2000 रुपए का बंध-पत्र लिखने को उत्प्रेरित करता है। न्यायालय ऐसे मामले में बंध-पत्र को निरस्त करते हुए उचित ब्याज दर सहित 1000 रुपए लौटाने का निर्णय दे सकता है। (धारा 19-क)
आप ने बहुत ही सरल तरीके से सब समझाया, धन्यावाद
नीरजजी की बात को थोडा आगे बढा रहा हूं । मेरे बेटे को टीसीएस ने केम्पस के जरिए चुना था । नियुक्ति पत्र में वही शर्त थी जो नीरजजी ने बताई है । उसमें मेरे बेटे से 50 हजार रूपयों की बैंक गारण्टी फिर पिता का जमानतनामा मांगा गया था । मुझे भी अटपटा लगा था लेकिन मैं ने जमातनामा भरा ।
upyogi jaankari…
नीरज जी का सवाल उपयोगी है… पर मेरे हिसाब से तो कुछ नहीं किया जा सकता क्योंकि ये दोनों पक्षों की सहमती से होता है… कांट्रेक्ट पर हस्ताक्षर करते वक्त कंपनी कोई दवाब नहीं डालती ना ही मिथ्या निरूपण होता है… छात्र स्वतंत्र होते हैं कांट्रेक्ट पर साइन करने या न करने को.
आभार इतनी सहजता से यह जटील विधान समझाने का. यह आप ही कर सकते हैं. पुनः आभार.
आभार इतनी सहजता से यह जटील विधान समझाने का. यह आप ही कर सकते हैं. पुनः आभार.
अगर इन प्रावधानों का सटीक प्रयोग हो तो मजा आ जाये।
अदालतें इसमें नीर-क्षीर-विवेक करती हैं?
दिनेश जी,
कांट्रेक्ट के सम्बन्ध में मेरा निम्न प्रश्न है |
इंजीनियरिंग कालेजों में कैम्पस सेलेक्शन के समय अधिकतर सभी कंपनियां अनुबंध करती हैं कि १ अथवा २ साल तक हमारे साथ काम करना पडेगा और अगर नौकरी छोडी तो ५०००० से १ लाख तक की रकम भरनी होगी | क्या ये एक उचित अनुबंध है क्योंकि ये सब बातें इंटरव्यू के बाद नियुक्ति पत्र के साथ बतायी जाती हैं | क्या इस प्रकार के मामलों में इसे न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है ?