गिरफ्तारी का भय त्याग कर अपने मामले को निर्भीकता के साथ न्यायालय के समक्ष रखें
| संतोष सोनकर ने पूछा है –
जबलपुर निवासी मेरे मित्र का विवाह कानपुर में 5 मई 2006 को हुआ लेकिन पत्नी कुछ दिन बाद ही मायके चली गई और नहीं लौटी। उस ने अपनी पत्नी के विरुद्ध तलाक का मुकदमा किया जिस का पंजीकृत नोटिस पत्नी ने 27.07.2009 को लेने से मना कर दिया। जिस के कारण तलाक की एक तरफा डिक्री पारित कर दी गई। पत्नी ने दिनांक 02.08.2009 को कानपुर में धारा 498ए का मेरे मित्र और परिवार के अन्य 12 लोगों के विरुद्ध मुकदमा दर्ज कराया जो अभी लंबित है। कानपुर के दरोगा ने एक व्यक्ति को मुकदमे से बाहर रखने के लिए 6 हजार रुपए की मांग की उस में भी वह केवल 9 लोगों को ही मुकदमे से बाहर करने को तैयार था। उसे राशि नहीं मिलने से उस ने सभी 13 लोगों के विरुद्ध आरोप पत्र प्रस्तुत कर दिया। आरोप पत्र के विरुद्ध उच्च न्यायालय में पुनर्रीक्षण याचिका प्रस्तुत करने पर इस शर्त के साथ स्थगन मिला है कि मध्यस्थता एवं समझौता केन्द्र पर 10000 रुपए जमा करा देने पर दोनों के बीच समझौते का प्रयत्न किया जाए। रुपया जमा कराने पर 18.02.2011 को समझौता केन्द्र पर बैठक हुई। अब मित्र की पत्नी 20 लाख रुपए की मांग कर रही है और मध्यस्थता कराने वाला अधिकारी मेरे मित्र को डरा रहा है। मित्र दो लाख रुपए तक की राशि देने को तैयार है। मध्यस्थता अधिकारी ने एक तारीख और दी है और कहा है कि कि राशि देने पर विचार किया जाएगा। मित्र बहुत डरा हुआ है कि समझौता न होने पर क्या सभी के विरुद्ध मुकदमा चलेगा? वह बहुत तनाव में है। मित्र एक जिम में कोच का काम करता है उस की आय 3000 रुपया प्रतिमाह ही है। कृपया उचित सलाह दें।
उत्तर –
सोनकर जी,
आप पहले भी अपने इन्हीं मित्र के संबंध में प्रश्न पूछ चुके हैं जिस का उत्तर दिया जा चुका है। आप को या किसी भी अन्य प्रश्नकर्ता को अपनी समस्या एक बार में ही संपूर्ण रूप से प्रस्तुत करनी चाहिए। जिस से उस का सटीक समाधान प्रस्तुत किया जा सके और समय व स्थान का दुरुपयोग भी न हो।
आप के मित्र तलाक की डिक्री प्राप्त कर चुके हैं, अपील का समय निकल जाने के कारण वह अंतिम भी हो चुकी है। आप का मित्र उच्चन्यायालय के समक्ष उस का उल्लेख भी कर चुका होगा। जिस से उस की पत्नी को भी जानकारी हो गई होगी कि तलाक की डिक्री पारित हो चुकी है। यदि अभी तक इस डिक्री को अपास्त कराने के लिए कोई आवेदन प्रस्तुत नहीं हुआ है तो वह अंतिम हो चुकी होगी। इस तरह आप के मित्र का पहला विवाह समाप्त हो चुका है।
धारा 498ए के प्रकरण के साथ ही स्त्री-धन के लिए 406 भा.दं.संहिता का आरोप भी आप के मित्र पर लगाया होगा। आप के मित्र की पत्नी ने निश्चित रूप से यह मिथ्या तथ्य अपनी शिकायत में अंकित किया होगा कि आप का मित्र अन्य लोगों के साथ कानपुर गया और वहाँ उस के साथ कोई ऐसी घटना कारित की जिस से धारा 498ए का मामला बना है। पुलिस ने उस मामले में आरोप पत्र प्रस्तुत कर दिया है। यदि उच्च न्यायालय कुछ लोगों के विरुद्ध मामला वापस लेने का आदेश पारित नहीं करता है तो सभी आरोपित व्यक्तियों के विरुद्ध मुकदमा कानपुर की अदालत में चलेगा।
आप के मित्र को चाहिए कि जो भी स्त्री-धन उस के पास हो वह मध्यस्थता की अगली तिथि पर बिना शर्त के लौटा दें। इस के उपरांत केवल स्थाई भरण-पोषण की बात ही शेष रह जाएगी, उस के लिए जितनी राशि वह देने को तैयार है उतना देने का प्रस्ताव मध्यस्थता केंद्र के समक्ष कर दे। स्त्री-धन अदा करने और स्थाई भरण-पोषण के प्रस्ताव की बात मध्यस्थता केंद्र पर अंकित की गई आदेशिका में दर्ज होनी चाहिए। आप का मित्र उस की प्रमाणित प्रति मध्यस्थता केंद्र से प्राप्त कर सकता है। आप के मित्र का मामला अभी उच्च न्यायालय से समाप्त नहीं हुआ है। यदि आप के मित्र की क्षमता के अंदर समझौता संपन्न हो जाता है तो मामला यहीं समाप्त हो जाएगा, अन्यथा आप का मित्र इन सारे तथ्यों को प्रस्तुत करते हुए उच्च न्यायालय के समक्ष पुन: अपनी बात रख सकता है। उसे न्यायालय पर भरोसा करते हुए अपने वकील की सलाह से काम करना चाहिए। यदि वह समझता है कि उच्च न्यायालय में उस के मामले को ठीक से नहीं रखा गया है तो वह वहाँ वकील बदल कर किसी अच्छे सक्षम वकील की सेवाएँ प्राप्त कर सकता है। आप के मित्र को डरना नहीं चाहिए। भय के कारण कोई अनुचित प्रस्ताव स्वीकार भी नहीं करना चाहिए। अपने मामले को न्यायालय के समक्ष निर्भीकता के साथ रखना चाहिए और भरोसा करना चाहिए कि अदालत उस के साथ न्याय करेगा। उच्च न्यायालय का निर्णय यदि उचित नहीं लगता है उसे भी चुनौती देते हुए राहत के लिए आगे के न्यायालय जाया जा सकता है।
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3 Comments
बहुत अच्छी सलाह दी,धन्यवाद
में आपकी बात से सहमत हु ! हवे अ गुड डे
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बिलकुल सही परामर्श है। धन्यवाद।