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चैक बाउंस के मामले में परिवाद प्रस्तुत करने में हुई देरी को न्यायालय क्षमा कर के प्रसंज्ञान ले सकता है

समस्या-

मेरे विरुद्ध धारा 138 परक्राम्य विलेख अधिनियम (N.I.Act) एक्ट का एक मुकदमा  चल रहा है उसमे मुझे चेक बाउंस होने का जो नोटिस दिया गया था वह नोटिस मुझे प्राप्त होने के ३० दिन बीत जाने के बाद मेरे ऊपर मुकदमा किया गया है। यह मुकदमा मुझे नोटिस प्राप्त होने की तिथि से ४५ दिन के बाद न्यायालय में प्रस्तुत किया गया है।  क्या यह मुकदमा चलने योग्य है?

-मे.सलोनी ट्रेडर्स, फैजाबाद, उत्तर प्रदेश

समाधान-

ह सही है कि परक्राम्य विलेख अधिनियम की धारा 142 (ख) में यह उल्लेख है कि धारा 138 के अंतर्गत प्रस्तुत किया जाने वाला परिवाद वाद कारण उत्पन्न होने की तिथि से 30 दिनों की अवधि के भीतर प्रस्तुत किया जाना चाहिए। यदि इस अवधि के भीतर परिवाद प्रस्तुत नहीं किया जाए तो हो सकता है कि न्यायालय उस परिवाद पर संज्ञान न ले और परिवाद को आरंभिक स्तर पर ही निरस्त कर दे।

लेकिन अधिनियम की धारा 142 (ख) के परन्तुक में न्यायालय को यह शक्ति भी प्रदान की गई है कि यदि परिवादी परिवाद को उक्त अवधि में प्रस्तुत न करने का कोई उचित कारण न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करे तो वह ऐसे परिवाद पर संज्ञान ले कर अभियुक्त के विरुद्ध समन जारी कर सकता है।

स तरह परिवाद प्रस्तुत करने में हुई देरी को न्यायालय द्वारा क्षमा किया जा सकता है और न्यायालय परिवाद पर प्रसंज्ञान ले सकता है। जब तक प्रसंज्ञान नहीं लिया जाता अभियुक्त न्यायालय में नहीं होता। इस तरह देरी क्षमा किए जाने का मामला केवल परिवादी और न्यायालय के बीच का ही है उस में अभियुक्त की कोई भूमिका नहीं है। लेकिन यदि परिवादी ने अपने परिवाद में देरी का कोई उचित कारण प्रदर्शित नहीं किया हो या देरी क्षमा करने के लिए कोई आवेदन प्रस्तुत नहीं किया हो और न्यायालय ने भी देरी पर कोई ध्यान नहीं देते हुए परिवाद पर प्रसंज्ञान ले लिया हो तो अभियुक्त प्रसंज्ञान लेने के आदेश को रिविजन न्यायालय में रिविजन आवेदन प्रस्तुत कर चुनौती दे सकता है।

प के मामले में आप को देखना चाहिए कि परिवाद प्रस्तुत करने में हुई देरी को क्षमा किए जाने के लिए कोई उचित कारण प्रसंज्ञान लेने के पूर्व न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करते हुए देरी को क्षमा करने की प्रार्थना की गई थी अथवा नहीं की गई थी। यदि ऐसी प्रार्थना की गई थी और कारण उचित पाते हुए न्यायालय ने देरी को क्षमा करते हुए प्रसंज्ञान लिया था तो परिवाद चलने योग्य है। यदि ऐसा नहीं है तो आप प्रसंज्ञान लिए जाने वाले आदेश को रिविजन न्यायालय के समक्ष चुनौती दे सकते हैं। इस संबंध में आप को अपने वकील से सलाह कर के आगे कार्यवाही करनी चाहिए।

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