गोद लेने की योग्यताएँ, प्रक्रिया और शर्तें
कल का संध्या-कालीन आलेख अज्ञात माता-पिता की संतान को गोद देने की प्रक्रिया अपने शीर्षक के अनुसार केवल इसी उद्देश्य को ले कर लिखा गया था। उस के पीछे लवली कुमारी जी का प्रश्न भी था। गोद लेने के सभी कायदे-कानूनों का उल्लेख वहाँ नहीं था। फिर भी रचना सिंह जी, का कथन उचित है कि गोद लेने के कायदे-कानूनों की जानकारी दिए जाने से उस आलेख की उपयोगिता बढ़ जाएगी। इस आलेख को पिछले आलेख का पूरक मान लिया जाए।
- कोई भी व्यक्ति गोद लेने के लिए योग्य होना चाहिए तथा उसे गोद लेने का अधिकार होना चाहिए।
- गोद देने वाले व्यक्ति को भी गोद देने के योग्य होना चाहिए।
- गोद दिए और लिए जाने वाले व्यक्ति को भी गोद जाने के योग्य होना चाहिए। और
- गोद देने लेने का कार्य कानून के अंतर्गत संपन्न होना चाहिए।
उसे स्वस्थ चित्त होना चाहिए जो वयस्क हो, यदि उस की पत्नी जीवित है तो उस की पत्नी की स्वीकृति होना चाहिए जब तक कि उस ने पूर्ण संन्यास न ले लिया हो या हिन्दू होने से वंचित नहीं हो गई हो, या किसी अदालत ने उसे विकृत चित्त घोषित नहीं कर दिया हो। यदि गोद लेने के समय किसी व्यक्ति के एक से अधिक पत्नियाँ हों तो उस की सभी पत्नियों की सहमति आवश्यक है जब तक कि उन में से कोई उपरोक्त प्रकार से अयोग्य न हो गई हो।
वह स्वस्थ चित्त हो, वयस्क हो जो अविवाहित हो, या विवाह हो गया हो तो वह समाप्त हो चुका हो, जो विधवा हो, या उस का पति पूर्णतः सन्यासी हो गया हो या उस के पति को सक्षम न्यायालय ने विकृत चित्त घोषित कर दिया हो।
- बालक/बालिका के पिता, या माता, या संरक्षक के अतिरिक्त किसी भी अन्य व्यक्ति को गोद देने का अधिकार नहीं है।
- केवल पिता को ही गोद देने का अधिकार है लेकिन उस की पत्नी जीवित हो तो उसे यह अधिकार केवल उस की सहमति से ही है जब तक कि उस ने पूर्ण संन्यास न ले लिया हो या हिन्दू होने से वंचित नहीं हो गई हो, या किसी अदालत ने उसे विकृत चित्त घोषित नहीं कर दिया हो।
- बालक/बालिका की माता को गोद देने का अधिकार तभी है जब कि वह स्वस्थ चित्त हो, वयस्क हो जो अविवाहित हो, या विवाह हो गया हो तो वह समाप्त हो चुका हो, जो विधवा हो, या उस का पति पूर्णतः सन्यासी हो गया हो या उस के पति को सक्षम न्यायालय ने विकृत चित्त घोषित कर दिया हो।
- जब माता-पिता दोनों की मृत्यु हो गई हो या दोनों पूर्णतः सन्यासी हो गए हों या उन को सक्षम न्यायालय ने विकृत चित्त घोषित कर दिया हो या जहाँ बालक/बालिका के माता-पिता का ज्ञान न हो वहाँ संरक्षक न्यायालय की पूर्व स्वीकृति से गोद दे सकता है।
- न्यायालय गोद देने की स्वीकृति देने के पहले यह संतुष्टि करेगा कि गोद देना बालक/बालिका के कल्याण के लिए है और बालक/बालिका की आयु के हिसाब से उन की इच्छा को भी देखेगा तथा इस बात की भी संतुष्टि करेगा कि गोद देने की अनुमति चाहने वाले व्यक्ति ने कोई धन अथवा उपहार तो नहीं लिया है अलावा उस के जो न्यायालय अनुमत कर दे।
- यहाँ पिता और माता का अर्थ गोद लेने वाले माता-पिता नहीं होगा। यहाँ संरक्षक का अर्थ बालक/बालिका की वसीयत द्वारा नियुक्त संरक्षक या न्यायालय द्वारा नियुक्त या घोषित संरक्षक है। न्यायालय का अर्थ दीवानी या जिला न्यायालय है
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क्या सम्भव है
I’d have to consent with you on this. Which is not something I typically do! I love reading a post that will make people think. Also, thanks for allowing me to comment!
बहुत ही अच्छी जानकारी.
धन्यवाद
आपने यह पोस्ट तो मानो मेरे एक मित्र के लिए ही लिखी है ।
इसका प्रिन्टर आउट कल ही उन्हें प्रस्तुत करूंगा ।
अनजाने में ही आपने बडी सहायत कर दी ।
धन्यवाद ।
ये बड़े काम की जानकारी रही !
आपने बहुत ही उपयोगी जानकारी दी है । परन्तु कानून का यह नियम की एक ही लिंग के दो बच्चे गोद नहीं लिए जा सकते या यदि पहले से उस लिंग का बच्चा है तो एक और नहीं लिया जा सकता बहुत गलत व अटपटा लगा । इसमें बदलाव की आवश्यकता है ।
घुघूती बासूती
thanks
इस ज्ञान वर्धक पूरक लेख के लिए आभार.
http://mallar.wordpress.com
” itna jyada nahee ptta tha, itne detal mey pdhna accha lgaa or useful bhee hai..”
regards
बहुत बढ़िया और उपयोगी जानकारी ! शुभकामनाएं !
sach bahut achhi jankari rahi
पूरक पोस्ट बडे काम की लिखी है और गोद लेनेके असर पर भी लिखियेगा
– लावण्या