गलती स्वीकार कर के पत्नी को मना कर घर ले आइए
| महेश ने पूछा है –
पत्नी अपनी माँ के यहाँ जून की छुट्टी में राजी-खुशी से गई थी। अब जीवन भर के लिए रुक गई है। 7 वर्ष का पुत्र और चार वर्ष की बेटी उस के पास हैं। बेटा दूसरी क्लास में केन्द्रीय विद्यालय में पढ़ता है। एक महिने बाद लेने गया तो आने से मना कर दिया और मेरी जम कर बेइज्जती की। मैं 28.06.2011 को उन के यहाँ चचेरे भाई की मृत्यु पर वित्तीय असुविधा के काण नहीं पहुँच सका। लेकिन 04.07.2011 को पहुँच गया था। न तो फोन करती है और न ही फोन पर कोई उत्तर देती है। आप बताएँ कि मैं क्या करूँ? बेटे की पढ़ाई का नुकसान और उन की जिन्दगी बरबाद हो जाएगी।
उत्तर –
महेश जी,
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आप अपनी पत्नी को लेने के लिए गए तब आप को बहुत बेइज्जत किए जाने का आपने उल्लेख किया है। लेकिन यह सब आप और आप की पत्नी के बीच हुआ है। अधिक से अधिक आप की पत्नी के परिवार के लोग वहाँ रहे हों। यह पारिवारिक घटना मात्र है। इस में बेइज्जती महसूस करने वाली कोई बात नहीं है। आप की पत्नी ने या फिर उस के परिवार वालों ने उक्त कारण से या किसी और कारण से आप को भला-बुरा कहा और आप उसे अपनी बेइज्जती समझ रहे हैं, यह ठीक नहीं है। ऐसा तो पारिवारिक रिश्तों में होता रहता है। आप ने अपनी बेइज्जती महसूस कर ली। लेकिन शायद सामाजिक रूप से आप की पत्नी को जो बेइज्जती सहन करनी पड़ी ( जो केवल आप की पत्नी की ही नहीं आप की भी थी) उसे आप महसूस नहीं कर पाए। मुझे तो लगता है कि आप के बीच विवाद का यही कारण है।
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8 Comments
सामाजिक(पारिवारिक ) समस्याओं का निराकरण क़ानून के द्वारा बहुत मुश्किल होता है | इसके लिए तो मध्यस्थो के माध्यम से सुलझाना ही उचित रहता है |
बहुत ही अच्छी और सटीक सलाह दी है सर । यदि ऐसी सलाह समय पर सबको मिले तो यकीनन मुकदमों की बढती भीड थोडी तो कम होगी ही
bilkul sahi salah di hai aapne….sambandhon me mein ka koi kam nahi hota…yaha sirf ek rah sakta hai HAM
क़ानूनी के साथ ही आप की सामाजिक सलाह भी काफी अच्छी होती है उचित सलाह दी आप ने |
सही राय..
गुरुवर जी, आपकी सलाह बहुत ही बहुत ज्यादा अच्छी है. हर सामाजिक व्यक्ति को अपनी कुछ जिम्मेदारियों से मुहँ नहीं मोडना चाहिए. लेकिन आज आपके लेख का अंतिम पैराग्राफ अपने अनुभवों के आधार पर मुझे आहत कर गया. जैसे-शहर दर शहर भाषा और पानी का स्वाद बदल जाता है.ठीक उसी प्रकार हर व्यक्ति के अपने-अपने अनुभव होते हैं.
मैं भी अपनी पत्नी की हर गलती पर यह जानते हुए भी उसकी गलती है. स्वयं झुककर बिना गलती के भी अपने ही दो कदम पीछे कर लेता था. मेरा विचार था कि-प्यार से तो शैतान को भी बदला जा सकता है.मगर अफ़सोस!अगर आप मेरी सारी बातें सुन लें न तो आपको यह पता चल सकता है कि-आज मैं दो-दो कदम पीछे करते-करते 2000 कदम पीछे हो गया हूँ. ईमानदारी से 17 साल की पत्रकारिता का अंत होने में सिर्फ 8 महीने का समय रह गया है. अगर इन 8 महीने में अपने समाचार पत्रों और पत्रिकाओं को शुरू नहीं कर पाया तो भारत सरकार के आर.एन.आई के नियमों अनुसार उनका पंजीकरण समाप्त हो जायेगा.
महेश के बहाने हमें भी जिन्दगी में याद रखने लायक बढिया सलाह मिल गई जी
आभार
आपने बिलकुल सही राय दी है दिनेश जी। अच्छा लगा समस्या का सही हल पढ़ कर आज जीवन में सही राय देने वाले बहुत कम हैं।