कंट्रेक्ट में 'मिथ्या-निरूपण' (misrepresentation)
|‘मिथ्या-निरूपण‘ (misrepresentation)
कंट्रेक्ट का मूल कानून अंग्रेजी में है और वहाँ शब्द है ‘मिसरिप्रेजेन्टेशन’। इस शब्द का कोई हिन्दी, उर्दू या हिन्दुस्तानी पर्याय उपलब्ध नहीं है, इस कारण इसे हम मिथ्या-निरूपण ही कहेंगे। किसी पाठक को किसी भी भारतीय भाषा में कोई समानार्थक शब्द मिले तो बताए। उसे हिन्दी में अपनाना आसान रहेगा।
बहरहाल हम कंट्रेक्ट कानून में मिथ्या-निरूपण की परिभाषा की ओर चलें…..
‘मिथ्या-निरूपण‘ (misrepresentation) :– मिथ्या-निरूपण का जो अर्थ है और जो कुछ उस में शामिल है वह निम्न है….
(1) निश्चयात्मक रूप से कथित कोई ऐसी बात, जो वास्तव में सत्य नहीं है, कहने वाले ने कथन की सत्यता की जानकारी या जाँच नहीं की हो, हालाँकि बात को कहने वाला उस के सत्य होने पर विश्वास करता हो;
(2) धोखा देने के इरादे के बिना भी किसी कर्तव्य का पालन नहीं करे, जिस से अपालन करने वाले, या अपालनकर्ता से उत्पन्न अधिकार के अन्तर्गत दावा करने वाले किसी व्यक्ति को लाभ प्राप्त हो रहा हो, या किसी अन्य पक्ष को, या अन्य पक्ष से उत्पन्न अधिकार के अंतर्गत दावा करने वाले किसी व्यक्ति को हानि प्राप्त हो रही हो।
(3) करार की विषय वस्तु के संबन्ध में चाहे वह कितने ही निर्दोष और सरल भाव से क्यों न हुई हो करार के किसी पक्षकार से कोई गलती कराना।
आप ने इस परिभाषा को पढ़ा। आप ने स्वयं यह पाया होगा कि किसी पक्षकार का इरादा न होते हुए भी, ऐसी किसी गलती के कारण, जिस से से खुद लाभ हो रहा हो, या किसी अन्य पक्ष को हानि हो रही हो, करार अवैध ठहराया जा सकता है। हम पहले कपट को जान चुके हैं, जिस में कोई असत्य कथन जानबूझ कर किया जाता है। यहाँ मिथ्या-निरूपण में असत्य कथन उस की सत्यता जाने बिना निश्चयात्मक रूप से करना सम्मिलित है, जो कि वादा करने वाले अन्य पक्षकार को प्रभावित करता है, कपट और मिथ्या निरूपण में यही मूल अंतर है। यहाँ किसी कथन को मिथ्या मानने के लिए यह जरूरी है कि कथन तात्विक हो और वह तथ्यात्मक रूप से असत्य पाया जाए।
कपट और मिथ्या-निरूपण दोनों ही मामले यदि सिद्ध कर दिए जाएँ तो न्यायालय समूचा कंट्रेक्ट ही शून्य घोषित कर सकता है।
एक पेट्रोल कंपनी स्वयं को विशेषज्ञ बताते हुए यह प्रदर्शित कर के कि किसी स्थान विशेष पर पेट्रोल की खपत कम से कम एक स्तर तक रहेगी, एक व्यक्ति के साथ डीलरशिप कंट्रेक्ट करती है। लेकिन वहाँ पेट्रोल की बिक्री कम रहती है। ऐसी अवस्था में कंट्रेक्ट तो शून्य माना ही जाएगा साथ ही कंपनी को हर्जाना भी देना होगा।
एक एजेण्ट किसी अन्य से यह सुन कर कि कोई विशिष्ठ व्यक्ति कंपनी का निदेशक बनने वाला है किसी अन्य व्यक्ति को निश्चयात्मक रूप से यही तथ्य बता कर उस कंपनी का शेयर विक्रय कर देता है। तो वह मिथ्या-निरूपण करता है।
यदि किसी व्यक्ति से बीमा प्रस्ताव में पूछा जाता है कि क्या उस ने पहले भी इसी कंपनी से कोई बीमा ले रखा है? और वह कोई काल्पनिक बीमा पॉलिसी नम्बर देते हुए कहता है कि वह पुराना व्यवहारी है। बीमा कंपनी इस मिथ्या तथ्य के आधार पर पॉलिसी को मिथ्या-निरूपण के आधार पर निरस्त मान सकती है।
एक कंट्रेक्ट की सभी शर्तों पर मौखिक सहमति के उपरांत एक पक्षकार द्वारा तैयार करारनामा दूसरा पक्षकार इस गलत विश्वास के आधार पर हस्ताक्षर कर देता है कि उस में सभी तयशुदा शर्तें सम्मिलित हैं। लेकिन वास्तव में सभी तयशुदा शर्तें उस करारनामे में सम्मिलित नहीं होती हैं। बाद में यह बात पता लगने पर दूसरा पक्षकार करारनामे को निरस्त कर सकता है क्यों कि उस का आधार मिथ्या-निरूपण था।
अगले आलेख में हम स्वतंत्र सहमति के बिना किए गए अनुबंधों की शून्यकरणीयता पर बात करेंगे।
मुझे इस
बीच बाहर जाना पड़ा जिस से मेरे प्रोफेशनल काम का अतिरिक्त भार मुझ पर आ गया। इस कारण से “तीसरा खंबा” और “अनवरत” दोनों की निरन्तरता प्रभावित हुई। पाठक इस व्यवधान के लिए क्षमा करेंगे। ….. दिनेशराय द्विवेदी
बहुत अच्छी जानकारी….आभार.
साइडबार में लिंक बहुत काम की हैं…अभी नजर गई
आजकल बिजली की समस्या और अन्य कारणों से मेरा भी ब्लॉगजगत पर आना बहुत कम है…
दिनेश जी बहुत ही उपयोगी जान कारी आप ने दि हे, धन्यवाद
फायदेमंद जानकारी है,आभार
दिनेश जी ! आप अत्यंत ज्ञानवर्धक और उपयोगी जानकारी दे रहे हैं . आपसे एक अनुरोध है : जब एक विषय की सभी कड़ियां पूरी हो जाएं तो आप उसे ई-पुस्तिका के रूप में ब्लॉग पर दे दें . तब ज़रूरत पड़ने पर पाठक उसका लाभ सहज ही उठा पाएंगे .
आभार. आभार. आभार.
इसके अलावा कोई शब्द ही नहीं है.
हाँ जानकारी देना जारी रहे.
बहुत आसन भाषा में इस बार अपने जानकारी दी है,बड़ी की फायदेमंद जानकारी है, बस ज़रा धयान से पढने की ज़रूरत है…thanks
अच्छा है। शब्द ज्ञान बढ़ा। लेकिन मिथ्या-निरूपण किस दर्जे की चूक या अपराध है?
बहुत आभार इस सरल जानकारी के लिए.
अगर कोई मौखिक रूप से शेयर खरीदने की सलाह देता है जिसमें कोई लिखित प्रमाण नहीं है तो क्या यह मिथ्या निरूपण होगा? पेट्रोल पम्प वाले मामले में तो लिखित प्रमाण हो सकता है पर शेयर वाले मामले में मौखिक होने पर तो आदमी साफ़-साफ़ बच निकल सकता है ! (पता नहीं क्यों मेरे दिमाग में बचने की तरकीबें ही क्यों आती है)