जग्या और गौरी को कारावास की सजा हो सकती है
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कल शाम मेरी पाठिका सिमरन से फोन पर बात हुई। पूछ रही थी -आप ‘बालिका वधु’ देखते हैं? -हाँ, यदा-कदा, पर पत्नी के सौजन्य से कहानी पता लगती रहती है। मैं ने उत्तर दिया। उस ने सवाल किया …
बालिका वधु में जगदीश और आनंदी का बाल विवाह हुआ, फिर जगदीश का गुड़िया के साथ दूसरा बाल विवाह हुआ। जगदीश डाक्टरी पढ़ने चला गया। वहाँ एक लड़की से उसे प्रेम हुआ और उसने उस लड़की से पंजीकृत विवाह कर लिया। वह लड़की वही थी जिस से उस का दूसरा विवाह हुआ था। इन तीनों विवाहों की वैधानिक स्थिति क्या है?
सिमरन को इस सवाल का जवाब फोन पर नहीं दिया जा सकता था, मैं ने उसे कहा -जवाब ‘तीसरा खंबा’ पर ही देखना।
उत्तर –
आज के इन टीवी सीरियलों से सम्बन्धित उत्तर देने में सब से बड़ी परेशानी उन का काल रहा है। उन की कहानी आज में आरम्भ होती है और आगे बढ़ती रहती है। सीरियल का हर अंक आज में होता है। जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती है. पिछले अंक विगत काल में पीछे, और पीछे खिसकते जाते हैं। भारत में विवाह सम्बन्धी कानूनों का भी समय के साथ विकास हुआ है। वे विभिन्न तिथियों पर प्रभावी हुए हैं, इस कारण सीरियल के किस सोपान पर कौन सा कानून प्रभावी होगा यह तय करना एक असम्भव कार्य है। इसलिए इस प्रश्न का उत्तर मैं ने सभी घटनाओं पर आज प्रभावी कानूनों के प्रकाश में देने का निश्चय किया है।
भारत में बाल विवाह प्रतिषेध अधिनिम 1929 से लागू था। इस के बावजूद बड़े पैमाने पर बाल विवाह होते रहे। यह कानून बाल विवाहों को रोक पाने में पूरी तरह अक्षम सिद्ध हुआ। केवल वे ही विवाह रोके जा सकते थे जिन की पूर्व सूचना पुलिस और न्यायालय को दी जाती थी। इतना ही नहीं ऐसे विवाहों को रोकने के लिए एक सामाजिक दबाव या मजबूत व्यक्तिगत इच्छा की आवश्यकता होती थी। हालत यह थी कि पुलिस रिपोर्ट करने वाले को भी अक्सर यह सलाह देती थी कि वह क्यों इस पचड़े में पड़ रहा है, फिजूल ही बाल विवाहों की सामाजिक मान्यता का विरोध कर अपने जीवन में कष्टों को आयात कर रहा है। अदालतें भी जब तक कोई उन के सामने मुकदमा ले कर नहीं आता और अंतिम क्षण तक उस का समर्थन न करता रहता कोई कार्यवाही कर पाने में अक्षम रहती थीं। कानून का प्रभाव क्षीण होने के बाद भी अनेक सामाजिक कार्यकर्ताओं ने बाल विवाहों को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। स्थिति यह भी थी कि एक बार बाल विवाह हो जाने के बाद वह शून्य नहीं होता था और कानूनी रूप से वैध बना रहता था। उसे केवल न्यायालय से ही शून्य घोषित कराया जा सकता था।
इस स्थिति को देखते हुए 2007 में बाल विवाह उन्मूलन अधिनियम-2006 पारित हुआ और धीरे-धीरे भारत के सभी राज्यों में प्रभावी किया गया। इस कानून के अंतर्गत बाल विवाहों को रोकने के लिए प्रभ
ावी दंड व्यवस्था बनाई गई है। अब बाल विवाह का कोई भी पक्षकार वयस्क होने के दो वर्ष की अवधि में न्यायालय में आवेदन प्रस्तुत कर अपने विवाह को शून्य घोषित करवा सकता है। इस कानून में यह भी प्रावधान है कि विवाह शून्य घोषित होने पर दोनों पक्ष दिए गए उपहारों को वापस करेंगे और जब तक स्त्री पुनः विवाह नहीं कर लेती है या स्वयं का भरण-पोषण करने में समर्थ नहीं हो जाती है तब तक पुरुष पक्ष को उसे न्यायालय द्वारा निर्धारित भरण पोषण राशि अदा करनी पड़ेगी। (बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम, 2006 को यहाँ देखा जा सकता है)
