क्या दीवानी वाद के चलते धारा 145-146 दं.प्र.सं. के अंतर्गत कार्यवाही चल सकती है।
|रमेश चंद्र पूछते हैं—
सर!
मेरा एक मुकदमा एसडीएम कोर्ट में धारा 145 दं.प्र.सं. के अंतर्गत चल रहा है जिस में धारा 146 के अंतर्गत मकान कुर्क कर लिया गया है। लेकिन विपक्षी के अधिवक्ता का कथन है कि उसी संपत्ति का एक दीवानी मुकदमा विचाराधीन है इस लिए इस कार्यवाही को समाप्त कर दिया जाना चाहिए और विपक्षी को संपत्ति का कब्जा दिया जाए। एसडीएम भी कहते हैं कि दीवानी मुकदमे के चलते धारा 145 – 146 दं.प्र.सं.नहीं चल सकती। क्या यह संभव है कि दीवानी मुकदमे के साथ धारा 145 – 146 दं.प्र.सं. के अंतर्गत चल सकती है? यदि चल सकती है तो प्रावधान बताएँ।
उत्तर
रमेश चंद्र जी,
आप ने अपने मुकदमे के तथ्यों का वर्णन नहीं किया है। मसलन संपत्ति पर स्वामित्व किस का है? 145 की कार्यवाही आरंभ होने के समय या दो माह पहले तक संपत्ति पर किस का कब्जा था? दीवानी मुकदमा किस ने, क्यों और कब किया? 145 की कार्यवाही किस के आवेदन पर आरंभ हुई या शांति भंग होने की आशंका से पुलिस ने आरंभ की? आदि आदि…….. इन तथ्यों के अभाव में यह तो असंभव है कि आप के मामले में कोई विशिष्ट राय दी जा सके। लेकिन यहाँ यह प्रयास किया जा रहा है कि आप को धारा 145,146 दं.प्र.सं. पर दीवानी वाद का प्रभाव बताया जा सके, जिस से अन्य पाठकों को भी इन प्रावधानों की जानकारी प्राप्त हो सके।
धारा 145 और 146 दं.प्र.सं. किसी भूमि या जल या उस की सीमाओं के विवाद के संबंध में है। यदि ऐसा कोई विवाद विद्यमान हो और उस से परिशांति भंग होने की संभावना हो तो कार्यपालक मजिस्ट्रेट उस संबंध में पक्षकारों को बुला कर उन्हें विवाद की विषय वस्तु पर वास्तविक कब्जे के तथ्य के बारे में अपने अपने दावे पेश करने का आदेश दे सकता है। यहाँ भूमि व जल से भवन, बाजार, मत्स्य क्षेत्र, फसलें, भूमि की अन्य उपज और ऐसी किसी संपत्ति का किराया और लाभ भी सम्मिलित हैं। दोनों पक्षों को उन के दावों पर साक्ष्य प्रस्तुत करने और सुनवाई करने के उपरांत संभव होने पर मजिस्ट्रेट यह विनिश्चित करेगा कि विवाद की विषय वस्तु पर दावा पेश करने के लिए दिए गए आदेश की तारीख पर किस पक्षकार का कब्जा था। यदि मजिस्ट्रेट को लगता है कि आदेश जारी करने की तिथि और उस से दो माह पूर्व की तिथि के मध्य किसी पक्षकार को विवाद की विषय वस्तु से सदोष रूप से बेकब्जा किया गया है तो वह यह मान सकेगा कि आदेश की तिथि को बेकब्जा किया गया पक्ष का विवाद की विषय वस्तु पर कब्जा था।
यदि मजिस्ट्रेट को यह प्रतीत होता है कि उस के आदेश जारी करने की तारीख को कोई विवाद विद्यमान नहीं था तो वह अपने आदेश को रद्द कर देगा और आगे की कार्यवाहियाँ रोक देगा। यदि उसे लगता है कि विवाद विद्यमान है तो उस के आदेश जारी करने की तिथि को कब्जेदार के पक्ष में आदेश देगा कि जब तक उस को विधिपूर्वक बेदखल नहीं कर दिया जाए तब तक उस के कब्जे मे बाधा उत्पन्न नहीं की जाए। यदि वह यह मानता है कि आदेश के दो माह पूर्व की अवधि में किसी पक्षकार को बेकब्जा किया गया है तो उसे कब्जा सोंप देने और उस के पक्ष में उपरोक्त प्रकार का आदेश पारित करेगा। यदि विवाद की विषय वस्तु कोई फसल या कोई क्षयशील वस्तु है तो उसे किसी की अभिरक्षा में सोंप सकता है या उसे विक्रय कर आ
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5 Comments
सर जी… पुलिस ने हमारी wipachhi paarti ने पुलिस से मिलकर पहले तो११६/११७ के antargat karywaahi कर दी …bhumi पर १५ साल से hmara kabja ह kyonki jamin हमने खरीदी थी ..हमारा राजस्वा अभिलेखों में भ naam darj ह.पुलिस की गलत रिपोर्ट पर sdm ने dhara145 का आदेश जारी करदिया…फिर हमारी तरफ से apeel पर sdm ने पुलिस से आख्या मांगी ..जिसमे हमारा ही कब्जा और हमें ही फसल काटने का adhikaar बताया …फिर sdm ने हमारी बिपछि पार्टी के apeel पर १४६कि कार्यवाही chalu कर दी..जिसमे hamari apeel पर धरा १४६ की कार्यवाही ख़ारिज कर दी. अब हमें धरा 145 खत्म करवानी ह .कपयअ मार्ग बत्यें
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