चिकित्सकों की अपराधिक लापरवाही के लिए दुराशय का साबित किया जाना आवश्यक
|हम ने अब तक चिकित्सकीय लापरवाही के अपराधिक दायित्व पर बात की। किसी भी कृत्य और अकृत्य के अपराधिक होने के लिए यह आवश्यक है कि उस कृत्य के कर्ता या अकर्ता का आशय क्या था? यदि उस का आशय अपने रोगी के साथ सद्भावना पूर्ण था तो किसी भी चिकित्सक का कोई भी कृत्य अपराध की श्रेणी में नहीं आ सकता। यदि चिकित्सक का आशय दुर्भावनापूर्ण था या उस ने किसी अन्य आशय से ( जैसे स्वयं अतिरिक्त लाभ प्राप्त करने या किसी अन्य को लाभ पहुँचाने का उद्देश्य) यह किया है तो वह अपराध अवश्य होगा लेकिन इस दुराशय को साबित करने का दायित्व अभियोजक या शिकायतकर्ता पर ही होगा। यही वह बिंदु है जहाँ पुलिस या शिकायत कर्ता पीछे हट जाते हैं और देश के कानून को गलत कहना आरंभ कर देते हैं। लेकिन किसी को अपराधी साबित करने के लिए इतना तो करना पड़ेगा आखिर आप उसे सजा जो दिलवाने चले हैं। फिर भी कुछ मामलों में कानून में ऐसा परिवर्तन किया जा सकता है कि यदि कोई चिकित्सक कुछ विशेष कर्तव्यों को न निभाए तो दुराशय न होने का दायित्व स्वयं चिकित्सक पर हो। लेकिन ऐसा करने के पहले बहुत विचारविमर्श और इस पर चिकित्सक बिरादरी की सहमति होना भी आवश्यक है। किन मामलों में चिकित्सक के अकृत्य को अपराधिक माना जाए यह तथ्य दुष्कृत्य विधि के दीवानी मामलों और उपभोक्ता विधि के अदालतों के सामने आ रहे मामलों के अध्ययन से सुनिश्चित किया जा सकता है।
आगे कुछ आलेखों में दुष्कृत्य विधि और उपभोक्ता विधि के कुछ मामलों को आप के सामने रखा जाएगा जिस से यह स्पष्ट हो सके कि किन मामलों में एक रोगी या उस के अभिभावक दीवानी अदालतों और उपभोक्ता अदालतॉ में जा सकते हैं।
अच्छी जानकारी है । क्यों कि यह एक पेचीदा मसला है जिसे सतही तौर पर देख कर निर्णय नही किया जा सकता है
अच्छी जानकारी.
अच्छी जानकारी के लिये धन्यवाद्
उपयोगी जानकारी.. इन्तजार रहेगा आगे का..
आपने बिलकुल सही कहा दुराशय न होना सिद्ध करने का दायित्व स्वयं चिकित्सक पर भी होना चाहिए । और सजा दिलवाना ही सिर्फ अभियोजक या शिकायतकर्ता का मकसद न होकर न्याय होना चाहिए और सत्य का सामने आना बहुत ज़रूरी होता है , ताकी दोनों पक्ष आगे से पुराने सन्दर्भों कि सहयता ले सकें और न्याय आसान और सरल हो .
आपकी इस श्रंखला को पढ़कर ज्ञानवर्धन हुआ .आगे पढने के लिए उत्साहित हूँ
धन्यवाद,
मयूर
Bahut kathin hai dagar ‘law-jagat’ki.
ASLE SHAHEED, SHAAHIDO MASHhood EK HAI,
HAIRAT HAI PHIR MUSHAHIDA HAI KIS HISAB MEIN.
M.H.
‘कुछ मामलों में कानून में ऐसा परिवर्तन किया जा सकता है कि यदि कोई चिकित्सक कुछ विशेष कर्तव्यों को न निभाए तो दुराशय न होने का दायित्व स्वयं चिकित्सक पर हो। लेकिन ऐसा करने के पहले बहुत विचारविमर्श और इस पर चिकित्सक बिरादरी की सहमति होना भी आवश्यक है।’
– ‘विचारविमर्श’ तो ठीक है लेकिन ‘सहमति’ समझ से परे है, फिर तो हर कानून बनाने के लिए अपराधी बिरादरी की भी सहमति लेना होगी.