ावी दंड व्यवस्था बनाई गई है। अब बाल विवाह का कोई भी पक्षकार वयस्क होने के दो वर्ष की अवधि में न्यायालय में आवेदन प्रस्तुत कर अपने विवाह को शून्य घोषित करवा सकता है। इस कानून में यह भी प्रावधान है कि विवाह शून्य घोषित होने पर दोनों पक्ष दिए गए उपहारों को वापस करेंगे और जब तक स्त्री पुनः विवाह नहीं कर लेती है या स्वयं का भरण-पोषण करने में समर्थ नहीं हो जाती है तब तक पुरुष पक्ष को उसे न्यायालय द्वारा निर्धारित भरण पोषण राशि अदा करनी पड़ेगी। (बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम, 2006 को यहाँ देखा जा सकता है)
इतनी जानकारी के बाद हम इस सीरियल में हुए विवाहों की वैधानिकता पर विचार कर सकते हैं। आनन्दी और जगदीश का बाल विवाह होने के बाद भी उसे किसी न्यायालय द्वारा न तो शून्य घोषित किया गया है और न ही उसे विखंडित किया गया है। इस कारण से वह एक वैध विवाह है। जगदीश और आनन्दी दोनों ही वैधानिक रूप से आज तक पति-पत्नी हैं। दोनों हिन्दू हैं और उन पर हिन्दू विवाह अधिनियम प्रभावी है। इस कारण से एक वैध विवाह से पति-पत्नी होते हुए उन में से कोई भी दूसरा विवाह नहीं कर सकता है। यदि उन में से किसी का भी दूसरा विवाह होता है तो ऐसा विवाह हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा-5 (i) की शर्त के प्रतिकूल होने से अकृत और शून्य है तथा किसी भी पक्षकार द्वारा न्यायालय में धारा-11 के अंतर्गत आवेदन प्रस्तुत करने पर अकृत घोषित किया जा सकता है।
इस तरह हम पाते हैं कि जगदीश और आनन्दी का विवाह आज भी वैध है और जगदीश का दूसरा बाल विवाह प्रारंभ से ही अकृत और शून्य था। उस विवाह को वैधानिकता प्राप्त नहीं थी और जगदीश व गौरी (गुड़िया) के बीच पति-पत्नी का कोई भी वैधानिक सम्बन्ध कभी उत्पन्न ही नहीं हुआ था। अब जगदीश ने गौरी से फिर से एक पंजीकृत विवाह किया है और उस का प्रमाण पत्र प्राप्त कर अपने परिवार में प्रवेश कर उसे दिखाते हुए घोषणा की है कि उन का विवाह वैध है और वे दोनों पति-पत्नी हैं। लेकिन जगदीश की पत्नी आनन्दी के जीवित रहते तथा वह विवाह खंडित नहीं होने के कारण गौरी के साथ उस का विवाह अकृत और शून्य है। जगदीश का यह कहना कि गौरी उस की पत्नी है एक अवैध घोषणा है।
जगदीश जानता था कि उस की पत्नी अभी जीवित है इस के बावजूद उस ने गौरी से विवाह किया। इस तथ्य से गौरी भी परिचित थी। इस के बावजूद उन्हों ने गलत और मिथ्या तथ्य विवाह पंजीयक को बता कर तथा मिथ्या शपथ पत्र द्वारा उस की साक्ष्य प्रस्तुत कर अपने इस अकृत और शून्य विवाह को पंजीकृत कराया है। उन दोनों का यह कृत्य भारतीय दंड संहिता की धारा 193, 197, 198, 199 तथा 200 के अंतर्गत अपराध भी है जिस के लिए पुलिस स्वयं प्रसंज्ञान ले कर कार्यवाही आरंभ कर सकती है, दोनों को गिरफ्तार कर सकती है और उन के विरुद्ध न्यायालय में आरोप पत्र प्रस्तुत कर सकती है जिस में उन दोनों को कारावास के दंड से दंडित किया जा सकता है।
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13 Comments
sateek vishleshan bhai ji…sadhuwaad
आनंद आ गया पढ़कर।
सीरीयल शुरू हो गया…देखें क्या होता है!
