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जमानत के लिए हैसियत प्रमाण पत्र मांगा जाना कानूनी नहीं है।

समस्या-

इरशाद मोहम्मद मंसूरी ने बकानी, जिला झालावाड़, राजस्थान से समस्या भेजी है कि-

धारा 107, 151 दंड प्रक्रिया संहिता के मामले में हैसियत प्रमाण जरूरी है क्या? जरूरी हो तो कितने का होना चाहिए?

 

समाधान- 

धारा 107, 151 दंड प्रक्रिया संहिता के उपबंध किसी अपराध को घटने से रोकने के लिए हैं। धारा 151 में पुलिस को किसी व्यक्ति को तब गिरफ्तार करने की शक्ति दी गयी है जब कि उस के किसी कृत्य  से समाज में शान्ति भंग होने की संभावना उत्पन्न हो जाए। किसी भी  व्यक्ति के गिरफ्तार होने के 24 घंटों में उसे न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया जाना जरूरी है। इस तरह गिरफ्तार व्यक्ति को धारा 107 में एक परिवाद बना कर किसी कार्यपालक  दंडनायक के समक्ष प्रस्तुत करती है। इस धारा में कार्यपालक मजिस्ट्रेट को यह शक्ति प्रदान की गयी है कि शान्ति भंग होने की संभावना प्रमाणित होने पर उस व्यक्ति को छह माह या एक वर्ष तक की अवधि के लिए जमानत मुचलके पर पाबंद करे कि वह शान्ति बनाए रखे और शान्ति भंग करते हुए पाया जाएगा तो उस की जमानत और मुचलके की राशि की जब्ती कर ली जाएगी।

कभी कभी इस तरह के परिवादों में धारा 116(3) भी जुड़ी होती है। इस धारा के अंतर्गत कार्यपालक मजिस्ट्रेट को यह शक्ति है कि यदि उसे सुनवाई के दौरान भी शांति भंग की आशंका होती है तो वह तुरन्त जमानत और मुचलके से व्यक्ति को पाबंद कर सकता है।

इन सभी मामलों में कानून यह है कि कार्यपालक मजिस्ट्रेट जो जमानत लेता है वह उस मजिस्ट्रेट की संतुष्टि की होनी चाहिए। मजिस्ट्रेट को ऐसी संतुष्टि जमानत देने वाले व्यक्ति की संपत्ति के स्वामित्व के मूल दस्तावेज देख कर कर लेनी चाहिए। उस के लिए हैसियत प्रमाण पत्र न तो आवश्यक है और न ही जरूरी है। जब मजिस्ट्रेट को लगे कि उसे अभी जमानत नहीं लेनी चाहिए तो वह जानबूझ कर ऐसा आदेश देता है कि वह हैसियत प्रमाण पत्र प्रस्तुत करे। यदि यह पहले से बना न हो तो इसे बनाने मेे कई दिन लग जाते हैं। यह तहसीलदार बनाता है जो कि कार्यपालक मजिस्ट्रेट के अधीन होता है या उस से नीचे की रैंक का अधिकारी होता है कही कहीं जहाँ तहसीलदार खुद कार्यपालक मजिस्ट्रेट हो तो वह भी उसे खुद ही बनाना होता है। इस तरह गिरफ्तार व्यक्ति को गिरफ्तारी में रोके रखने का एक कानूनी कारण तैयार कर लिया जाता है। वस्तुतः इस तरह का आदेश गैर कानूनी है और व्यक्ति के मूुल अधिकारोे का उल्लंघन करता है। इस तरह के आदेश को सेशन न्यायालय तथा उच्च न्यायालय के समक्ष चुनौती दी जा सकती है । लेकिन उस न्यायलय से ऐसे आदेश को निरस्त कराने में कम से कम दो तीन दिन का समय लग जाता है। कार्यपालक मजिस्ट्रेट की मंशा भी ऐसे व्यक्ति को दो-चार दिन रोकने की ही होती है। इस कारण आम तौर पर इस तरह के आदेश को कोई चुनौती नहीं देता है।

हैसियत प्रमाण पत्र उतनी राशि का होना चाहिए जितनी राशि की जमानत मांगी गयी हो।सामान्य तौर पर इस काम के लिए एक लाख की हैसियत का प्रमाण पत्र पर्याप्त होता है।

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