जुगाड़ को कानूनी मान्यता क्यों नहीं
|कुछ दिनों पूर्व मैं अपनी ससुराल अकलेरा, जिला झालावाड़ (राजस्थान) गया था। विवाह में सामानों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक लेजाने का बहुत काम होता है। इस काम के लिए भारवाहक वाहन की आवश्यकता होती है। जब वहाँ इस तरह के वाहन की जरूरत हुई तो तुरंत आदेश हुआ कि शादी के दो दिनों के लिए किसी जुगाड़ को तय कर लिया जाए।
जुगाड़ एक पूरी तरह से मोटर वाहन है जिस से माल और सवारियाँ दोनों ही ढोए जाते हैं। यह किसी करोड़पति के कारखाने में नहीं बनता। बल्कि डीजल इंजन और विभिन्न वाहनों के पुराने कलपुर्जों से ग्रामीण क्षेत्रों के मिस्त्री इसे आदेश पर आदेश के अनुसार बनाते हैं। यह जुगाड़ उत्तर भारत के बहुत से प्रदेशों में चल रहे हैं। इन की कितनी संख्या है? कोई नहीं बता सकता। पिछले माह मैं ने इसे छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, राजस्थान, हरियाणा और उत्तर प्रदेश की सड़कों पर दौड़ता देखा है। इस में शादी के सामान से ले कर बरातें और दूल्हा दुल्हन तक ढोए जा रहे थे।
यह जुगाड़ मोटर यान अधिनियम में परिभाषित मोटर वाहन की श्रेणी में आता है। कानून के मुताबिक इस तरह का वाहन पंजीकरण और कुछ आवश्यक शर्तों को पूरा करने के बाद ही सड़क पर चलाया जा सकता है। लेकिन मोटर वाहनों का पंजीकरण करने वाला कोई भी कार्यालय इस जुगाड़ को पंजीकृत नहीं करता क्यों कि यह कानूनी शर्तों को पूरा नहीं कर सकता है। पंजीकरण न होने से इस पर आवश्यक बीमा भी कोई बीमा कंपनी उपलब्ध नहीं कराती। इस तरह यह वाहन खुले आम मोटर यान अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन कर रहा है।
जी हाँ, जुगाड़ से दुर्घटना हो जाने पर किसी घायल को या मृतक के परिवार के लोगों को क्षतिपूर्ति प्राप्त करना लगभग असंभव काम है। एक तो इन पर कोई पंजीकरण संख्या नहीं होती जिस से यह पता करना और साबित करना संभव नहीं कि गाड़ी का मालिक कौन है? चालक को पुलिस रिपोर्ट कराने वाला जानता हो तो उस के विरुद्ध रिपोर्ट दर्ज करा सकता है। यदि उसे भी नहीं जाने या उस का पता न लगे तो इस बात का कोई सबूत ही न रहे कि दुर्घटना कारित करने वाले वाहन का मालिक और चालक कौन थे।
अब जब इस वाहन को जनता ने बड़े पैमाने पर स्वीकार कर ही लिया है और यह सड़कों पर दौड़ रहा है तो मोटर यान कानून में कुछ संशोधन किए जा कर इस का पंजीकरण और कम से कम तृतीय पक्ष हानि के जोखिम का बीमा करने की व्यवस्था सरकार को तुरंत करनी चाहिए। जिस से तृतीय पक्ष की हानि का मुआवजा प्राप्त करने में लोगों को कठिनाई न हो, यह सरकारों का कर्तव्य भी है।
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द्विवेदीजी, आपको अजीत डी के मामले का पता चला होगा। आपकी इस मसले पर राय जानना चाहूंगा। अगर पोस्ट लिख सके तो सभी लाभांवित हो सकते हैं।
हरियाणा पर आप की निगाह नहीं पड़ी। वह शामिल है।
अरे कमाल है दादा आप हरियाणा को भूल गये यहां की तो गली-गली में जुगाड़ स्कूली बच्चे तक ढो रहे हैं…. साथ ही साथ प्रदूषण के अद्भुत संवाहक हैं जिस शहर में जितने अधिक जुगाड़ होंगें वहा फिजिशियन्स की प्रैक्टिस टन-टना-टन….
आपने सही विषय उठाया है
are kaa dwivedi bhai, pehle ham samjhe ki aap pikchar jugaad kaa baat kar rahe hain fir samjhe ki apne indian jugaad kaa baar kar rahe hain dekhe to ee injan wala bailgadiya ke peechhe pad gaye hain. waise to publik ke liye to suvidhaa hona chaahiye bas.