इस सीरियल के ये एपिसोड देखते वक्त मेरे भी जहन में ये बाते उठी थी कि यदि ये मामला अदालत में चला जाय तो कानून किसके साथ होगा | आज आपने इतनी बढ़िया जानकारी देकर मेरी जिज्ञासा भी शांत करदी |
आपके साथ आपकी पाठिका सिमरन का भी आभार , वह आपसे प्रश्न नहीं पूछती तो हमें ये जानकारी कैसे मिलती
काम की जानकारी है
हंसी के फव्वारे-
http://hansikefavare.blogspot.com/
by Ruchika
यह बहुत अच्छी जानकारी दी आपने…
कार्यक्रम के निर्माता, निर्देशक, प्रायोजक आदि भी इस पोस्ट को पढें तो बात बनें।
इस पोस्ट के लिये शुक्रिया
प्रणाम
Hum sabhi jante hai ki baal vivah gairkanuni hai par jo baat aapne hume is lekh mai batai vo nahi malum thi. Hum agar ye mane ki jagya ne bhi yahi soch kar gouri se shadi ki ki uski aur anandi ki shadi legal nahi hai tab kya kar sakte hain.
uske liye to logo ko ye sab pata hona chahiye. mujhe lagta hai balika vadhu serial se zyada is baat ko batane ka koi aur acha aur tez upay to nahi hai.
मुझे पोस्ट पढते हुये हंसी आ गयी, सुशमा स्वराज की तरह लेकिन ये हसी इस लिये आयी कि आप सीरियल भी एक वकील की दृशःटी से देखते हैं। तो अब झट से चैनल वालों को लिख भेजें अगली कार्यवाई। क्यों कि ये जरूरी है ताकि माँ बाप को भी नसीहत हो जो अभी तक भी बाल विवाह कर रहे हैं। ये एक गम्भी मुद्दा है। आपने बिलकुल सही कहा है। धन्यवाद।
maene jo link aur kament diyaa haen wo saguna kae vivaak prakarn kaa thaa is vivvah kaa nahin year 2009
baad mae is par sansad mae hangmaa bhi hua thaa
सीरियल में जिस विवाह को पंजीयक ने पंजीकृत किया है वह बाल विवाह नहीं है। दोनों ही वयस्क हैं। लेकिन वह एक अवैध विवाह है क्यों कि जगदीश विवाहित है और उस की पत्नी जीवित है और उस से विवाह विच्छेद नहीं हुआ है। पंजीयक इस विवाह को जगदीश और गौरी द्वारा प्रस्तुत इस शपथ पत्र के आधार पर ही पंजीकृत कर सकता था कि उन दोनों की कोई पत्नी/पति जीवित नहीं है।
वकील साहब आपने अच्छी जानकारी दी है । आपने सही कहा है कि कानून होने के बावजूद भी अदालतें बेबस हैं । क्योंकि पारंपरिक हिंदू समाज आज भी बाल विवाह के विरोध में कुछ सुनने के लिए तैयार नहीं है । पिछले दिनों एक महिला सरकारी अधिकारी के हाथ लोगों द्वारा मात्र इसलिए काट दिए गए थे कि वह इसके बारे में जागरूकता फैला रही थीं ।
"बालिका वधु " सीरियल मे नाबालिक लड़की का विवाह रजिस्ट्रार को करते दिखाया हैं । क्या ये सम्भव हो सकता हैं और अगर नहीं तो क्या न्याय के पेशे से जुडे लोगो को इस प्रकार की भ्रांतियां फेलाने वाली बातो के विरूद्व कोई आवाज नहीं उठानी चाहिये ।
अगर ऐसा विवाह सम्भव ही नहीं हैं { मुझे नहीं पता } तो फिर ये देख कर तो ना जाने कितने और माता पिता सोच सकते हैं अपने ना बालिग़ बेटियों को इस प्रकार से ब्याहने के लिये ।
टी वी पर न्याय व्यवस्था की धज्जियां उडती हैं और कोई आवाज नहीं उठती ???
http://indianwomanhasarrived.blogspot.com/2009/07/blog-post_09.html
in 2009 itself we had raised similar issue on naari blog
यह बहुत अच्छी जानकारी दी आपने… आज के समाज को देखते हुए बाल विवाह पर अवश्य ही प्रतिबन्ध लगना चाहिए, लेकिन व्यस्क होने के बाद विवाह का खंडन करना गलत है….
प्रेमरस