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चैक बाउंस के मुकदमे ब्लेक मेलिंग का आधार बन रहे हैं।

arrested-man-in-handcuffsसमस्या-

प्रियंका असरानी ने सांगानेर, जयपुर, राजस्थान राज्य की समस्या भेजी है कि-

मेरे पिता जी ने किसी से 4 साल पहले 90,000 रुपये उधार लिए थे। उस में से कुछ रुपया हम ने वापस भी किया था। पर हमारी आर्थिक हालत कमजोर होने के कारण जब हम ने पैसा देना कुछ समय के लिए रोक दिया तो उस व्यक्ति ने झूठा अमाउंट भर कर चैक लगा दिया, अब मामला कोर्ट में है और बयान मुल्ज़िम तक पहुँच गया है। ये बात हमें भी पता है की चेक में भरा गया पैसा हमें देना पड़ेगा। लेकिन उस ने चेक में 350000 रुपया भरा है और हमारे वकील साहब का कहना है कि कोर्ट आपको 2 साल तक की सजा और चेक अमाउंट से डबल तक जुर्माना सुना सकता है, बेहतर होगा आप उस व्यक्ति से बात कर राजीनामा कर लें। जब हम ने उस व्यक्ति से बात की तो वह हम से केस वापस लेने की एवज में 450000 रुपये देने की मांग करने लगा। हम ने जितना पैसा लिया था उस से 5 गुना ज्यादा उसने पहले ही चेक में भर दिया है फिर भी हम मज़बूरी क कारण उसे चेक का अमाउंट देने को तैयार हैं। लकिन उसने तो इंसानियत को ही मार दिया। अगर हम कोर्ट में 350000 का डिमांडिंग ड्राफ्ट बनवा के दे तब भी क्या हमें जुर्माना दुगना तक ही देना पड़ेगा। अगर कोई रास्ता या कानून में ऐसा कोई क्लोज है तो प्लीज बताये हम बड़ी परेशानी में है।

समाधान-

प की समस्या बहुत आम है। धारा 138 परक्राम्य विलेख अधिनियम जिस तरह है उस में अपराध यह है कि यदि आप ने कोई चैक दिया है तो उस का भुगतान होना चाहिए। वह बाउंस होता है तो नोटिस मिलने के 15 दिन में चैक राशि का भुगतान होना चाहिए। अन्यथा चैक बाउंस की रकम अदा करने का नोटिस मिलने के 15 दिन में भुगतान न करना अपराध है जिस का दंड वही है जो आप के वकील ने बताया है। अर्थात 2 वर्ष तक का कारावास तथा चैक की राशि के दुगने तक जुर्माना। लेकिन यह बिलकुल जरूरी नहीं है कि अदालत दो वर्ष तक की सजा दे ही। अधिकांश मामलो में छह माह की और कुछ मामलों में एक वर्ष की सजा होती है। सजा होने के बाद भी अदालत कम से कम एक माह तक उसे निलंबित कर देता है जिस से अपील की जा सके। इस अवधि में अपील प्रस्तुत कर सजा को लंबित कराया जा सकता है। अपील कोर्ट निचली अदालत के निर्णय के अनुसार या उस से कम राशि जमा कराने की शर्त पर सजा को निलंबित कर देती है। इस कारण पहली अदालत के निर्णय तक इन्तजार किया जा सकता है।

सल में जब से यह कानून अस्तित्व में आया है किसी को भी खाली चैक हस्ताक्षर कर के किसी को भी नहीं देना चाहिए। चैक में धनराशि भर कर तारीख डाल कर ही देना चाहिए और उस तिथि को चैक की राशि बैंक में रखना चाहिए जिस से वह बाउंस न हो। लेकिन मजबूरी में और अज्ञान के कारण लोग ऐशा करते हैं। उधार देने वाले सूदखोर लोगों ने इस कानून को लूटने का माध्यम बना लिया है। एक तरह से वे इस कानून की सहायता से अदालतों को ब्लेकमेल का साधन बना रहे हैं। जिस पर किसी का ध्यान नहीं है। अदालतें कानून के मुताबिक फैसले देती हैं, उन्हें देना पड़ता है। वे कानून की पालना करती हैं, न्याय नहीं करतीं। वास्तव में यह कानून वित्तीय संस्थाओं की सुविधा के लिए बनाया गया है। उन्हें इसी में सुविधा है। जिस का लाभ सूदखोर लोग खूब उठा रहे हैं। यह कानून ही गलत है लेकिन इस का बड़े पैमाने पर विरोध नहीं हो रहा है। यह कानून हमारे देश की गरीब जनता पर अन्याय है।

स कानून में मुकदमा होने पर बचने का एक ही मार्ग है कि अभियुक्त खुद यह साबित करे कि उक्त चैक किसी दायित्व की पूर्ति के लिए नहीं दिया गया था। जो साबित करना असंभव जैसा है। इस कारण जब भी चैक के आधार पर उधार लिया जाए तो उधार का दस्तावेज जरूर लिखा जाए और उस में दिए गए चैक का नंबर और धनराशि सहित वर्णन जरूर हो।

प के पिताजी का मुकदमा बयान मुल्जिम में है। उस के बाद आप के पिता न्यायालय की अनुमति ले कर अपना बयान और अपने पक्ष में सबूत प्रस्तुत कर सकते हैं। यदि वे यह साबित करते हैं कि यह चैक सीक्योरिटी के लिए दिया गया था न कि दायित्व के भुगतान के लिए और परिवादी ने जानबूझ कर अधिक रकम भर ली है और अब मुकदमे की आड़ में आप के पिता को ब्लेकमेल कर रहा है उन्हें राहत मिल सकती है। आप के पिताजी को इस तरह के छल और ब्लेकमेलिंग के विरुद्ध पुलिस को भी रिपोर्ट करानी चाहिए क्यों कि उस का यह कृत्य आईपीसी के अन्तर्गत अपराध है। उस व्यक्ति ने एक झूठा मुकदमा प्रस्तुत कर आप के पिता को परेशान किया है। आप की यह शिकायत तो सच्ची और वाजिब होगी। यदि पुलिस कार्यवाही न करे तो न्यायालय में अलग से परिवाद दाखिल करना चाहिए। जिस से उस व्यक्ति पर भी दबाव बने और किसी तरह बीच का मार्ग निकल सके।

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