उत्तर प्रदेश में जब राजनाथ सिंह मुख्यमंत्री थे तो चुनावों के दौरान उन्होंने किसानों से वायदा किया था कि आप लोग मेरी जुगाड़ करवा दो मैं जुगाड़ को मान्यता दिला दूंगा लेकिन जनता ज्यादा समझदार थी।
पहले जुगाड़ कृषि कार्यों में उपयोग होते थे लेकिन अब सवारी ढोने में इसका उपयोग ज्यादा हो रहा है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अब तक कई जुगाड़ संतुलन खोकर नदी-नहरों में गिर चुके हैं।
लेवल क्रासिंग पर ज्यादा दुर्घटनायें जुगाड़ से होती हैं। न रजिस्ट्रेशन न लाइसेंस न बीमा। पर जुगाड़ का ग्रामीण अर्थव्यवस्था में जो महत्व है, उसे नकारा नहीं जा सकता।
दिनेश जी मेने यह वाला जुगाड तो नही देखा, लेकिन चित्र मे देख कर लगता है कि इसे सडक पर चलने से भी रोकना चाहिये, यह सस्ता है लेकिन इस से नुकसान ज्यादा है, सब से पहले तो यह हमारी वायु ( हवा) को खराब करेगा, क्योकि पता नही यह मिट्टी के तेल से या जिस से भी चले , दुसरा इस की स्पीड इतनी नही होगी जिस के कारण जगह जगह पर भीड इकट्टी होगी, ओर फ़िर यह इतन सुरक्षित भी नही दिख रहा, कि इस से सवारी तो दुर की बात समान भी ढोया जाये, सिर्फ़ हम अपनी जेब की बजत की सोच कर कितनो की जिन्दगी को खतरे मै डाल रहे है, इस लिये इसे तो सडक पर भी नही चलने देना चाहिये.
धन्यवाद
आपका यह लेख रोचक लगा । यह वाहन अपने नाम को पूर्णतया सार्थक करता है । लेकिन आजकल यह प्रतिस्पर्धा के कारण सडको पर से धीरे धीरे गायब हो रहा है ।
कुछ तो अड़चन होगी जरूर .शायद कुछ मानक पूरे न होते हो..
प्रणाम
जुगाड़ वास्तव में पुरा जुगाड़ है और ऐसे वाहन सड़क पर केवल दुर्घटना ही कर सकते है शायद ग्रामीण क्षेत्रो में लोगो को इससे लाभ हो पर सड़क पर इनका चलना सही नही है .
सुरक्षा उपायों की शर्त पूरी करने के बाद जुगाड़ का पंजीकरण भी अन्य वाहनों की ही तरह अनिवार्य कर देना चाहिये। असुरक्षित और अपंजीकृत जुगाड़ों पर रोक भी आवश्यक है।
जुगाड के बारे में पहले भी सुन चुकी हूं….देखा अभी तक नहीं….पर आपसे बहुत कुछ जानने का मौका मिला।
आपका परामर्श पूरी तरह से व्यावहारिक है।
इसी के समानान्तर एक कुतर्क मन में उठ रहा है। जिस अनियमिता का नियमन असम्भव हो, उसे नियमित कर दिया जाना चाहिए – यह सन्देश भी मिलता है आपके परामर्श से।
इस कुतर्क को बागे बढाएं तो, दुपहिया वाहनों पर तीन का बैठना भी अपराध नहीं माना चाहिए।
ठीक कहा दिनेश जी. अभी कल ही मैं राजस्थान घूम कर आया हूँ और पूरे समय हर सडक पर जुगाडबाजी का आलम देखता रहा हूँ. मेरा तो मानना है कि इसे राष्ट्रीय वाहन का नाम दे दिया जाना चहिए.
ऐसा ‘जुगाड़’ सबसे पहले मैंने लुधियाना में, 1981 में, देखा था। जिसे दांया हाथ और बांयी टांग गवां चुका एक भूतपूर्व फौजी बड़ी कुशलता से चला रहा था। सारे जुगाड़ स्वयं उस फौजी के बनये हुये थे। आज आपकी पोस्ट देखकर वह रोमांचकारी नज़ारा फिर याद हो आया।
राजस्व के अलावा, यहाँ भारत में तो पूरे सेफ्टी फीचर वाले चाकचौबंद वाहनों से भी वसूली हो ही जाती है। 🙂
शायद सेफ्टी फीचर पूरे न हों अन्यथा तो सरकार को क्या परेशानी होनी चाहिये-राजस्व ही आयेगा.